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समान नाम के अन्य लेखों के लिए देखें मन्दाकिनी (बहुविकल्पी)
मन्दाकिनी या गैलेक्सी, असंख्य तारों का समूह है जो स्वच्छ और अँधेरी रात में, आकाश के बीच से जाते हुए अर्धचक्र के रूप में और झिलमिलाती सी मेखला के समान दिखाई पड़ता है। यह मेखला वस्तुत: एक पूर्ण चक्र का अंग हैं जिसका क्षितिज के नीचे का भाग नहीं दिखाई पड़ता। भारत में इसे मंदाकिनी, स्वर्णगंगा, स्वर्नदी, सुरनदी, आकाशनदी, देवनदी, नागवीथी, हरिताली आदि भी कहते हैं।
हमारी पृथ्वी और सूर्य जिस गैलेक्सी में अवस्थित हैं, रात्रि में हम नंगी आँख से उसी गैलेक्सी के ताराओं को देख पाते हैं। अब तक ब्रह्मांड के जितने भाग का पता चला है उसमें लगभग ऐसी ही १९ अरब गैलेक्सीएँ होने का अनुमान है। ब्रह्मांड के विस्फोट सिद्धांत (बिग बंग थ्योरी ऑफ युनिवर्स) के अनुसार सभी गैलेक्सीएँ एक दूसरे से बड़ी तेजी से दूर हटती जा रही हैं।
ब्रह्माण्ड में सौ अरब गैलेक्सी अस्तित्व में है। जो बड़ी मात्रा में तारे, गैस और खगोलीय धूल को समेटे हुए है। गैलेक्सियों ने अपना जीवन लाखो वर्ष पूर्व प्रारम्भ किया और धीरे धीरे अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त किया। प्रत्येक गैलेक्सियाँ अरबों तारों को समेटे हुए है। गुरुत्वाकर्षण तारों को एक साथ बाँध कर रखता है और इसी तरह अनेक गैलेक्सी एक साथ मिलकर तारा गुच्छ में रहती है।
प्रारंभ में खगोलशास्त्रियों की धारणा थी कि ब्रह्मांड में नई गैलेक्सियों और क्वासरों का जन्म संभवत: पुरानी गैलेक्सियों के विस्फोट के फलस्वरूप होता है। लेकिन यार्क विश्वविद्यालय के खगोलशास्त्रियों-डॉ॰सी.आर. प्यूटर्न और डॉ॰ए.ई राइट ने गैलेक्सियों के चार समूहों की अंतरक्रियाओं का अध्ययन करके इस धारणा का खंडन किया है। उन्होंने यह बताया कि गैलेक्सियों के बीच में ऐसी विस्फोटक अंतर क्रियाएँ नहीं होती हैं जो नई गैलेक्सियों को जन्म दे सकें।
अधिकाँश गैलेक्सियों का केंद्र तारों से भरा हुआ गोलाकार भाग होता है, जिसे नाभिक कहा जाता है और यह नाभिक अपने चारों ओर एक तलीय गोलाकार डिस्क से जुडा होता है। खगोलविज्ञानी गैलेक्सियों को उनके आकार के आधार पर मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित करते हैं- सर्पिल गैलेक्सी, दीर्घवृत्तीय गैलेक्सी तथा अनियमितत गैलक्सी। 'सर्पिल गैलेक्सी' डिस्क के आकार की होती है, जिसके बीच का भाग उभरा होता है। इस केन्द्रीय उभार से चमकीले सर्पिल निकले होते हैं। इस गैलेक्सी में स्थित तारे अपेक्षाकृत कम आयु के होते हैं। हमारी आकाशगंगा "मिल्की वे" इसी के अंतर्गत आती है। 'दीर्घवृत्तीय गैलेक्सी' चक्राकार या ग्लोबाकार होती है। इन गैलेक्सियों का केन्द्र सर्वाधिक चमकीला होता है और परीधि की तरफ चमक कम होता जाता है। इस गैलेक्सी में स्थित तारे अपेक्षाकृत अधिक आयु के होते हैं। 'अनियमित गैलेक्सी' का कोई निश्चित आकार नहीं होता है। इनका आकार परिवर्तित होता रहता है। कम गुरुत्व शक्ति के कारण इनमें ऐसा होता है। यह कोई नहीं जानता कि क्यों गैलेक्सियाँ एक निश्चित रूप धारण करती है। शायद यह गैलेक्सियों के घूर्णन के वेग, गुरुत्व शक्ति और उसमें स्थित तारों के बनने कि गति पर निर्भर करता है।
