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विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
विश्व शौचालय दिवस: (World Toilet Day) जो प्रत्येक वर्ष को 19 नवंबर को मनाया जाता है संयुक्त राष्ट्र के अनुसार विश्व की अनुमानि ढाई अरब आबादी को पर्याप्त स्वच्छता मयस्सर नहीं है और एक अरब वैश्विक आबादी खुले में सौच को अभिसप्त है उनमे से आधे से अधिक लोग भारत में रहते हैं नतीजन बीमारियां उत्पन्न होने के साथ साथ पर्यावरण दूषित होता इसलिए सरकार इस समस्या से उबरने के लिए स्वच्छ भारत अभियान चला रही है लेकिन एक सर्वे के अनुसार खुले में सौच जाना एक तरह की मानसिकता दर्शाता है इसके मुताबिक सार्वजनिक शौचालयोँ में नियमित रूप से जाने वाले तकरीबन आधे लोगो और खुले में शौच जाने वाले इतने ही लोगो का कहना है कि यह सुविधाजनक उपाय है। ऐसे में स्वच्छ भारत के लिए सोच में बदलाव की जरुर दिखती है।
दुनिया में हर तीन में से एक महिला को सुरक्षित शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं है खुले में शौच के लिए विवस होने का कारण महिलाओ और बालिकाओ की निजता सम्मान और पर बुरा प्रभाव पड़ता है और उनके खिलाफ हिंसा तथा बलात्कार जैसी घटनाओ की आशंका बनी रहती है।
संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यो में सबको शुध्द पेयजल और स्वच्छता की सुविधा उलब्ध कराने का लक्ष्य भी रखा गया है। लेकिन खराब आधारभूत ढांचे दूषित जल आपूर्ति और गंदगी के कारण प्रत्येक दिन एक हजार बच्चो मौत का शिकार होते हैं।.[1]
भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार गांवो में 67 प्रतिशत और शहरो में 13 प्रतिशत परिवार खुले में शौच करते हैं। गैरसरकारी संगठन रिसर्च इंस्टीटीयूट ऑफ कंपेशनेट इकोनामिक्स के मुताबिक देश के 40 प्रतिशत जिन घरो में शौचालय है इसके बावजूद उनमे से प्रत्येक घर से एक सदस्य नियमित रूप से खुले में शौच के लिए जाता है।
2001-11 के दौरान बने घर और शौचालयो की संख्या
नोट: इसमेँ सार्वजनिक शौचालय, स्कूल शौचालय के साथ पहले से ही मौजूद निर्माण को शामिल किया गया है।
खुले में शौच की प्रवृति रोकने तथा इसमे बदलाव लाने और साफ सफाई के प्रति जागरुक फैलाने के मकसद से दैनिक जागरण की सामाजिक सरोकार से संबध्द इकाई पहल आरबी इंडिया के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश और बिहार के दो सौ गांवो में प्रोजेक्ट चला रही है इस अभियान में 500 पंचायती राज संस्थाओ के समुदाय के नेताओ, 500 आशा, आंगनबाड़ी कर्मियो की सहायता से सीधे तौर पर इन गांवो की दो लाख महिलाओ से जुड़कर उनको स्वच्छा के प्रेरित किया जा रहा है। बिहार के भागलपुर जिले के 100 गांवो और उत्तर प्रदेश के वाराणसी, कन्नोज और इटावा के 100 गांवो में चलाए जा रहे इस कार्यक्रम की हर स्तर पर निगरानी और बदलाव के वाहक बन रहे लोगो की उपलब्धियो को रेखांकित किया जा रहा है।
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