राम, रामायण में ब्रह्मांड के राजा[1], दशरथ और कौशल्या के ज्येष्ठ पुत्र, सीता के पति, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न के भाई थे, जिन्होंने राज सिंहासन त्याग कर १४ वर्ष वन में व्यतीत किए व रावण का वध किया।
राम | |
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धनुष और बाण लेकर खड़े हुए श्याम वर्ण राम | |
अन्य नाम | परमपुरुष,सनातन पुरुष,वैकर्तन , राघव, श्रीरामचंद्र, श्रीदशरथसुत, श्रीकौशल्यानंदन, श्रीसीतावल्लभ, श्रीरघुनन्दन, श्रीरघुवर, श्रीरघुनाथ, काकुत्स्थ, श्रीरामचन्द्र, श्रीराम, राम पण्डित, बोधिसत्व राम , ककुत्स्थकुलनंदन आदि। |
निवासस्थान | अयोध्या(साकेत),वैकुण्ठलोक, बनारस |
मंत्र | ॐ श्री रामचन्द्राय नमः, ॐ रां रामाय नमः, सर्व शक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नमः ॥ |
अस्त्र | कोदण्ड धनुष/शारंग धनुष |
जीवनसाथी | सीता(श्री) |
माता-पिता | |
भाई-बहन | भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न और शांता |
शास्त्र |
वाल्मीकि रामायण रामचरितमानस विष्णु पुराण भागवत पुराण अध्यात्म रामायण अदभुत रामायण दसरथ जातक पद्मपुराण |
त्यौहार | राम नवमी, दीपावली, दशहरा |
नाम-व्युत्पत्ति एवं अर्थ
राम का नामकरण, संत वसिष्ठ ने जन्म के १२वें दिन किया।[2] 'रम्' धातु में 'घञ्' प्रत्यय के योग से 'राम' शब्द निष्पन्न होता है।[3] 'रम्' धातु का अर्थ रमण (निवास, विहार) करने से सम्बद्ध है। 'विष्णुसहस्रनाम' पर लिखित अपने भाष्य में आद्य शंकराचार्य ने पद्मपुराण का उदाहरण देते हुए कहा है कि नित्यानन्दस्वरूप भगवान् में योगीजन रमण करते हैं, इसलिए वे 'राम' हैं।[4]
साहित्य में उल्लेख
- उपनिषद में उनके अवतारी पुरुष/परम पुरुष/सनातन पुरुष/परमात्मा के रूप में वर्णन मिलता है।
- 'राम' का सर्वप्रथम उल्लेख वाल्मीकि रामायण एवं पुराणों में मिलता है वाल्मीकि रामायण के अनुसार वेदों में प्रभु श्री राम को परमात्मा/आदिपुरुष /परमपुरुष के रूप में जाना जाता है।
- दसरथ जातक
जन्म
रामायण के अनुसार दशरथ के मन में, नौ हजार वर्ष की आयु में[10] पुत्र का आभाव होने की ग्लानि हुई।[11] तदुपरांत सम्राट दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ (पुत्र प्राप्ति यज्ञ) कराया। रानी कौशल्या ने आकर बड़ी प्रसन्नता के साथ श्रद्धापूर्वक घोड़े की परिक्रमा की और घोड़े को त्रि कृपाण से मारा [12] रानी कौशल्या ने अनुष्ठान के परिणामों की इच्छा रखते हुए एक रात उस घोड़े के साथ बितायी जो पक्षी की तरह उड़ता था| [13] तब पुजारी एक नियंत्रित इंद्रियों के साथ घोड़े की चर्बी ली और उसे शास्त्रों के अनुसार पकाया, फिर आग की वेदी में गिराकर भोजन के रूप में सेंकने लगे[14]
यज्ञ के फलस्वरूप उनके पुत्रों का जन्म हुआ। श्रीराम चारों भाइयों में सबसे बड़े थे। एक मान्यता के अनुसार उनकी एक बहन भी थी जिसका नाम शांता था, हालाँकि वाल्मीकीय रामायण, अध्यात्म रामायण एवं श्रीरामचरितमानस जैसे सर्वमान्य ग्रन्थों में कहीं शांता का उल्लेख नहीं है। महाभारत के अनुसार शांता महाराज दशरथ के मित्र[15] लोमपाद की पुत्री थी जिनका विवाह ऋष्यशृङ्ग (शृंगी ऋषि) से हुआ था।[16] श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था।[17] इसलिए हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को श्रीराम-जयंती या रामनवमी का पर्व मनाया जाता है।
