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वाहिकाशोफ (बीई: एन्जियोडेमा) या क्विंके का शोफ़ एक ऐसा रोग है जिसमें चर्म (डर्मिस), उपचर्म उतक (सब क्युटेनियस टिश्यु), म्युकोसा और सबम्यूकोसल ऊतकों में तेजी से सूजन आ जाती है। यह बहुत कुछ पित्ती से मिलता-जुलता होता है, परन्तु पित्ती (urticaria) को आमतौर पर हाइव्स के नाम से जाना जाता है, यह उपरी चर्म को प्रभावित करता है। इस स्थिति के लिए शब्द वाहिकातंत्रिका शोफ़ (angioneurotic oedema) का उपयोग इस अवधारणा के आधार पर किया जाता था कि इसमें तंत्रिका तंत्र भी प्रभावित होता है परन्तु अब ऐसा माना जाता है कि इसमें तंत्रिका तंत्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। जिन मामलों में वाहिकाशोफ़ बहुत तेजी से बढ़ता है, उसका उपचार आपातकालीन चिकित्सा के रूप में किया जाना चाहिए क्योंकि ऐसे मामलों में वायुमार्ग में बाधा उत्पन्न हो सकती है और रोगी का दम घुट सकता है। जब वाहिकशोफ़ का कारण एलर्जी हो, तब एपिनेफ्रीन जीवन रक्षक का काम कर सकता है। वंशानुगत वाहिकाशोफ के मामले में, एपिनेफ्रिन उपचार में अधिक मददगार साबित नहीं होती है।
ऐसा पाया गया है कि यह एलर्जी के आलावा दवाओं के पार्श्व प्रभाव के कारण भी हो सकता है, ऐसा विशेष रूप से ऐसीई संदमक के प्रभाव में देखा जाता है। इसके अतिरिक्त, इसके तीन ऑटोसोमल प्रभावी वंशानुगत रूप हैं, ऐसा जीन में उत्परिवर्तन के कारण हो सकता है जिससे थक्का टूट जाता है, इसमें सर्पिंग I जीन शामिल है, जिसमें उत्परिवर्तन के परिणामस्वरूप रक्त प्रोटीन सी आई संदमक में कमी आ जाती है (प्रकार I एचऐई) और F12 जीन जो करक XII (प्रकार III एचऐई) को नियंत्रित करता है। एक और प्रकार है जिसमें सी I स्तर सामान्य होते हैं लेकिन CI का कार्य स्तर कम हो जाता है (प्रकार II एचऐई). इन तीनों रूपों को वंशानुगत वाहिकाशोफ (एचऐई) कहा जाता है या कभी कभी इसे एक पुराने शब्द "वंशानुगत तंत्रिका वाहिका शोफ़" (एचऐएनई) भी कहा जाता है। एचऐई के सभी रूपों में पाचन नाल और अन्य अंगों में भी सूजन आ सकती है। अगर यह सूजन श्वास नली तक पहुंच जाये तो दम घुटने के कारण प्राणघातक भी हो सकती है।
चेहरे की त्वचा, सामान्यतया मुंह के आस पास की त्वचा और मुंह की म्युकोसा और गले की म्युकोसा और जीभ में कुछ मिनटों या कुछ घंटों के अन्दर ही सूजन आ जाती है। कभी कभी शरीर के अन्य अंगों, विशेष रूप से हाथों में भी सूजन आ सकती है। इसमें खुजली और दर्द हो सकता है। प्रभावित क्षेत्रों में तंत्रिकाओं के संकुचन के कारण संवेदना में कमी आ सकती है। साथ ही पित्ती (हाइव्स) का भी विकास हो सकता है। गंभीर मामलों में वायु-मार्ग में संकुचन हो सकता है, सांस में घर्घर की आवाज आने लगती है। ऑक्सीजन का स्तर कम हो सकता है। ऐसी स्थिति में सांस में अवरोध को रोकने और मृत्यु के जोखिम को ख़त्म करने के लिए श्वसन मार्ग (Tracheal intubation) को खोलने की आवश्यकता होती है। कभी कभी, रोगी हाल ही में किसी एलर्जन (जैसे मूंगफली) के संपर्क में आया होता है, लेकिन अक्सर इसका करक अज्ञात (idiopathic) होता है या कभी कभी ही इसे किसी एलर्जन से जोड़ा जाता है। वंशानुगत वहिकशोफ़ में, अक्सर कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं