भारत या भरत बृहत भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर भाग में बसने वाले आर्य समुदाय की एक शाखा थी। इनका उल्लेख ऋग्वेद के तीसरे मंडल में मिलता है जो इसी समुदाय के महऋषि विश्वामित्र द्वारा रचित कहा जाता है। ऋग्वेद ३:३३ में पूर्ण भारत क़बीले द्वारा एक नदी को पार करने का वर्णन है। ऋग्वेद के सातवे मंडल में भारत लोगों की दस राजाओं के युद्ध (दशराज्ञ युद्ध) में भूमिका का बखान है जिसमें उनकी तृत्सु शाखा के राजा सुदास विजयी रहे। इससे हिन्द-आर्यों पर उनका बोलबाला हो गया और भारत लोग सिन्धु नदी क्षेत्र से आगे बढ़कर कुरुक्षेत्र के इलाक़े में बस पाए।[1][2] उस काल में राजनैतिक व्यवस्था गणतांत्रिक क़बीलों से परिवर्तित होकर राजाओं पर केन्द्रित भी हो रही थी। तृत्सु-समेत दशराज्ञ युद्ध में विजयी भारत क़बीला राजा-प्रथा पर आधारित था जबकि उनके विरोध में खड़े १० क़बीले लगभग सभी लोकतांत्रिक थे।[3]

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भारत नाम की एक प्रारंभिक वैदिक जनजाति या जनसमूह था जो ईसा पूर्व दूसरी सहस्राब्दी के उत्तरार्ध में अस्तित्व में था। इस जनजाति या जनसमूह का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। भारत का प्राचीन नाम भारत जनजाति या जनसमूह के नाम पर "भारतवर्ष" या "भारत" या "भारत-भूमि" रखा गया था। भारत नाम सर्वप्रथम भारत जनजाति या जनसमूह के नाम पर ही रखा गया था।[4][5]

इतिहास में आगे चलकर भारत और पुरु क़बीलों का विलय हो गया जिस से कुरु समुदाय उत्पन्न हुआ। आगे चलकर इसी नाम से सम्राट भरत हुए जिनके नाम पर आधुनिक भारत राष्ट्र का नाम पड़ा है।[6]

विद्वानों का मत है कि ये लोग उस क्षेत्र के निवासी थे जो वर्तमान पंजाब के रावी नदी का क्षेत्र है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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