जन्म-समय
कुछ हिंदू ग्रंथों में, राम के बारे में कहा गया है कि वे त्रेता युग में रहते थे। उनके लेखकों का अनुमान है कि उनका समय लगभग 5,000 ईसा पूर्व था। कुछ अन्य शोधकर्ता राम को कुरु और वृष्णि नेताओं की सूचियों के आधार पर 1250 ईसा पूर्व,[18] के आसपास मानते हैं। एक भारतीय पुरातत्वविद् हंसमुख धीरजलाल सांकलिया के अनुसार, ये सब "शुद्ध अटकलें" हैं।
पौराणिक शोध
रामकथा से सम्बद्ध सर्वाधिक प्रमाणभूत ग्रन्थ आदिकाव्य वाल्मीकीय रामायण में श्रीराम के जन्म के सम्बन्ध में निम्नलिखित वर्णन उपलब्ध है:
- चैत्रे नावमिके तिथौ।।
- नक्षत्रेऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पञ्चसु।
- ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह।।[19]
त्रेता युग में चैत्र मास की नवमी तिथि में जब चन्द्रमा कर्क राशि के पुनर्वसु नक्षत्र में, सूर्य मेष राशि में, मंगल मकर राशि में, शनि तुला राशि में, बृहस्पति कर्क राशि में तथा शुक मीन राशि में (पांचों ग्रह उच्च में) स्थित थे, राम का जन्म हुआ।[20]
पौराणिक साहित्य में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार एक चतुर्युग में 43,20,000 वर्ष होते हैं, जिनमें कलियुग के 4,32,000 वर्ष तथा द्वापर के 8,64,000 वर्ष होते हैं। राम का जन्म त्रेता युग में अर्थात द्वापर युग से पहले हुआ था। चूंकि कलियुग का अभी प्रारंभ ही हुआ है (लगभग 5,500 वर्ष ही बीते हैं) और श्रीराम का जन्म त्रेता के अंत में हुआ तथा अवतार लेकर धरती पर उनके वर्तमान रहने का समय परंपरागत रूप से 11,000 वर्ष माना गया है।[21] अतः द्वापर युग के 8,64,000 वर्ष + राम की वर्तमानता के 11,000 वर्ष + द्वापर युग के अंत से अबतक बीते 5,100 वर्ष = कुल 8,80,100 वर्ष। अतएव परंपरागत रूप से श्रीराम का जन्म आज से लगभग 8,80,100 वर्ष पहले माना जाता है।
प्रख्यात मराठी शोधकर्ता विद्वान डॉ॰ पद्माकर विष्णु वर्तक ने एक दृष्टि से इस समय को संभाव्य माना है। उनका कहना है कि वाल्मीकीय रामायण में एक स्थल पर विन्ध्याचल तथा हिमालय की ऊँचाई को समान बताया गया है। विन्ध्याचल की ऊंचाई 5,000 फीट है तथा यह प्रायः स्थिर है, जबकि हिमालय की ऊँचाई वर्तमान में 29,029 फीट है तथा यह निरंतर वर्धनशील है। दोनों की ऊँचाई का अंतर 24,029 फीट है। विशेषज्ञों की मान्यता के अनुसार हिमालय 100 वर्षों में 3 फीट बढ़ता है। अतः 24,029 फीट बढ़ने में हिमालय को करीब 8,01,000 वर्ष लगे होंगे। अतः अभी से करीब 8,01,000 वर्ष पहले हिमालय की ऊँचाई विन्ध्याचल के समान रही होगी, जिसका उल्लेख वाल्मीकीय रामायण में वर्तमानकालिक रूप में हुआ है। इस तरह डाॅ॰ वर्तक को एक दृष्टि से यह समय संभव लगता है, परंतु उनका स्वयं मानना है कि वे किसी अन्य स्रोत से इस समय की पुष्टि नहीं कर सकते हैं।[22] अपने सुविख्यात ग्रंथ 'वास्तव रामायण' में डॉ॰ वर्तक ने मुख्यतः ग्रहगतियों के आधार पर गणित करके[23] वाल्मीकीय रामायण में उल्लिखित ग्रहस्थिति के अनुसार श्रीराम की वास्तविक जन्म-तिथि 4 दिसंबर 7323 ईसापूर्व को सुनिश्चित किया है। उनके अनुसार इसी तिथि को दिन में 1:30 से 3:00 बजे के बीच श्री राम का जन्म हुआ होगा।[24]
