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मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychological test) व्यक्ति के स्वभाव के वस्तुनिष्ठ एवं मानक माप हैं। आर. एन. गियन के अनुसार मनोवैज्ञानिक परीक्षण वे हैं जो कौशल, योग्यताओं अथवा व्यक्तिगत विशेषताओं का माप
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मनोमितीय प्रामाणिक व्यवहार के प्रतिचयनों द्वारा किये जाते हैं।
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के आगमन से उद्योगों को एक नई दिशा उपलब्ध हुई है। यों तो इनका उपयोग अधिकाधिक मात्रा में होता है किन्तु सबसे अधिक उपयोग कार्यकर्त्ता के चुनाव में होता है। वर्तमान में व्यावसायिक चयन में प्राथमिक साधन के रूप में ये महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुए हैं। साक्षात्कार प्रणाली की आत्मनिष्ठता से जब प्रबंधकों को निराशा मिली तब लोगों का ध्यान मनोवैज्ञानिक परीक्षणों की ओर गया। इन परीक्षणों के फलस्वरूप उम्मीदवार के चयन, स्थानान्तरण, प्रोन्नति, प्रशिक्षण तथा निर्देशन हेतु मूल्यांकन का विशुद्ध वस्तुनिष्ठ आधार प्राप्त हुआ। व्यावसायिक चयन में आवेदन-पत्रों तथा साक्षात्कार की तुलना में इन परीक्षणों का लाभ निश्चित है। मनोवैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा आवेदन-पत्र तथा साक्षात्कार की समस्याओं का समाधान हो सकता है। इसमें व्यक्तिगत निर्णय का अवसर नहीं रहता है। इसमें सत्यता तथा विश्वसनीयता भी अधिक रहती है।
मनोवैज्ञानिक परीक्षण प्रारंभ में ही दुर्बल उम्मीदवार की छंटनी कर देते हैं। ये परीक्षण भविष्य सूचक भी होते हैं। इनके द्वारा आवेदक की सफलता हेतु भविष्यवाणी की जा सकती है। इन परीक्षणों द्वारा किया गया चयन कुशलता वृद्धि में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है। इन परीक्षणों द्वारा निम्न लाभ हो सकते हैं-
पाया कि इन परीक्षणों के बाद असफल होने वाले उम्मीदवारों की संख्या में अपेक्षाकृत कमी आ जाती है। स्ट्रामबर्ग (Stromberg) ने अपने अध्ययन में पाया कि इन परीक्षणों के उपयोग से चयन विधि के रूप में करने से योग्य आवेदन आकृष्ट होते हो। इस प्रकार मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का एक अर्थ, सम्मोहनकारी महत्त्व भी होता है।
में महत्त्वपूर्ण कमी होती है। दृष्टि रोग, शारीरिक अस्वस्थता, मांसपेशीय नियंत्रण क्षमता की दुर्बलता आदि विकृतियां किसी न किसी रूप में दुर्घटना के लिए जिम्मेदार होती हैं। मनोवैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा इस प्रकार की विकृतियों का पूर्व में ही पता लग जाता है जिससे भविष्य में होने वाली दुर्घटनाओं के प्रति सचेत हुआ जा सकता है तथा इन दुर्घटनाओं की संख्या में भी कमी लायी जा सकती है।
से श्रम निर्गमन की मात्रा में कमी आती है। वाड्सवर्थ तथा हेपनर (Wadsworth and Hepner) ने इन निष्कर्षों की संपुष्टि की है। कूक (Cook) नामक विद्वान् ने अपने अध्ययन से यह सिद्ध किया है कि जो कर्मचारी मनोवैज्ञानिक परीक्षणों में असफल होते हो वे अन्ततः दस सप्ताह के भीतर अपना कार्य छोड़ देते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि इन परीक्षणों से उम्मीदवार की प्रवृत्तियों के पहले से ही ज्ञात होने पर आरंभ में ही उस कर्मचारी की छंटनी हो सकती है। कारखाने में श्रम-निर्गमन की समस्या से मुक्ति मिल सकती है।
मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का जहां एक ओर चयन आधार के रूप में कुशलता की वृद्धि कर अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देते हो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी सीमाएं हो जो इन परीक्षणों के साथ जन्मजात जुड़ी हुई है जिन्हें अनदेखी भी नहीं किया जा सकता है। इस विधि की कुछ प्रमुख त्रुटियां हैं-
अन्य प्रविधियों की सहायता ही न लेनी पड़े। ये परीक्षण मात्र विभिन्न प्रकार के कार्य संपादनों का निरीक्षण ही कर सकते हैं किंतु कारखाने की सहज स्वाभाविकता, संजीदगी आदि को परीक्षणों द्वारा पुनः उसी रूप में प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं। इन परीक्षणों का उपयोग इन विधियों को पूर्ण बनाने में किया जा सकता है। कार्य की सफलता की भविष्यवाणी मात्र इन परीक्षणों के द्वारा ही सन्तोषप्रद रूप में नहीं की जा सकती है क्योंकि यह तथ्य सामने आया है कि कार्य की सफलता और मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के प्राप्तांकों का सह-संबंध अधिक नहीं होता है।
नहीं होता। नए परीक्षकों हेतु यह मनोरंजक कार्य है। इसलिए संभव है कि इसके परिणाम भी अतिरंजित ही हों। इस स्थिति में इन परीक्षणों का सही उपयोग नहीं होता है।
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