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प्रदूषण के प्रकार विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
मृदा प्रदूषण मृदा में होने वाले प्रदूषण को कहते हैं। यह मुख्यतः कृषि में अत्यधिक कीटनाशक का उपयोग करने या ऐसे पदार्थ जिसे मृदा में नहीं होना चाहिए, उसके मिलने पर होता है। जिससे मृदा की उपज क्षमता में भी बहुत प्रभाव पड़ता है। इसी के साथ उससे जल प्रदूषण भी हो जाता है।[1]
भूमि पर्यावरण की आधारभूत इकाई होती है। यह एक स्थिर इकाई होने के नाते इसकी वृद्धि में बढ़ोत्तरी नहीं की जा सकती हैं। बड़े पैमाने पर हुए औद्योगीकरण एंव नगरीकरण ने नगरों में बढ़ती जनसंख्या एवं निकलने वाले द्रव एंव ठोस अवशिष्ट पदार्थ मिट्टी को प्रदूषित करने के कारण आज भूमि में प्रदूषण अधिक फैल रहा है। ठोस कचरा प्राय: घरों, मवेशी-गृहों, उद्योगों, कृषि एवं दूसरे स्थानों से भी आता है। इसके ढेर टीलों का रूप ले लेते हैं क्योंकि इस ठोस कचरे में राख, काँच, फल तथा सब्जियों के छिल्के, कागज, कपड़े, प्लास्टिक, रबड़, चमड़ा, इंर्ट, रेत, धातुएँ मवेशी गृह का कचरा, गोबर इत्यादि सम्मिलित हैं। हवा में छोड़े गये खतरनाक रसायन सल्फर, सीसा के यौगिक जब मृदा में पहुँचते हैं तो यह प्रदूषित हो जाती है।
भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में ऐसा कोई भी अवाछिंत परिवर्तन, जिसका प्रभाव मनुष्य तथा अन्य जीवों पर पड़ें या जिससे भूमि की प्राकृतिक गुणवत्ता तथा उपयोगिता नष्ट हो मृदा-प्रदूषण कहलाता है। भूमि पर उपलब्ध भू-सतह का लगभग ५० प्रतिशत भाग ही उपयोग के लायक है और इसके शेष ५० प्रतिशत भाग में पहाड़, खाइयां, दलदल, मरूस्थल और पठार आदि हैं। यहाँ यह बताना अति आवश्यक है कि विश्व के ७९ प्रतिशत खाद्य पदार्थ मिट्टी से ही उत्पन्न होते हैं। इस संसाधन (भूमि) की महत्ता इसलिए और भी बढ़ जाती है कि ग्लोब के मात्र २ प्रतिशत भाग में ही कृषि योग्य भूमि मिलती है। अत: भूमि या मिट्टी एक अतिदुर्लभ (अति सीमित) संसाधन है। निवास एवं खाद्य पदार्थों की समुचित उपलब्धि के लिए इस सीमित संसाधन को प्रदूषण से बचाना आज की महती आवश्यकता हो गयी है। आज जिस गति से विश्व एवं भारत की जनसंख्या बढ़ रही है इन लोगों की भोजन की व्यवस्था करने के लिए भूमि को जरूरत से ज्यादा शोषण किया जा रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप आज भूमि की पोषक क्षमता कम होती जा रही है। पोषकता बढ़ाने के लिए मानव इसमें रासायनिक उर्वरकों को एवं कीटनाशकों का जमकर इस्तेमाल कर रहा है।
इसके साथ ही पौधों को रोगों व कीटाणुओं तथा पशु पक्षियों से बचाने के लिए छिड़के जाने वाले मैथिलियान, गैमेक्सीन, डाइथेन एम ४५, डाइथेन जेड ७८ और २,४ डी जैसे हानिकारक तत्त्व प्राकृतिक उर्वरता को नष्ट कर मृदा की गुणवत्ता में व्यतिक्रम उत्पन्न कर इसे दूषित कर रहे हैं जिससे इसमें उत्पन्न होने वाले खाद्य पदार्थ विषाक्त होते जा रहे हैं और यही विषाक्त पदार्थ जब भोजन के माध्यम से मानव शरीर में पहुँचते हैं तो उसे नाना प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं।
खनन से निकलने वाले मलबे को पास ही के किसी जगह में डाल दिया जाता है। जिससे मलबे के विशाल गर्त बन जाते हैं। इमारती पत्थर, लौह, अयस्क, अभ्रक, ताँबा, आदि खनिजों के उत्खनन से निकलने वाले मलबे मृदा की उर्वरा शक्ति को समाप्त कर देते हैं। वर्षा के समय जल के साथ मिल कर यह मलबे दूर दूर तक जा कर मृदा को प्रदूषित करते हैं।
उद्योगों में रासायनिक या अन्य प्रकार के कई कचरे होते हैं, जिसे आसपास या दूर किसी स्थान पर डाल दिया जाता है। इससे उतने हिस्से में मृदा प्रदूषित हो जाता है और उतने भाग में पेड़-पौधे भी उग नहीं पाते हैं।
मृदा प्रदूषण के जैव स्त्रोत या कारको के अंतर्गत उन सूक्ष्म जीवो तथा अवांछित पेड़ को शामिल किया जाता है जो मिट्टी की उर्वर शक्ति को कम कर देते है।इन पदार्थों में की हानिकारक जीव जैसे बैक्टीरिया,वॉयरस व अन्य परजीवी मृदा में पनपते हैं
इसका प्रभाव मुख्यतः पेड़-पौधों पर पड़ता है। इससे आसपास कोई भी पेड़-पौधे जीवित नहीं रह पाते हैं। इसके अलावा उस पर यदि कोई वृक्ष होने पर भी वह खाने योग्य नहीं होता है या उसे अन्य जीव जन्तु द्वारा खाने पर उससे वह बीमार हो जाते हैं। पेड़-पौधे की कमी से जीवों के भोजन में भी कमी आ जाती है। अर्थात आस पास के सभी जीवन चक्र पर इसका प्रभाव पड़ता है।
मनुष्यों के भोजन हेतु कृषि आविष्कारक है किंतु अत्यधिक मृदा प्रदुषण के करण तथा:रसायनिक खदों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति समाप्त हो चुकी है जिससे अनाज उत्पादन में भारी मात्रा में काम आई है, जिस से संपूर्ण मानव जाति के जीवन यापन में समय का सामना करना पड़ा रहा है
इस तरह की दूसरी दुषित भूमि से उत्पन्न फल सब्जियां खाने से मनुष्य अनेको गंभीर बिमारीयों से ग्रास्ट हो जाता है जो की मनुश्य की संपूर्ण कार्यविधि प्रभावित है |ं
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