डॉ॰ पी॰ वी॰ वर्तक के शोध के अनेक वर्षों के बाद[25] (2004 ईस्वी से) 'आई-सर्व' के एक शोध दल ने 'प्लेनेटेरियम गोल्ड' सॉफ्टवेयर का प्रयोग करके रामजी का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसापूर्व में सिद्ध किया। डॉ° यज्ञदत्त शर्मा ने भी इस पर कई शोध किए और उनकी गणना भी इसको समर्थन करती हैं। प्लेनेटेरियम गोल्ड' सॉफ्टवेयर के प्रयोग में भी डॉ यज्ञदत्त शर्मा की महत्वपूर्ण भूमिका थी।[26]उनका मानना था कि इस तिथि को ग्रहों की वही स्थिति थी जिसका वर्णन वाल्मीकीय रामायण में है। परंतु यह समय काफी संदेहास्पद हो गया है। 'आई-सर्व' के शोध दल ने जिस 'प्लेनेटेरियम गोल्ड' सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया वह वास्तव में ईसा पूर्व 3000 से पहले का सही ग्रह-गणित करने में सक्षम नहीं है।[27] वस्तुतः 2013 ईस्वी से पहले इतने पहले का ग्रह-गणित करने हेतु सक्षम सॉफ्टवेयर उपलब्ध ही नहीं था।[28] इस गणना द्वारा प्राप्त ग्रह-स्थिति में शनि वृश्चिक में था अर्थात् उच्च (तुला) में नहीं था। चन्द्रमा पुनर्वसु नक्षत्र में न होकर पुष्य के द्वितीय चरण में ही था तथा तिथि भी अष्टमी ही थी।[29] बाद में अन्य विशेषज्ञ द्वारा "ejplde431" सॉफ्टवेयर द्वारा की गयी सही गणना में तिथि तो नवमी हो जाती है परन्तु शनि वृश्चिक में ही आता है तथा चन्द्रमा पुष्य के चतुर्थ चरण में।[30] अतः 10 जनवरी 5114 ईसापूर्व की तिथि वस्तुतः श्रीराम की जन्म-तिथि सिद्ध नहीं हो पाती है। ऐसी स्थिति में अब यदि डॉ० पी० वी० वर्तक द्वारा पहले ही परिशोधित तिथि सॉफ्टवेयर द्वारा प्रमाणित हो जाए तभी श्रीराम का वास्तविक समय प्रायः सर्वमान्य हो पाएगा अथवा प्रमाणित न हो पाने की स्थिति में नवीन तिथि के शोध का रास्ता खुलेगा।
बालपन और सीता-स्वयंवर
भगवान राम बचपन से ही शान्त स्वभाव के वीर पुरूष थे। धर्म के मार्ग पर चलने वाले राम ने अपने तीनों भाइयों के साथ गुरू वशिष्ठ से शिक्षा प्राप्त की। किशोरावस्था में गुरु विश्वामित्र उन्हें वन में राक्षसों द्वारा मचाए जा रहे उत्पात को समाप्त करने के लिए साथ ले गये। राम के साथ उनके छोटे भाई लक्ष्मण भी इस कार्य में उनके साथ थे। कालांतर में विश्वामित्र जी की तपोभूमि राक्षसों से आक्रांत हो गई। ताड़का नामक राक्षसी विश्वामित्रजी की तपोभूमि में निवास करने लगी थी तथा अपनी राक्षसी सेना के साथ बक्सर के लोगों को कष्ट दिया करती थी। समय आने पर विश्वामित्रजी के निर्देशन प्रभु श्री राम के द्वारा वहीं पर उसका वध हुआ। राम ने उस समय ताड़का नामक राक्षसी को मारा तथा मारीच को पलायन के लिए मजबूर किया। इस दौरान ही गुरु विश्वामित्र उन्हें नेपाल ले गये। वहां के विदेह राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिए एक स्वयंवर समारोह आयोजित किया था। जहां भगवान शिव का एक धनुष था जिसकी प्रत्यंचा चढ़ाने वाले शूरवीर से सीता जी का विवाह किया जाना था। बहुत सारे राजा महाराजा उस समारोह में पधारे थे। जब बहुत से राजा प्रयत्न करने के बाद भी धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर उसे उठा तक नहीं सके, तब विश्वामित्र जी की आज्ञा पाकर श्री राम ने धनुष उठा कर प्रत्यंचा चढ़ाने का