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सौर मण्डल विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
यम या प्लूटो (प्रतीक: [11] या [12]) सौर मण्डल का सबसे बड़ा बौना ग्रह है। प्लूटो को कभी सौर मण्डल का सबसे बाहरी ग्रह माना जाता था, लेकिन अब इसे सौर मण्डल के बाहरी काइपर घेरे की सब से बड़ी खगोलीय वस्तु माना जाता है। काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह प्लूटो का अकार और द्रव्यमान काफ़ी छोटा है - इसका आकार पृथ्वी के चन्द्रमा से सिर्फ़ एक-तिहाई है। सूरज के इर्द-गिर्द इसकी परिक्रमा की कक्षा भी थोड़ी बेढंगी है - यह कभी तो वरुण (नॅप्टयून) की कक्षा के अन्दर जाकर सूरज से ३० खगोलीय इकाई (यानि ४.४ अरब किमी) दूर होता है और कभी दूर जाकर सूर्य से ४५ ख॰ई॰ (यानि ७.४ अरब किमी) पर पहुँच जाता है। प्लूटो काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह अधिकतर जमी हुई नाइट्रोजन की बर्फ़, पानी की बर्फ़ और पत्थर का बना हुआ है। प्लूटो को सूरज की एक पूरी परिक्रमा करते हुए २४८.०९ वर्ष लग जाते हैं।[13][14]
यम ग्रह का चित्र, जिसे न्यू होराइज़न्स नामक अंतरिक्षयान ने 13 जुलाई 2015 को लिया। |
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खोज
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खोज कर्ता | क्लाइड टॉमबॉ | ||||||
खोज की तिथि | 18 फरवरी 1930 | ||||||
उपनाम
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MPC designation | 134340 Pluto | ||||||
क्षुद्र ग्रह श्रेणी |
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विशेषण | प्लूटोनियम | ||||||
युग J2000 | |||||||
उपसौर |
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अपसौर |
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अर्ध मुख्य अक्ष |
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विकेन्द्रता | 0.244671664 (J2000) 0.248 807 66 (mean)[3] |
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परिक्रमण काल | |||||||
संयुति काल | 366.73 दिन[3] | ||||||
औसत परिक्रमण गति | 4.7 km/s[3] | ||||||
औसत अनियमितता | 14.85 डिग्री | ||||||
झुकाव |
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आरोही ताख का रेखांश | 110.28683 ° | ||||||
उपमन्द कोणांक | 113.76349 ° | ||||||
उपग्रह | 5 | ||||||
भौतिक विशेषताएँ
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माध्य त्रिज्या | |||||||
तल-क्षेत्रफल |
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आयतन |
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द्रव्यमान | |||||||
माध्य घनत्व | 2.29±0.6 g/cm3[6] | ||||||
विषुवतीय सतह गुरुत्वाकर्षण |
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नाक्षत्र घूर्णन काल |
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विषुवतीय घूर्णन वेग | 47.18 km/h | ||||||
अक्षीय नमन | 119.591±0.14 ° (कक्षा की तरफ)[6][lower-alpha 5] | ||||||
उत्तरी ध्रुव दायां अधिरोहण | 132.993°[7] | ||||||
उत्तरी ध्रुवअवनमन | −6.163°[7] | ||||||
अल्बेडो | 0.49 to 0.66 (ज्यामितीय, 35% तक तब्दीली)[3][8] | ||||||
सतह का तापमान केल्विन |
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सापेक्ष कांतिमान | 13.65[3] to 16.3[9] (mean is 15.1)[3] |
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निरपेक्ष कांतिमान (H) | −0.7[10] | ||||||
कोणीय व्यास | 0.065″ to 0.115″[3][lower-alpha 6] | ||||||
वायु-मंडल
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सतह पर दाब | 0.30 पास्कल (गर्मियों में अधिकतम) | ||||||
संघटन | नाइट्रोजन, मीथेन, कार्बन मोनोऑक्साइड |