हमारी गैलेक्सी (जिसमें हमारी पृथ्वी है) की चौड़ाई और चमक सर्वत्रसमान नहीं है। धनु (सैजिटेरियस) तारामंडल में यह सबसे अधिक चौड़ी और चमकीली है। दूरदर्शी से देखने पर गैलेक्सी में असंख्य तारे दिखाई पड़ते हैं। विभिन्न चमक के तारों की संख्या गिनकर, उनकी दूरी की गणना कर और उनकी गति नापकर ज्योतिषियों ने गैलेक्सी के वास्तविक रूप का बहुत अच्छा अनुमान लगा लिया है। यदि आकाश में दिखाई पड़नेवाले रूप के बदले त्रिविमतीय अवकाश (स्पेस) में गैलेक्सी के रूप पर विचार किया जाए तो पता चलता है कि गैलेक्सी लगभग समतल वृत्ताकार पहिए के समान है जिसकी धुरी के पास का भाग कुछ फूला हुआ है। चित्र में गैलेक्सी का बगल से चित्र दिखाया गया है (ऊपर से देखने पर गैलेक्सी पूर्ण वृत्ताकार दिखाई पड़ेगी)। इस पहिए का व्यास लगभग एक लाख प्रकाशवर्ष है (१ प्रकाशवर्ष=५.९´१०१२) मील या पृथ्वी से सूर्य की दूरी का ६३ हजार गुना) और मोटाई ३,००० से ६,००० प्रकाशवर्ष के बीच है। केंद्र के पास की मोटाई लगभग १५,००० प्रकाशवर्ष है। हमारी गैलेक्सी में तारे समान रूप से वितरित नहीं हैं। बीच बीच में अनेक तारागुच्छ हैं और इसकी भी संभावना है कि देवयानी (ऐंड्रोमीडा) नीहारिका के समान हमारी गैलेक्सी में भी सर्पिल कुंडलियाँ (स्पाइरल आर्म्स) हों। तारों के बीच में सूक्ष्म धूलि और गैस फैली हैं, जो दूर के तारों का प्रकाश क्षीण कर देती हैं। धूलि और गैस का घनत्व संस्था के मध्यतल में अधिक है। कहीं कहीं धूलि के घने बादल हो जाने से काली नीहारिकाएँ बन गई हैं। कहीं गैस के बादल पास के तारों के प्रकाश से उद्दीप्त होकर चमकती नीहारिका के रूप में दिखाई पड़ते हैं। हमारी गैलेक्सी का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान का लगभग एक खरब (१०११) गुना है। इसमें से प्राय: आधा तो तारों का द्रव्यमान है और आधा धूलि और गैस का।
हमारी गैलेक्सी बीच में फूली हुई वृत्ताकार पूड़ी के समान है। इसमें एक वृत्त के भीतर ही वे सब तारे हैं जो हमें आकाश में पृथक्-पृथक् दिखाई पड़ते हैं। हमारी गैलेक्सी के चारों ओर बहुत दूर तक तारे और तारागुच्छ विरलता से फैले हुए हैं।
हमारी गैलेक्सी के केंद्र के पास तारे संख्या में अधिक घने हैं और किनारे की ओर अपेक्षाकृत बिखरे हुए हैं। सभी तारे केंद्र की परिक्रमा कर रहे हैं, केंद्र के निकटवाले तारे अधिक गति से और दूरवाले कम गति से। हमारा सूर्य केंद्र से लगभग ३०-३५ हजार प्रकाशवर्ष दूर है और गैलेक्सी के मध्य तल में हैं। इसी कारण अपनी गैलेक्सी हमें वैसी मेखला की तरह दिखाई पडुती हैं जिसका ऊपर वर्णन किया गया है। पृथ्वी से गैलेक्सी का केंद्र धनु तारामंडल की ओर है। इसीलिए गैलेक्सी के केंद्र की परिक्रमा करता है। इस परिक्रमा में उसका वेग १५० मील प्रति सेंकड हैं। इस वेग से भी पूरी परिक्रमा में सूर्य को २० करोड़ वर्ष लग जाते हैं।
कुछ तीव्र गतिवाले तारे और गोलीय तारगुच्छ (ग्लोब्यूलर क्लस्टर) हमारी गैलेक्सी की सीमा के बाहर हैं, किंतु ये भी हमारी गैलेक्सी से संबद्ध हैं और उसी के अंग माने जाते हैं (द्र. चित्र) लगभग १०० गोलीय तारागुच्छ ज्ञात हैं। इनका वितरण गोलाकार है। इन तारागुच्छों के वितरण से गैलेक्सी का केंद्र ज्ञात किया जा सकता है। तारों की गति नापने से भी केंद्र की गणना में सहायता मिलती है। रूप और विस्तार में गैलेक्सी बहुत सी अगांग (एक्स्ट्रा गैलक्टिक) नीहारिकाओं से (अर्थात उन गैलेक्सियों से जो हमारी गैलेक्सी से पूर्णतया बाहर हैं) मिलती जुलती हैं।
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