प्रयत्न किया। उनकी प्रत्यंचा चढ़ाने के प्रयत्न में वह महान धनुष घोर ध्वनि करते हुए टूट गया। महर्षि परशुराम ने जब इस घोर ध्वनि को सुना तो वे वहां आ गये और अपने गुरू (शिव) का धनुष टूटने पर रोष व्यक्त करने लगे। लक्ष्मण जी उग्र स्वभाव राजपुत्र थे। उनका विवाद परशुराम जी से हुआ। (वाल्मिकी रामायण में ऐसा प्रसंग नहीं मिलता है।) तब श्री राम ने बीच-बचाव किया। इस प्रकार सीता का विवाह राम से हुआ और परशुराम सहित समस्त लोगों ने आशीर्वाद दिया। अयोध्या में राम सीता बारह (१२) वर्ष तक सुखपूर्वक रहे। भगवान राम के बचपन का विस्तार-पूर्वक विवरण स्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस के बालकाण्ड से मिलती है।
वनवास
श्री राम के पिता दशरथ ने उनकी सौतेली माता कैकेयी को उनकी किन्हीं दो इच्छाओं को पूरा करने का वचन (वर) दिया था। कैकेयी ने दासी मन्थरा के बहकावे में आकर इन वरों के रूप में राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांगा। पिता के वचन की रक्षा के लिए राम ने खुशी से चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। पत्नी सीता ने आदर्श पत्नी का उदाहरण देते हुए पति के साथ वन (वनवास) जाना उचित समझा। भाई लक्ष्मण ने भी राम के साथ चौदह वर्ष वन में बिताए। भरत ने न्याय के लिए माता का आदेश ठुकराया और बड़े भाई राम के पास वन जाकर उनकी चरणपादुका (खड़ाऊँ) ले आए। फिर इसे ही राज गद्दी पर रख कर राजकाज किया।
सीता अपहरण
रामायण के अनुसार, जब राम, सीता और लक्ष्मण कुटिया में थे तब एक स्वर्णिम हिरण की वाणी सुनकर, पर्णकुटी के निकट उस स्वर्ण मृग को देखकर देवी सीता व्याकुल हो गयीं। देवी सीता ने जैसे ही उस सुन्दर हिरण को पकड़ना चाहा वह हिरण या मृग घनघोर वन की ओर भाग गया।
- वास्तविकता में यह असुरों द्वारा किया जा रहा एक षडयंत्र था ताकि देवी सीता का अपहरण हो सके। वह स्वर्णमृग या सुनहरा हिरण राक्षसराज रावण का मामा मारीच था। उसने रावण के कहने पर ही सुनहरे हिरण का रूप धारण किया था ताकि वो योजना अनुसार राम - लक्ष्मण को सीता जी से दूर कर सकें और सीता जी का अपहरण हो सके। उधर षडयन्त्र से अनजान सीता जी उसे देख कर मोहित हो गईं और रामचंद्र जी से उस स्वर्ण हिरण को जीवित एवं सुरक्षित पकड़ने करने का अनुरोध किया ताकि उस अद्भुत सुन्दर हिरण को अयोध्या लौटने पर वहां ले जा कर पाल सकें ।
- रामचन्द्र जी अपनी भार्या की इच्छा पूरी करने चल पड़े और लक्ष्मण जी से सीता की रक्षा करने को कहा। कपटी मारीच राम जी को बहुत दूर ले गया। श्री राम को दूर ले जाकर मारीच ने ज़ोर से "हे सीता ! हे लक्ष्मण !" की आवाज़ लगानी प्रारंभ कर दी ताकि उस आवाज़ को सुन कर सीता जी चिन्तित हो जाएं और लक्ष्मण को राम के पास जाने को कहें, जिससे रावण सीता जी का हरण सरलता पूर्वक कर सके । इस प्रकार छल या धोखे का अनुमान लगते ही अवसर पाकर श्री राम ने तीर चलाया और उस स्वर्णिम हिरण का रूप धरे राक्षस मारीच का वध कर दिया ।
- दूसरी ओर सीता जी मारीच द्वारा लगाए अपने तथा लक्ष्मण के नाम के ध्वनियों को सुन कर अत्यंत चिन्तित हो गईं तथा किसी प्रकार के अनहोनी को समीप जानकर लक्ष्मण जी को श्री राम के पास जाने को कहने लगीं। लक्ष्मण जी राक्षसों के छल - कपट को समझते थे इसलिए लक्ष्मण जी देवी सीता को असुरक्षित अकेला छोड़कर जाना नहीं चाहते थे, पर देवी सीता द्वारा बलपूर्वक अनुरोध करने पर लक्ष्मण जी अपनी भाभी की बातों को अस्वीकार नहीं कर सके।