होता, हालांकि हल्का सा आघात, जैसे दांतों का उपचार, या कोई अन्य उत्तेजना इसका कारण हो सकती है। इसमें आमतौर पर पित्ती या खुजली आदि नहीं होती, क्योंकि यह किसी प्रकार की एलर्जी की प्रतिक्रिया नहीं होती है। एचऐई के मरीजों में बार बार पेट दर्द की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, (जिन्हें अक्सर आघात कहा जाता है), आमतौर पर इसके साथ बहुत अधिक उलटी आना, कमजोरी आना और कुछ मामलों में पतले दस्त, बिना खुजली वाली खरोंचें जैसी बन जाना आदि लक्षण पैदा हो जाते हैं। पेट में यह समस्या औसतन एक से पांच दिनों में हो सकती है, इस दौरान आक्रामक दर्द प्रबंधन और हाइड्रेशन के लिए अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता हो सकती है। पेट में होने वाली इन समस्याओं के कारण रोगी की श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाती है, यह 13-30,000 के आस पास पहुंच जाती है। जैसी जैसे लक्षण गायब होने लगते हैं, श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या कम होने लगती है और इस आघात के ख़त्म होने तक सामान्य हो जाती है। इसके लक्षणों और नैदानिक परीक्षणों को एक्यूट एब्डोमन (उदाहरण अपेंडीसाईटिस) से विभेदित करना कठिन है, ऐसी स्थिति में एचऐई के रोगियों के कई अनावश्यक परिक्षण करवा दिए जाते हैं जैसे लेप्रोटोमी और लेप्रोस्कोपी. एचईऐ के कारण कई अन्य अंगों में भी सूजन आ सकती है जैसे हाथ, पैर, जनन अंग, गर्दन, गला और चेहरा. इसमें होने वाला दर्द कभी कभी असहजता पैदा करता है और कभी कभी बहुत उग्र भी हो सकता है, यह इसके स्थिति और गंभीरता पर निर्भर करता है। शोफ़ का अगला हमला कहां और कब होगा, इसका पता लगाना लगभग असंभव होता है। अधिकांश रोगियों में अक्सर माह में एक बार इसका आघात देखा जाता है, लेकिन ऐसे रोगी भी हैं जिनमें सप्ताह में एक बार या साल में सिर्फ दो तीन बार ही इसका आघात होता है। इसके लक्षणों में भी कुछ भिन्नता हो सकती है, इसमें संक्रमण, छोटी चोट, जलन, तनाव आदि शामिल हो सकते हैं। ज्यादातर मामलों में, शोफ 12 से 36 घंटों में उत्पन्न होता है और 2 से 5 दिनों में ख़त्म हो जाता है।
निदान को नैदानिक तस्वीर के आधार पर किया जाता है। नियमित रूप से रक्त परीक्षण (पूर्ण रक्त गणना, इलेक्ट्रोलाइट्स, वृक्कों के कार्य और यकृत के एंजाइमों के परीक्षण) प्रारूपिक रूप से किये जाते हैं। मास्ट सेल ट्रिपटेस का स्तर बढ़ सकता है यदि आघात किसी गंभीर एलर्जी प्रतिक्रिया के कारण हुआ हो. जब रोगी स्थिर हो जाता है, विशेष रूप से जब जांच के द्वारा सही कारण का पता चल जाता है; पूरक स्तर, विशेष रूप से पूरक कारक 2 और 4 में कमी सी आई संदमक में कमी को इंगित करता है। सी I के सामान्य स्तर कर कार्य के साथ एचऐई प्रकार III प्रेक्षित शोफ़ का एक निदान है। वंशानुगत रूप के बारे में अक्सर लम्बे समय तक पता नहीं चलता है, क्योंकि इसके लक्षण कई अन्य रोगों जैसे एलर्जी और आंत्रीय रोग के समान होते हैं। एक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि वंशानुगत वहिकशोफ़ एंटीथिस्टेमाइंस या स्टेरॉयड के लिए भी प्रतिक्रिया प्रदर्शित नहीं करता है, यही लक्षण इसे सामान्य एलर्जी से विभेदित करता है। जिन रोगियों में विशेष रूप से जठरांत्र मार्ग संबंधी लक्षण ही उत्पन्न होते हैं, उनमें एचऐई का निदान बहुत मुश्किल होता है। रोग के पारिवारिक इतिहास के अलावा, केवलप्रयोगशाला विश्लेषण से ही अंतिम पुष्टि की जा सकती है। इस विश्लेषण में, अक्सर C4 का स्तर कम पाया जाता है, जबकि C1-INH में उतनी कमी नहीं आती है। पहले वाली स्थिति प्रतिरक्षा प्रणाली के पूरक तंत्र की प्रतिक्रिया के कारण होती है, जो C1-INH के विनियमन में कमी के कारण स्थायी रूप से अतिक्रियाशील होती है।
