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रोगन या वार्निश (अंग्रेजी:Varnish) एक पदार्थ है जो लकड़ी तथा अन्य कुछ पदार्थों के ऊपर लगायी जाती है जिससे उनकी सुरक्षा हो और वे सुन्दर दिखें। वार्निश के लेप चढ़ाने का उद्देश्य किसी तल को चिकना, चमकीला और आकर्षक बनाना होता है। यदि तल लकड़ी का है, तो तल की कीटों से रक्षा भी वार्निश से हो सकती है। यदि तल धातुओं का है, तो उसपर वायु, जल, प्रकाश आदि, से रक्षा कर मुरचा लगने से उसे बचाया जा सकता है।
वार्निश दो प्रकार के होते हैं-
स्पिरिट वार्निश में कोई रेज़िन किस्म का पदार्थ किसी वाष्पशील विलायक में घुला रहता है। विलायक के उड़ जाने से रेज़िन का एक पतला लेप तल पर चढ़ जाता है। कुछ संश्लिष्ट रेज़िन से बने स्पिरिट वार्निश को पकाने की आवश्यकता पड़ सकती है, पर सामान्य स्पिरिट वार्निश बिना पकाए ही बनते हैं। सरलतम स्पिरिट वार्निश चपड़े को एथिल एल्कोहल या स्पिरिट में घुलाने से प्राप्त होता है। तेल रेजिन वार्निश में रेजिन और शुष्कन तेल के साथ वाष्पशील विलायक मिला रहता है। वार्निश का विलयाक उड़कर निकल जाता है और अवशिष्ट अंश का आक्सीकरण और बहुलकीकरण होकर तल पर एक ठोस लेप चढ़ा रह जाता है।
शुष्कन तेल, अर्ध-शुष्कन तेल, रेज़िन, विलायक और शोषक (drier) वार्निश के कच्चे माल हैं। वार्निश को पतला बनाने के लिए कुछ तरलक (thinner) भी डाले जाते हैं।
प्रयुक्त होनेवाले शुष्कन तेल, अलसी तेल, तुंग तेल, पेरिला (perilla) तेल, निर्जलीकृत रेंडी तेल, मेनहाडेन तेल, सारडाइन तेल और सोयाबीन के तेल हैं। भारत में प्रधानतया अलसी और तुंग तेल व्यवहार में आते हैं।
पहले केवल प्राकृतिक रेज़िन में व्यहृत होते थे। अब संश्लिष्ट रेज़िनों का व्यवहार अधिकता से हो रहा है। कुद विशिष्ट किस्म के वार्निशों में सिलिकोन रेज़िन बड़े उपयोगी सिद्ध हुए हैं। प्राकृतिक रेज़िनों में कौरी, कौंगो, पोराटिएनक, ईस्ट इंडिया, बाटु, मैनिला और डामर अधिक महत्व के हैं। पहले के दो रेज़िन केवल तेल रेज़िन वार्निश में और अंतिम दो रेज़िन केवल स्पिरिट वार्निश में प्रयुक्त होते हैं। शेष तेल रेज़िन और स्पिरिट दोनों वार्निश में प्रयुक्त होते हैं। लाख या चपड़ा प्रधानतया स्पिरिट वार्निश में काम आता है। इनके अतिरिक्त रोज़िन और संश्लिष्ट रेज़िन (फीनोल-फार्मैल्डीहाइड रेज़िन, ऐल्कीड रेज़िन, मिलेमिन रेज़िन, यूरिया-फार्मल्डीहाइड रेज़िन, विनील रेज़िन, क्लोरीनीकृत रबर और सेलुलोस एस्टर इत्यादि) भी व्यापक रूप से प्रयुक्त हो रहे हैं।
वार्निश विलायकां में स्पिरिट (एथिल ऐल्कोहॉल), तारपीन तेल, पेट्रोलियम, स्पिरिट, नैफ़्था और अनेक एस्टर, जैसे ब्युटिल ऐसीटेट, एमाइल ऐसीटेट, सेलो-साल्व, ब्युटिल ऐल्कोहॉल तथा ऐसीटोन उल्लेखनीय विलायक और तरलक हैं। इनमें एथिल ऐल्कोहॉल सबसे अधिक व्यापक है। चपड़े के वार्निश में यही प्रयुक्त होता है। कुछ अन्य विलायक भी अल्प मात्रा में प्रयुक्त होते हैं।
शोषक केवल तेल रेज़िन में ही प्रयुक्त होते हैं। स्पिरिट वार्निश में इनकी आवश्यकता नहीं पड़ती। ये शोषक खनिज लवण, सीसा, मैंगनीज़ और कोबल्ट के ऑक्साइड, ऐसीटेट कार्बोनेट और बोरेट होते हैं, जो पकाने पर तेल में विलीन हो जाते हैं। उपर्युक्त धातुओं के लिनोलियेट, रेज़िनेट और नैफ्थिनेट भी प्रयुक्त होते हैं :
वार्निश एक अच्छा पदार्थ होता है यह लकड़ी को सड़ने व दीमक लगने से बचाता है इसे लगाने से लकड़ी चमकदार खूबसूरत और आकर्षक दिखती है यह बहुत ही अच्छा पदार्थ होता है।
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