- वन में जाने से पहले सीता जी की रक्षा के लिए लक्ष्मण जी ने अपने बाण से एक रेखा खींची तथा सीता जी से निवेदन किया कि वे किसी भी परिस्थिति में इस रेखा का उल्लंघन नहीं करें, यह रेखा मंत्र के उच्चारण पूर्वक खिंची गई है इसलिए इस रेखा को लांघ कर कोई भी इसके अन्दर नहीं आ पाएगा। लक्ष्मण जी ने देवी सीता की रक्षा के लिए जो अभिमंत्रित रेखा अपने बाण के द्वारा खिंची थी वह लक्ष्मण रेखा के नाम से प्रसिद्ध है।
- लक्ष्मण जी के घोर वन में प्रवेश करते ही तथा देवी सीता को अकेला पाकर पहले से षडयंत्र पूर्वक घात लगाकर बैठे रावण को सीता जी के अपहरण का सुनहरा अवसर प्राप्त हो गया। रावण शीघ्र ही राम - लक्ष्मण - सीता के निवास स्थान उस पर्णकुटी या कुटिया में जहां परिस्थिति वश देवी सीता इस समय अकेली थीं, आ गया। उसने साधु का वेष धारण कर रखा था । पहले तो उसने उस सुरक्षित कुटिया में सीधे घुसने का प्रयास किया लेकिन लक्ष्मण रेखा खींचे होने के कारण वह कुटिया के अंदर जहां देवी सीता विद्यमान थीं, नहीं घुस सका।
- तब उसने दूसरा उपाय अपनाया, साधु का वेष तो उसने धारण किया हुआ ही था, सो वह कुटिया बाहरी द्वार पर खड़े होकर "भिक्षाम् देही - भिक्षाम् देही" का उद्घोष करने लगा। इस वाणी को सुन कर देवी सीता कुटिया के बाहर निकलीं (लक्ष्मण रेखा के उल्लंघन किए बिना)। द्वार पर साधु को आया देख कर वो कुटिया के चौखट से ही (लक्ष्मण रेखा के भीतर से ही) उसे अन्न - फल आदि का दान देने लगीं। तब धूर्त रावण ने सीता जी को लक्ष्मण रेखा से बाहर लाने के लिए स्वयं के भूखे - प्यासे होने की बात बोल कर भोजन की मांग की।
- आर्यावर्त की परंपरा के अनुसार द्वार पर आये भिक्षुक एवं भूखे को खाली हाथ नहीं लौटाने की बात सोच कर वो भोजन - जल आदि लेकर भूल वश लक्ष्मण रेखा के बाहर निकल गई। जैसे ही सीता जी लक्ष्मण रेखा के बाहर हुई, घात लगाए रावण ने झटपट उनका अपहरण कर लिया। रावण सीता जी को पुष्पक विमान में बल पूर्वक बैठाकर ले जाने लगा।
- पुष्पक विमान में अपहृत होकर जाते समय सीता जी ने अत्यन्त उच्च स्वर में श्री राम और लक्ष्मण जी को पुकारा तथा अपनी सुरक्षा की गुहार लगायी। इस ऊंचे ध्वनि को सुनकर जटायु नामक एक विशाल गिद्ध पक्षी जो मनुष्यों के समान स्पष्ट वाणी में बोल सकता था तथा पूर्व काल में राजा दशरथ का परम मित्र था, वन प्रदेश को छोड़कर आकाश मार्ग में उड़ कर पहुंचा। जटायु देखता है कि अधर्मी रावण एक सुन्दर युवती को अपहरण कर लेकर जा रहा है तथा वह युवती अपनी सुरक्षा की गुहार लगा रही है।
- यह अन्याय देख कर जटायु रावण को चुनौती देता है तथा उस युवती को छोड़ देने की चेतावनी देता है लेकिन अहंकारी रावण भला कहां मानने वाला था सो रावण और जटायु में आकाश मार्ग में ही युद्ध छिड़ जाता है। बलशाली रावण अपने अमोघ खड्ग से जटायु के दोनों पंख काट देता है जिससे जटायु नि:सहाय हो कर पृथ्वी पर गिर जाता है। रावण पुष्पक विमान में सीता जी को लेकर आगे बढ़ने लगता है।
