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मेवाड़ के शासक (शासनकाल: 1421–1433 ईस्वी) विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
राणा मोकल मेवाड़ के राणा लाखा तथा मारवाड़ की राजकुमारी रानी हंंसाबाई केे पुत्र थेे।
मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के शासक (1326–1948 ईस्वी) | ||
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राणा हम्मीर सिंह | (1326–1364) | |
राणा क्षेत्र सिंह | (1364–1382) | |
राणा लखा | (1382–1421) | |
राणा मोकल | (1421–1433) | |
राणा कुम्भ | (1433–1468) | |
उदयसिंह प्रथम | (1468–1473) | |
राणा रायमल | (1473–1508) | |
राणा सांगा | (1508–1527) | |
रतन सिंह द्वितीय | (1528–1531) | |
राणा विक्रमादित्य सिंह | (1531–1536) | |
बनवीर सिंह | (1536–1540) | |
उदयसिंह द्वितीय | (1540–1572) | |
महाराणा प्रताप | (1572–1597) | |
अमर सिंह प्रथम | (1597–1620) | |
करण सिंह द्वितीय | (1620–1628) | |
जगत सिंह प्रथम | (1628–1652) | |
राज सिंह प्रथम | (1652–1680) | |
जय सिंह | (1680–1698) | |
अमर सिंह द्वितीय | (1698–1710) | |
संग्राम सिंह द्वितीय | (1710–1734) | |
जगत सिंह द्वितीय | (1734–1751) | |
प्रताप सिंह द्वितीय | (1751–1754) | |
राज सिंह द्वितीय | (1754–1762) | |
अरी सिंह द्वितीय | (1762–1772) | |
हम्मीर सिंह द्वितीय | (1772–1778) | |
भीम सिंह | (1778–1828) | |
जवान सिंह | (1828–1838) | |
सरदार सिंह | (1838–1842) | |
स्वरूप सिंह | (1842–1861) | |
शम्भू सिंह | (1861–1874) | |
उदयपुर के सज्जन सिंह | (1874–1884) | |
फतेह सिंह | (1884–1930) | |
भूपाल सिंह | (1930–1948) | |
नाममात्र के शासक (महाराणा) | ||
भूपाल सिंह | (1948–1955) | |
भागवत सिंह | (1955–1984) | |
महेन्द्र सिंह | (1984–2024) | |
मेवाड़ राज्य की विषय परिस्थितियों का दौर राणा लाखा की मृत्यु के बाद प्रारंभ हो गया। राणा मोकल को परिस्थितियाँ विरासत के रूप में प्राप्त हुई, क्योंकि इनके पिता लाखा का विवाह मारवाड़ की राजकुमारी हंसाबाई से वृद्धावस्था में हुआ और बहुत जल्द ही राणा लाखा की मृत्यु हो गयी। 1421 में जब मोकल शासक बना तो अल्पायु होने के कारण चूण्डा ने उसके संरक्षक के रुप में कार्य किया, मृत्यु के पश्चात् मेवाड़ का शासन हंसाबाई व उसके भाई राव रणमल केे हाथों में आ गया, कुुंवर चूड़ा अपने अपमान के कारण मांंडू ( मध्य प्रदेश) चला गया, राणा मोकल का शासनकाल 1421 ई.-1433 ई. के बीच माना जाता है।
राणा मोकल नेे अपनी पुत्री लाला मेेेवाड़ी का विवाह गागरोण के शासक अचलदास खींची सेे कर दी। उन्होंने 1428 ई. के रामपुरा युद्ध में नागौर शासक फिरोज खाँ को पराजित किया। मेवाड़ राज्य में राणा मोकल ने हिंदू परम्परा को स्थापित करने के लिए तुुुलादान पद्दति को लागू किया इस परम्परा के तहत् मंंदिरों के लिए सोना-चाँदी दान के रूप में दिया जाता था। महाराणाा मोकल ने एकलिंंगजी के मंदिर के परकोटे का निर्माण कराया। इसी प्रकार चित्तौड़ में स्थित त्रिभुवन नारायण मंदिर का पुनः निर्माण इन्ही के काल में हुआ, जिसेे समधीश्ववर मंंदिर केे नाम से जाना जाता है। इसी प्रकार कुुुम्भा सेे पूूूर्व राणा मोकल ने मेवाड़ की धार्मिक आस्था को बनाए रखा।
राणा को स्थापत्य कला से भी प्रेम था इनके दरबार में फना , मना , विशल नामक वास्तुकार शोभा बढ़ाते थे। एकलिंंग मंदिर के परकोटे का निर्माण किया।
जब राणा मोकल गुजरात के शासक अहमद शाह के विरुद्ध अभियान पर जा रहे थे तो रास्ते मे जिलवाडा नामक स्थान पर राणा क्षेेेत्र सिंह के दासीपुुत्र चाचा व मेरा ने राणा मोकल की हत्या कर दी। वस्तुतः शाही परिवार में शासक की विजातीय पत्नी को पासवान/ पङदायत/ खवास कहा जाता था। इनकी संतानो को चेला /गोटा बरदार/खवास पुत्र/लालजी/वाभा कहा जाता था । मारवाड़ में ऐसी संतानो को महाराजा श्री तख्त सिंह जी के शासनकाल में राव राजा कहा जाता था। इनको बङे बङे ठिकाने इनायत किये जाते थे ताकि उनका जीवन स्तर राजपरिवार के स्तर पर के अनुकूल बना रहे। चाचा और मेरा भी ऐसे ही पासवान पुत्र थे। इसके उपरांत 1433 ई. में महाराणा कुम्भा गद्दी पर बैठे।
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