वंशानुगत वाहिकाशोफ के सभी रूपों में ब्रेडीकिनिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह पेप्टाइड एक शक्तिशाली वाहिकाविस्फारक है और संवहनी पारगम्यता को बढ़ाता है, जिसके कारण अंतराली भाग में तरल का संचय तेजी से होने लगता है। यह चेहरे में स्पष्ट रूप से देखा जाता है, जहां त्वचा में सहायक योजी उतक अपेक्षाकृत कम होते हैं। और शोफ़ आसानी से विकसित हो जाता है। ब्रेडीकिनिन का स्रवण कई प्रकार की कोशिकाओं के द्वारा कई उत्तेजकों की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप होता है। पाया गया है कि ब्रेडीकिनिन का संदमन एचऐई लक्षणों में आराम देता है। विभिन्न प्रणालियां जो ब्रेडीकिनिन के उत्पादन या संदमन में बाधा उत्पन्न करती हैं, वे वहिकशोफ़ उत्पन्न कर सकती हैं। ऐसीई संदमक ऐसीई को बाधित करते हैं, यह एक ऐसा एंजाइम है जो ब्रेडीकिनिन को संदमित करता है। वंशानुगत वहिकशोफ़ में, ब्रेडीकिनिन का निर्माण इसके एक प्राथमिक संदमक C1-एस्टेरेस (aka: C1-inhibitor or C1INH) की कमी के कारण पूरक प्रणाली के निरतर सक्रियण के कारण होता है। साथ ही इसका एक और कारण है केलिक्रेन का निरंतर निर्माण, यह एक अन्य प्रक्रिया है जो C1INH के द्वारा संदमित होती है। यह सेरीन प्रोटियेस संदमक (सर्पिन) आमतौर पर C1r और C1s के C1q के साथ सम्बन्ध को संदमित करता है और CI -जटिल के निर्माण को अवरुद्ध करता है, जो पूरक प्रणाली के अन्य प्रोटीनों का सक्रियण करता है। इसके अतिरिक्त, यह थक्के को तोड़ने वाले भिन्न प्रोटीनों को संदमित करता है, हालांकि इस कमी का हेमरेज और थ्रोम्बोसिस के विकास पर सीमित प्रभाव होता हैं।
वंशानुगत वाहिकाशोफ के तीन प्रकार हैं:
प्रकार I -C1INH का कम स्तर (85%);
प्रकार II - सामान्य स्तर पर C1INH के कार्य में कमी (15%);
प्रकार III - C1INH में कोई असामान्यता नहीं, यह एक X -लिंक्ड प्रभावी प्रतिरूप में दिखाई देता है और इसलिए मुख्य रूप से महिलाओं को प्रभावित करता है; यह गर्भावस्था और हार्मोनल गर्भनिरोध पर हानिकारक प्रभाव डाल सकता है। यह कारक XII जीन में उत्परिवर्तन से सम्बंधित है।
वाहिकाशोफ C1INH के खिलाफ प्रतिरक्षी के निर्माण के कारण भी हो सकता है; यह एक स्व-प्रतिरक्षी असामान्यता है। अर्जित वाहिकाशोफ लिंफोमा के विकास से सम्बंधित है। ऐसे भोजन का उपभोग जो वाहिका को फ़ैलाने का काम करते हैं जैसे एल्कोहल और सिनामोन, संभावी रोगियों में वाहिशोफ़ की संभावना को बढ़ा सकते हैं। अगर ऐसे भोजन के उपभोग के बाद ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, इसमें कुछ घंटों की या रात भर की देरी हो सकती है, जिससे इसे इस पदार्थ के उपभोग से सम्बंधित करना कुछ मुश्किल हो जाता है। इसके विपरीत, हल्दी के साथ ब्रोमलेन का उपभोग लक्षणों को कम करने में फायदेमंद हो सकता है। एस्पिरिन या इबुप्रोफेन के उपयोग से कुछ रोगियों में इसकी संभावना बढ़ सकती है। एसिटामाइनोफेन का उपयोग भी कभी कभी इसकी संभावना को बढ़ा सकता है।