प्लूटो का व्यास लगभग २,३०० किमी है, यानि पृथ्वी का १८%। उसका रंग काला, नारंगी और सफ़ेद का मिश्रण है। कहा जाता है के जितना अंतर प्लूटो के रंगों के बीच में है इतना सौर मण्डल की बहुत कम वस्तुओं में देखा जाता है, यानि उनपर रंग अधिकतर एक-जैसे ही होते हैं। सन् १९९४ से लेकर २००३ तक किये गए अध्ययन में देखा गया के प्लूटो के रंगों में बदलाव आया है। उत्तरी ध्रुव का रंग थोड़ा उजला हो गया था और दक्षिणी ध्रुव थोड़ा गाढ़ा। माना जाता है के यह प्लूटो पर बदलते मौसमों का संकेत है।
प्लूटो का बहुत पतला वायुमंडल है जिसमें नाइट्रोजन, मीथेन और कार्बन मोनोऑक्साईड है। जब प्लूटो परिक्रमा करते हुए सूरज से दूर हो जाता है तो उस पर ठण्ड बढ़ जाती है और इन्ही गैसों का कुछ भाग जमकर बर्फ़ की तरह उसकी सतह पर गिर जाता है, जिस से उसका वायुमंडल और भी पतला हो जाता है। जब प्लूटो सूरज के पास आता है तब उसकी सतह पर पड़ी इसी बर्फ़ का कुछ भाग गैस बनकर वायुमंडल में आ जाता है।
प्लूटो के पाँच ज्ञात उपग्रह हैं - १९७८ में खोज किया गया शैरन जो कि सबसे बड़ा है और जिसका व्यास यम का आधा है, २००५ में खोज किये गए दो नन्हे चन्द्रमा, निक्स और हाएड्रा, स्टिक्स और २० जुलाई २०११ को घोषित किया गया कर्बेरॉस जो कि आकार में ३० कि.मी. चौडा है। शैरन सबसे बड़ा है और प्लूटो के ज्यादा करीब भी है। इनकी कक्षाओं का केन्द्र (बैरीसेन्टर) इनके अंदर ना होकर कहीं बीच में है। इसलिए कभी कभी इन्हें युग्मक (जोडा) वाले ग्रह भी कहा जाता है जो एक दूसरे के साथ साथ चलते हैं। [15] अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ ने अभी तक युग्मक बौने ग्रहों की कोई ठोस परिभाषा नहीं गढी है इसलिए फिलहाल आधिकारिक तौर पर शैरोन को यम का उपग्रह ही माना जाता है।[16]
१९३० में अमेरिकी खगोलशास्त्री क्लाइड टॉमबौ ने प्लूटो को खोज निकाला और इसे सौर मण्डल का नौवा ग्रह मान लिया गया। धीरे-धीरे प्लूटो के बारे में कुछ ऐसी चीजें पता चलीं जो अन्य ग्रहों से अलग थीं -
इन बातों से खगोलशास्त्रियों के मन में शंका बन गयी थी के कहीं प्लूटो वरुण का कोई भागा हुआ उपग्रह तो नहीं, हालांकि इसकी सम्भावना भी कम थी क्योंकि प्लूटो और वरुण परिक्रमा करते हुए कभी ज़्यादा पास नहीं आते। फिर, सन् १९९० के बाद, वैज्ञानिकों को बहुत सी वरुण-पार वस्तुएँ मिलने लगीं जिनकी कक्षाएँ, रूप-रंग और बनावट प्लूटो से मिलती जुलती थीं। आज वैज्ञानिकों ने यह पहचान लिया है के सौर मण्डल के इस इलाक़े में एक पूरा घेरा है जिसमें ऐसी ही वस्तुएँ पायी जाती हैं जिनमें से प्लूटो सिर्फ़ एक है। इसी घेरे का नाम काइपर घेरा रखा गया।
२००४-२००५ में इसी काइपर घेरे में हउमेया और माकेमाके मिले जो काफ़ी बड़े थे (हालांकि प्लूटो से थोड़े छोटे थे)। २००५ में काइपर घेरे से भी बाहर ऍरिस मिला, जो प्लूटो से बड़ा था। यह सारे अन्य ग्रहों से अलग और प्लूटो से मिलते जुलते थे। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ असमंजस में पड़ गया क्योंकि लगने लगा के ऐसी कितनी ही वस्तुएँ आने वाले सालों में मिलेंगी। या तो यह सब ग्रह थे या फिर प्लूटो को ग्रह बुलाना बंद करके कुछ और बुलाने की ज़रुरत थी। १३ सितम्बर २००६ को इस संघ ने ऐलान किया के प्लूटो ग्रह नहीं है और उन्होंने एक नई "बौना ग्रह" की श्रेणी स्थापित करी। प्लूटो, हउमेया, माकेमाके और ऍरिस अब बौने ग्रह कहलाते हैं।[17]
न्यू होराइज़न्स अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसन्धान संस्था नासा का एक अंतरिक्ष शोध यान है जो प्लूटो के अध्ययन के लिये छोड़ा गया था। इस यान का प्रक्षेपण 19 जनवरी 2006 को किया गया था जो नौ वर्षों के बाद 14 जुलाई 2015 को प्लूटो के सबसे नजदीक से होकर गुजरा।[18] प्लूटो और इसके उपग्रह शैरन के सबसे नज़दीक से यह यान 14 जुलाई 2015 को 12:03:50 (UTC) बजे गुजरा। इस समय इस यान की प्लूटो से दूरी लगभग 12,500 किलोमीटर थी और यह लगभग 14 किलोमीटर प्रति सेकेण्ड के वेग से गुजार रहा था[19][20]
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