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रक्षा मंत्रालय का प्रमुख कार्य है रक्षा और सुरक्षा संबंधी मामलों पर नीति निर्देश बनाना और उनके कार्यान्वयन के लिए उन्हें सुरक्षा बलों के मुख्यालयों, अंतर सेना संगठनों, रक्षा उत्पाद प्रतिष्ठानों और अनुसंधान व विकास संगठनों तक पहुंचाना। सरकार के नीति निर्देशों को प्रभावी ढंग से तथा आवंटित संसाधनों को ध्यान में रखकर उन्हें कार्यान्वित करना भी उसका काम है। रक्षा मंत्रालय चार विभागों का मिला जुला रूप है। इसमें रक्षा विभाग (डीओडी), रक्षा उत्पाद विभाग (डीडीपी), रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग (डीडीआर एंड डी) और पूर्व सैनिकों के कल्याण और वित्त प्रभाग के विभाग शामिल हैं।

इतिहास

वर्ष 1776 में कोलकाता में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की सर्वोच्च सरकार में एक सैन्य विभाग बनाया गया था, जिसका मुख्य कार्य ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा जारी सेना से संबंधित आदेशों को छांटना और रिकॉर्ड करना था। सैन्य विभाग शुरू में सार्वजनिक विभाग की एक शाखा के रूप में कार्य करता था और सेना कर्मियों की एक सूची रखता था।

चार्टर अधिनियम 1833 के साथ, ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार के सचिवालय को चार विभागों में पुनर्गठित किया गया, प्रत्येक का नेतृत्व सरकार के एक सचिव ने किया। अप्रैल 1895 तक बंगाल, बॉम्बे और मद्रास प्रेसीडेंसी की सेनाएँ संबंधित प्रेसीडेंसी सेनाओं के रूप में कार्य करती थीं, जब प्रेसीडेंसी सेनाएँ एक एकल भारतीय सेना में एकीकृत हो गईं। प्रशासनिक सुविधा के लिए, इसे चार कमांडों में विभाजित किया गया था: पंजाब (उत्तर पश्चिम सीमा सहित), बंगाल (बर्मा सहित), मद्रास और बॉम्बे (सिंध, क्वेटा और अदन सहित)।

भारतीय सेना पर सर्वोच्च अधिकार गवर्नर जनरल-इन-काउंसिल में निहित था, जो क्राउन के नियंत्रण के अधीन था, जिसका प्रयोग भारत के राज्य सचिव द्वारा किया जाता था। परिषद में दो सदस्य सैन्य मामलों के लिए जिम्मेदार थे। एक सैन्य सदस्य था, जो सभी प्रशासनिक और वित्तीय मामलों की निगरानी करता था। दूसरा कमांडर-इन-चीफ था जो सभी परिचालन मामलों के लिए जिम्मेदार था। [17] मार्च 1906 में सैन्य विभाग को समाप्त कर दिया गया और उसके स्थान पर दो अलग-अलग विभाग बनाये गये; सेना विभाग और सैन्य आपूर्ति विभाग। अप्रैल 1909 में सैन्य आपूर्ति विभाग को समाप्त कर दिया गया और इसके कार्यों को सेना विभाग ने अपने हाथ में ले लिया। जनवरी 1938 में सेना विभाग को रक्षा विभाग के रूप में पुनः नामित किया गया। रक्षा विभाग अगस्त 1947 में एक कैबिनेट मंत्री के अधीन रक्षा मंत्रालय बन गया।

स्वतंत्रता के बाद

MoD के कार्य, जो 1947 में मुख्य रूप से सशस्त्र बलों को रसद सहायता प्रदान करते थे, में दूरगामी परिवर्तन हुए हैं। 1962 के युद्ध के बाद नवंबर 1962 में, रक्षा उपकरणों के अनुसंधान, विकास और उत्पादन से निपटने के लिए रक्षा उत्पादन विभाग की स्थापना की गई थी। नवंबर 1965 में, रक्षा उद्देश्यों के लिए आवश्यकताओं के आयात प्रतिस्थापन के लिए योजनाओं की योजना और कार्यान्वयन के लिए रक्षा आपूर्ति विभाग बनाया गया था। इन दोनों विभागों को बाद में रक्षा उत्पादन और आपूर्ति विभाग बनाने के लिए विलय कर दिया गया

