वल्लभीपुर
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वल्लभीपुर (Vallabhipur), जिसे केवल वल्लभी (Vallabhi) भी कहा जाता है, भारत के गुजरात राज्य के भावनगर ज़िले का एक ऐतिहासिक नगर है। यह घेला नदी के किनारे बसा हुआ है और इसी नाम की तालुका का मुख्यालय भी है। वल्लभीपुर प्राचीन मैत्रक राजवंश की राजधानी था।[1][2][3]
वल्लभीपुर Vallabhipur વલ્લભીપુર वल्लभी | |
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![]() वल्लभीपुर में प्राप्त पाँच प्राचीन कांस्य मूर्तियाँ | |
निर्देशांक: 21.889°N 71.877°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | गुजरात |
ज़िला | भावनगर ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 15,852 |
भाषा | |
• प्रचलित | गुजराती |
समय मण्डल | भामस (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 364310 |
वाहन पंजीकरण | GJ-04 |
स्थापना
माना जाता है कि इसकी स्थापना कैसे बना 470 ई. में मैत्रक वंश के संस्थापक सेनापति भुट्टारक ने की थी। यह वह काल था, जब गुप्त साम्राज्य का विखण्डन हो रहा था। वल्लभी लगभग 780 ई. तक राजधानी बना रहा, फिर अचानक इतिहास के पन्नों से अदृश्य हो गया। ऐसा प्रतीत होता है कि लगभग 725-735 में सौराष्ट्र पर हुए अरब आक्रमणों से यह बच गया था।
इतिहास
वल्लभी ज्ञान का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था और यहाँ कई बौद्ध मठ भी थे। यहाँ सातवीं सदी के मध्य में चीनी यात्री ह्वेन त्सांग और अन्त में आईचिन आए थे। जिन्होंने इसकी तुलना बिहार के नालन्दा से की थी। एक जैन परम्परा के अनुसार पाँचवीं या छठी शताब्दी में दूसरी जैन परिषद् वल्लभी में आयोजित की गई थी। इसी परिषद् में जैन ग्रन्थों ने वर्तमान स्वरूप ग्रहण किया था। यह नगर अब लुप्त हो चुका है, लेकिन वल नामक गाँव से इसकी पहचान की गई है, जहाँ मैत्रकों के ताँबे के अभिलेख और मुद्राएँ पाई गई हैं।
प्राचीन काल में यह राज्य गुजरात के प्रायद्वीपीय भाग में स्थित था। वर्तमान समय में इसका नाम वला नामक भूतपूर्व रियासत तथा उसके मुख्य स्थान वल्लभी के नाम में सुरक्षित रह गया है। 770 ई. के पूर्व यह देश भारत में विख्यात था। यहाँ की प्रसिद्धि का कारण वल्लभी विश्वविद्यालय था जो तक्षशिला तथा नालन्दा की परम्परा में था। वल्लभीपुर या वल्लभी से यहाँ के शासकों के उत्तरगुप्तकालीन अनेक अभिलेख प्राप्त हुए हैं। बुंदेलों के परम्परागत इतिहास से सूचित होता है कि वल्लभीपुर की स्थापना उनके पूर्वपुरुष कनकसेन ने की थी जो श्री रामचन्द्र के पुत्र लव का वंशज था। इसका समय तीसरी शताब्दी कहा जाता है। इन्होंने अपनी पत्नी के नाम पर इस शहर की स्थापना की इन्ही कनकसेन से आगें गुहिल ओर राघव शाखा चली
अनुश्रुति के अनुसार
जैन अनुश्रुति के अनुसार जैन धर्म की तीसरी परिषद् वल्लभीपुर में हुई थी, जिसके अध्यक्ष देवर्धिगणि नामक आचार्य थे। इस परिषद् के द्वारा प्राचीन जैन आगमों का सम्पादन किया गया था। जो संग्रह सम्पादित हुआ उसकी अनेक प्रतियाँ बनाकर भारत के बड़े-बड़े नगरों में सुरक्षित कर दी गई थी। यही परिषद् छठी शती ई. में हुई थी। जैन ग्रन्थ विविध तीर्थ कल्प के अनुसार वलभि गुजरात की परम वैभवशाली नगरी थी। वलभि नरेश शीलादित्य ने रंकज नामक एक धनी व्यापारी का अपमान किया था, जिसने अफ़ग़ानिस्तान के अमीर या हम्मीरय को शीलादित्य के विरुद्ध भड़काकर आक्रमण करने के लिए निमंत्रित किया था। इस युद्ध में शीलादित्य मारा गया था।
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
सन्दर्भ
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