हज़रत मैमूना बिन्ते अल हारिस (594–673 C.E.) (अंग्रेज़ी: Maymunah bint al-Harith) इस्लामिक पैगंबर मुहम्मद की पत्नी थीं और उम्मुल मोमिनीन अर्थात "विश्वास करने वालों की माँ" के रूप में भी माना जाता है। मूल नाम बराह (अरबी:بَرَّة) था, लेकिन मुहम्मद ने इसे मेमुनाह में बदल दिया, जिसका अर्थ है "अच्छी खबर"।
हज़रत मैमूना बिन्ते अल हारिस उम्मुल मोमिनीन | |
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जन्म |
Barrah bint al-Harith بَرَّة بِنْت ٱلْحَارِث ल. 594 C.E. Mecca, Hejaz, Arabia (present-day Saudi Arabia) |
मौत |
Dhu al-Hijjah, 51 A.H.; ल. January 671 C.E.
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समाधि | Sarif, Hejaz |
पदवी | Ummul-Muʾmineen |
प्रसिद्धि का कारण | Wife of the Islamic prophet Muhammad, Mother of the Believers |
जीवनसाथी | Muhammad (m. 629 – died. 632 C.E.) |
संबंधी |
सूची
Lubaba (full sister)
Zaynab (maternal half-sister) Asma (maternal half-sister) Salma (maternal half-sister) Ibn Abbas (maternal nephew) Khalid ibn al-Walid (maternal nephew) |
Sarif, Hejaz |
परिवार
उसके पिता मक्का के हिलाली जनजाति से अल-हारिस इब्न हज़न थे। उनकी मां यमन में हिमायरी जनजाति से हिंद बिन्त अवफ थीं । इब्न कसीर ने भी एक परंपरा का उल्लेख किया है कि ज़ैनब बिन्त खुज़ैमा (मुहम्मद की एक पत्नी) की ममेरी बहन थी।
विवाह
इस्लाम से पहले हज़रत मैमूना पहली शादी मसऊद बिन अम्र अस-सक्फी से हुई थी,लेकिन उसने उन्हें तलाक़ दे दिया तो फिर उनकी शादी अबू-रहम बिन अब्दुल-उज्ज़ा के साथ हुई, लेकिन उसका भी निधन हो गया और वह अभी जवान ही थीं। तीसरी शादी मक्का से लगभग 10 मील (16 किलोमीटर) सरीफ में 629 में मुहम्मद से शादी की। जब उसने उनसे शादी की तब वह 30 वर्ष की थी। इनसे मुहम्मद का आखरी निकाह था।[1] मयमुना तीन साल तक मुहम्मद के साथ रहीं।
हज़रत मैमूना शुभ क़ुरआन में
इस प्रकार, हज़रत मैमूना ने अपने आपको खुद हज़रत पैगंबर-उन पर ईश्वर की कृपा और सलाम हो-के हवाले कर दिया और उन्हीं के संबंध में शुभ क़ुरआन की यह आयत उतरीl
“और वह ईमानवाली स्त्री जो अपने आपको नबी के लिए दे दे, यदि नबी उससे विवाह करना चाहेl ईमानवालों से हटकर यह केवल तुम्हारे ही लिए हैl”(सूरा अल-अहज़ाब:५०)
मृत्यु
हज़रत मैमूना-अल्लाह उनसे खुश रहे-चारों इस्लामी खिलाफत के युग को देखीं और उनको सभी ख़लीफ़ा और विद्वानों का सम्मान प्राप्त रहाl वास्तव में वह हज़रत अमीर मुआविया के राज्य तक जिंदा रहीं, और हिजरत के इकानवें साल में सर्फ़ नामक स्थान पर उनका निधन हुआ जब वह लगभग ८० साल की थीं l वह उसी स्थान पर दफन हुईं जहां उनकी शादी का मंडप लगाया गया था, इस तरह अल्लाह सर्वशक्तिमान ने उनके क़ब्र को वहीं बनवाया जहां उनकी शादी हुई थीl[2]
सन्दर्भ
इन्हें भी देखें
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