1980 में, रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग बनाया गया था। जनवरी 2004 में, रक्षा उत्पादन और आपूर्ति विभाग का नाम बदलकर रक्षा उत्पादन विभाग कर दिया गया। सैन्य उपकरणों के वैज्ञानिक पहलुओं और रक्षा बलों के उपकरणों के अनुसंधान और डिजाइन पर सलाह देने के लिए रक्षा मंत्री के एक वैज्ञानिक सलाहकार को नियुक्त किया गया था। भूतपूर्व सैनिक कल्याण विभाग 2004 में बनाया गया था। [उद्धरण वांछित]

संगठन

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प्रमुख कार्य

विभाग के प्रमुख कार्य इस प्रकार है -

रक्षा मंत्रालय का प्रमुख कार्य है रक्षा और सुरक्षा संबंधी मामलों पर नीति निर्देश बनाना और उनके कार्यान्वयन के लिए उन्हें सुरक्षा बलों के मुख्यालयों, अंतर सेना संगठनों, रक्षा उत्पाद प्रतिष्ठानों और अनुसंधान व विकास संगठनों तक पहुंचाना।

  • रक्षा विभाग एकीकृत रक्षा स्टाफ और तीनों सेनाओं तथा विभिन्न अंतर सेवा संगठनों की जिम्मेदारियों का वहन करता है। रक्षा बजट, स्थापना कार्य, रक्षा नीति, संसद से जुड़े मुद्दे, बाहरी देशों के साथ रक्षा सहयोग तथा समस्त क्रियाकलापों का समन्वय इसी विभाग के दायित्व हैं।[1]
  • रक्षा उत्पादन विभाग का प्रमुख सचिव इसका प्रमुख होता है और यह रक्षा उत्पादन, आयातित भंडार के स्वदेशीकरण, उपकरणों और अतिरिक्त कलपुर्जों तथा हथियार कारखाना बोर्ड और सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उद्यमों की विभागीय उत्पादन इकाइयों के नियंत्रण संबंधी कार्यों को निपटाता है।[2]
  • रक्षा, शोध तथा विकास विभाग का प्रमुख सचिव होता है जो रक्षा मंत्री का सलाहकार भी होता है। इसका काम सैनिक साजो-सामान के वैज्ञानिक पक्ष, संचालन तथा सेना द्वारा इस्तेमाल में लाए जाने वाले उपकरणों से संबंधित शोध, डिजाइन और विकास की योजनाएं बनाना है।[3]
  • भूतपूर्व सैनिक/रक्षाकर्मी कलयाण विभाग का प्रमुख एक अतिरिक्त सचिव होता है। इसके जिम्मे पेंशनयाफ्ता भूतपूर्व सैनिकों, भूतपूर्व कर्मचारी स्वास्थ्य योजना, पुनःनियोजन और केंद्रीय सैनिक बोर्ड महानिदेशालय तथा तीनों रक्षा सेवाओं के पेंशन नियमों से जुड़े मुद्दों का निष्पादन है।

कारगिल समिति की रिपोर्ट के आधार पर मंत्रियों के समूह द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार 1 अक्टूबर 2001 को इंटिग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (आईडीएस) की स्था्पना की गई। आईडीएस के लिए स्टाफ तीन सेनाओं, एमई, डीआरडीओ, सश्क्त सेना मुख्यालय, सिविल सेवाओं तथा रक्षा विभाग से मुहैया कराया गया है। वर्तमान में इंटिग्रेटेड डिफेंस स्टाफ सीओएससी के सलाहकार के रूप में कार्यरत है। वर्तमान में आईएसडी अध्यक्ष सीओएसी के सलाहकार स्टाफ के रूप में कार्य कर रहा है।

रक्षा मंत्री को रक्षा संबंधी गतिविधियों में मदद देने के लिए अनेक समितियां होती हैं। स्टाफ समिति का प्रमुख एक ऐसा मंच होता है जो तीनों सेनाओं की गतिविधियों से संबद्ध मामलों पर विचार का स्थांन होता है और यह मंत्रालय को सलाह देता है। स्टाफ का पद सबसे लंबी सेवा वाले सेना प्रमुख को दिया जाता हे और यह तीनों प्रमुखों के बीच बारी-बारी से आता है।

रक्षा मंत्रालय का वित्त विभाग वित्तीय मामलों से जुड़े सभी मुद्दों पर विचार करता है। रक्षा सेवाओं का रक्षा सलाहकार इसका प्रमुख होता है तथा यह रक्षा मंत्रालय से पूर्णतः संबद्ध होता है और सलाहकार की भूमिका निभाता है।

विश्वविद्यालय और संस्थान

एकीकृत रक्षा कर्मचारी

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रक्षा मंत्री

राजनाथ सिंह

इन्हें भी देखें

प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (भारत)

बाहरी कड़ियाँ

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