एलर्जिक वाहिकाशोफ में एलर्जन का उपयोग ना करना और एंटीथिस्टेमाइंस का उपयोग करना इसके भावी खतरे को रोक सकता है। अक्सर ऐसे रोगियों को सेतरीज़ाइन की सलाह दी जाती है। कुछ रोगियों में पाया गया है कि इस दवा का रात में कम मात्रा में उपभोग करने से इसकी आवृति कम हो जाती है और जब कभी ऐसी समस्या उत्पन्न होती है, तब इसी दवा की अधिक खुराक दी जाती है। वाहिकाशोफ के गंभीर मामलों में विसुग्राहीकरण की आवश्यकता हो सकती है ताकि मृत्यु को जोखिम को ख़त्म किया जा सके. पुराने मामलों में स्टेरॉयड थेरेपी की आवश्यकता होती है, जिससे आमतौर पर अच्छी प्रतिक्रिया मिलती है।
दवा से उत्प संदमक वाहिकाशोफ को उत्पन्न कर सकते हैं। ऐसीई संदमक एंजाइम ऐसीई को अवरुद्ध करते हैं, ताकि यह ब्रेडीकिनिन के स्तर को और कम ना कर सके; इस प्रकार से ब्रेडीकिनिन संचित हो जाता है और वाहिकशोफ़ का कारण बनता है। यह जटिलता अफ़्रीकी अमेरिकियों में अधिक देखी जाती है। ऐसीई संदमक वाहिकशोफ़ वाले लोगों में, दवा का उपभोग रोकना होता है और कोई वैकल्पिक उपचार का प्रयोग करना होता है, जैसे ऐआरबी (angiotensin II receptor blocker). इसकी क्रिया प्रन्बाली भी ऐसी ही होती है, लेकिन यह ब्रेडीकिनिन को प्रभावित नहीं करता है। हालांकि, यह विवादस्पद है। कुछ छोटे अध्ययनों से पता चला है कि ऐ सी ई संदमक वाहिकशोफ़ के रोगियों में ऐआरबी विकसित हो सकता है।
वंशानुगत वाहिकाशोफ में विशेष उत्तेजक जिनके कारण रोग की स्थिति उत्पन्न होती है, उनके उपयोग को बंद कर देना चाहिए. यह एंटीथिस्टेमाइंस, कार्टिकोस्टेराइड, या एपिनेफ्रीन के प्रति प्रतिक्रिया प्रदर्शित नहीं करता है। इसके उपचार में दाता के रक्त से सांद्रित C1-INH का उपयोग किया जाता है, जिसे वाहिकाओं में प्रविष्ट किया जाता है। एक आपात स्थिति में, ताजा जमे हुए रक्त प्लाज्मा, जिसमें C1-INH शामिल हो, का उपयोग किया जा सकता है। हालांकि, अधिकांश यूरोपीय देशों, सांद्रित C1-INH का उपयोग उन रोगियों में किया जाता है, जो विशेष कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं। ताजा जमे हुए प्लाज्मा (FFP) का उपयोग वैकल्पिक रूप से सांद्रित C1-INH के स्थान पर किया जा सकता है।
अर्जित वाहिकाशोफ में, एचऐई प्रकार I और II और नॉन-हिस्टामाइनार्जिक वाहिकशोफ़, एंटीफाइब्रिनोलाइटिक जैसे ट्रानेक्समिक अम्ल या ε-एमिनो काप्रोइक अम्ल प्रभावी हो सकते हैं। सिनराइज़िन भी उपयोगी हो सकता है क्योंकि, यह C4 के सक्रियण को अवरुद्ध करता है और इसका उपयोग यकृत रोगियों में किया जा सकता है, जबकि एंड्रोजन यह काम नहीं कर सकता.
डॉ॰ Heinrich Quincke पहले १८ ८ २ के वाहिकाशोफ में तस्वीर नैदानिक वर्णित है,[1] हालांकि वहाँ की स्थिति पहले के कुछ विवरण दिया गया था।[2][3][4]
सर विलियम Osler १८ ८ ८ में टिप्पणी की है कि कुछ मामलों के आधार वंशानुगत हो सकता है एक, वह शोफ गढ़ा शब्द वंशानुगत angio-न्युरोटिक.[5]
अवरोध करनेवाला कमी esterase सी१ लिंक के साथ १९ ६ ३ में साबित कर दिया था।[6]
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