Loading AI tools
अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्र में अवधारणा विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
भुगतान शेष के घटक 1. चालू खाता 2.पूँजीगत खाता
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (अगस्त 2016) स्रोत खोजें: "भुगतान शेष" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सामान्यत: सभी देश एक दूसरे के साथ माल का आयात निर्यात करते हैं, सेवाओं का आदान प्रदान करते हैं और राशि का लेन देन भी करते हैं। इस प्रकार एक निश्चित अवधि के पश्चात् इन सभी मदों पर लेन देन का यदि हिसाब निकाला जाय तो किसी एक देश को दूसरे से भुगतान लेना शेष होता है और दूसरे देश को किसी किसी तीसरे देश का भुगतान चुकाना शेष रहता है। विभिन्न देशों के बीच इस प्रकार के परस्परिक लेन देन के शेष को भुगतान शेष (Balance of payments) कहते हैं। यों कहना चाहिए कि किसी निश्चित तिथि को एक देश द्वारा अन्य देशों को चुकाई जानेवाली सकल राशि तथा अन्य देशों से उसे प्राप्त होनेवाली सकल राशि के अंतर को उस देश का 'भुगतान शेष' कहते हैं।
भुगतान। शेष की मदे 1.स्वायत्त मदे: जो लाभ के उदेष्य से की जाती हे 2.समायोजन मदे:जो लाभ के उदेश्य से नहीं की जाती हे
किसी एक देश को दूसरे देशों से भुगतान प्राप्त करने का अधिकार तथा अवसर तब आता है जब वह देश उन देशों को माल निर्यात करे, अथवा अपने जहाजों, बैंकों, इंश्योरेंस कंपनियों तथा कुशल विशेषज्ञों द्वारा अपनी सेवाएँ प्रदान करे अथवा उन देशों के उद्योग व्यापार में अपनी पूँजी लगाकर लाभांश तथा ब्याज प्राप्त करें। ऐसा भी हो सकता है कि उस देश के द्वारा अन्य देशों को दिए गए ऋणों की मूलराशि का उसे भुगतान प्राप्त होता हो या अन्य देशों से ही उसे ऋण स्वरूप राशि मिलती हो। इसके अतिरिक्त यह भी संभव है कि अन्य देशों के देशाटक पर्यटक उस देश में आकर माल खरीदें या सेवाओं का उपभोग करे। इन सभी परिस्थितियों में उस देश को अन्य देशों से भुगतान प्राप्त करने का अवसर होगा। इसके विपरीत, संभव है, इन्हीं मदों पर उस देश को अन्य देशों का कुछ भुगतान चुकाना भी हो। इस प्रकार किसी एक तिथि को इन सभी मदों पर एक देश की सफल लेनदारी का अंतर निकालने से उस देश का भुगतान शेष ज्ञात हो जायगा।
वैसे तो देश के बीच इस प्रकार का लेन देन किसी न किसी मद पर निरंतर चलता रहता है, पर यदि किसी निश्चित तिथि को एक देश का विभिन्न मदों पर लेन देन का अंतर निकाला जाए तो अवश्य निम्न परिस्थितियों में से कोई एक परिस्थिति सामने आती है:
इस प्रकार भुगतान शेष 'अनुकूल', 'प्रतिकुल' व 'संतुलित' या 'पक्ष' में, 'विपक्ष' में और 'बराबर' कहा जाता है। पर इसका संबंध किसी देश विशेष के साथ सापेक्ष अर्थ में व्यक्त करना चाहिए। यह कहना सार्थक नहीं कि भुगतान शेष अनुकूल, प्रतिकूल व संतुलित है; वरन् यह कहना होगा कि अमुक तिथि को या अमुक अवधि में अमुक देश का भुगतान शेष उसके अनुकूल है, प्रतिकूल है अथवा संतुलित है।
भुगतान शेष निकालने में न केवल माल के आयात निर्यात का आधिक्य जिसे 'व्यापार शेष' कहते हैं, ज्ञात किया जाता है वरन् उक्त वर्णित सभी मदों से सकल लेनदारी और सकल देनदारी का अंतर भी ज्ञात किया जाता है। लेन देन के निरंतर क्रम में भुगतान शेष अनिवार्यत: संतुलित हो जाता है पर किसी तिथिविशेष को किसी देश का भुगतान शेष उसके अनुकूल या प्रतिकूल ही पाया जाता है।
किसी देश का अनुकूल तथा प्रतिकुल भुगतान शेष उस देश की आंतरिक आर्थिक स्थिति का परिचायक माना जाता है। यदि भुगतान शेष अनुकूल रहा तो इसका अर्थ होगा उस देश द्वारा निर्यात का बाहुल्य, उत्पादन की प्रचुरता, उद्योग व्यापार की सबलता, विदेशी मुद्रा की कमाई और राष्ट्र के स्वर्णकोश में वृद्धि। इसके विपरीत प्रतिकूल भुगतान शेष का अर्थ होगा आयात का बाहुल्य, व्यापार उद्योग की शिथिलता, उत्पादन में गिरावट, विनियोग का अभाव, विदेशी मुद्रा और राष्ट्र के स्वर्णकोश में कमी। आयोजन व विकास के वर्तमान युग में विकसित देशों से पूँजीगत माल एवं कुशल विशेषज्ञों की आवश्यक मात्रा आयात करने के हेतु यह अनिवार्य हो गया है कि भुगतान शेष देश के पक्ष में अर्थात अनुकूल बना रहे। आज प्रत्येक देश इसी उद्देश्य के लिये सतत प्रयत्नशील है।
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.