लिपि (संस्कृत)
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संस्कृत शब्द 'लिपि' का अर्थ है 'लिखना' या वर्ण। वर्तमान समय में 'लिपि' का प्रयोग पाश्चात्य शब्द 'स्क्रिप्ट' (scripts) के समानार्थी भारतीय शब्द के रूप में होता है।
अनेक प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में उस समय प्रचलित लिपियों के नामों का उल्लेख मिलता है। ललितविस्तर के दसवें अध्याय का नाम 'लिपिशाला समदर्शन परिवार्ता' है। इसमें उन ६४ लिपियों का उल्लेख है जिन्हें सिद्धार्थ ने अपने गुरुओं से गुरुकुल में सीखा था। ये ६४ लिपियाँ निम्नलिखित हैं-[1]
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इसी प्रकार, जैनों के प्राकृत भाषा के ग्रन्थों 'पन्नवणा सुत्त' और 'समवायाङ्ग सुत्त' में १८ लिपियों के नाम दिए हैं जिनमें पहला नाम 'बंभी' (ब्राह्मी) है। उन्हीं के भगवतीसूत्र का आरम्भ 'नमो बंभीए लिबिए' (ब्राह्मी लिपि को नमस्कार) से होता है।
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