- सीता जी ने जब देखा कि उनकी रक्षा करने के लिए आए विशाल गिद्ध पक्षी जो मनुष्यों की भांति बोल सकता था, रावण के खड्ग प्रहार करने से धराशायी हो गया है तब पुष्पक विमान में आकाशमार्ग अथवा वायुमार्ग से जाते समय सीता जी अपने आभूषण / गहने को उतार कर नीचे धरती पर फेंकने लगीं।
- भगवान राम, अपने भाई लक्ष्मण के साथ सीता की खोज में दर-दर भटक रहे थे। तब वे एक वानर साम्राज्य में हनुमान और सुग्रीव से मिले।
रावण का वध
रामायण में सीता के खोज में सीलोन या लंका या श्रीलंका जाने के लिए 48 किलोमीटर लम्बे 3 किलोमीटर चोड़े पत्थर के सेतु का निर्माण करने का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसको रामसेतु कहते हैं।
सीता को को पुनः प्राप्त करने के लिए राम ने हनुमान, विभीषण और वानर सेना की सहायता से रावण के सभी बंधु-बांधवों और उसके वंशजों को पराजित किया तथा लौटते समय विभीषण को लंका का राजा बनाकर अच्छे शासक बनने के लिए मार्गदर्शन किया।
अयोध्या वापसी
राम ने रावण को युद्ध में परास्त किया और उसके छोटे भाई विभीषण को लंका का राजा बना दिया। राम, सीता, लक्षमण और कुछ वानर जन पुष्पक विमान से अयोध्या की ओर प्रस्थान किये । वहां सबसे मिलने के बाद राम और सीता का अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ। पूरा राज्य कुशल समय व्यतीत करने लगा।
दैहिक त्याग
जब रामचन्द्र जी का जीवन पूर्ण हो गया, तब वे यमराज की सहमति से सरयू नदी के तट पर गुप्तार घाट में देह त्याग कर पुनः बैकुंठ धाम में विष्णु रूप में विराजमान हो गये।
- महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा का प्रथम महाकाव्य रामायण की रचना की।
- महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने भी उनके जीवन पर केन्द्रित भक्तिभाव पूर्ण सुप्रसिद्ध महाकाव्य रामचरितमानस की रचना की, जो कि अवधी भाषा की श्रेष्ठ एवं वृहत्तम रचना है।
- संप्रति, यह अत्यंत प्रसिद्ध है। इसे एक धर्मग्रन्थ की संज्ञा दी गयी है।
- स्वामी करपात्री ने रामायण मीमांसा में विश्व की समस्त रामायणों का उल्लेख किया है।
- दक्षिण के क्रांतिकारी पेरियार रामास्वामी व ललई सिंह की सच्ची रामायण राम कथा का समालोचनात्मक विवरण प्रस्तुत करती है।
- दसरथ रामायण - विश्व के कई देशों मे बौधिसत्व राम पण्डित आदर्श के रूप में पूजे जाते हैं, जैसे नेपाल, थाईलैण्ड, इण्डोनेशिया आदि।
- जैन ग्रन्थों में ६३ शलाकापुरुषों में से एक हैं राम। यहाँ वे वलभद्र हैं जो अन्त समय में दीक्षा ग्रहण कर सिद्धक्षेत्र (माँगी तुंगि, महाराष्ट्र, भारत) से मोक्ष को प्राप्त हुए।[31][32] जैन धर्म में भगवान राम को बहुत उच्च स्थान दिया गया है। भगवान राम जैन रामायण के नायक हैं जहां उन्हें अहिंसा की प्रतिमूर्ति के रूप में चित्रित किया गया है। जैन मान्यतानुसार प्रत्येक मोक्ष प्राप्त आत्मसिद्ध कहलाता है।
वैदिक धर्म के कई त्योहार, जैसे दशहरा, राम नवमी और दीपावली, श्रीराम की कथा से जुड़े हुए हैं। रामायण भारतीयों के मन में बसता आया है, और आज भी उनके हृदयों में इसका भाव निहित है। भारत में किसी व्यक्ति को नमस्कार करने के लिए राम राम, जय सियाराम जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। श्रीराम भारतीय संस्कृति के आधार-चरित्रों में एक हैं। पुराणों के अनुसार यह राम विष्णु के 7वे अवतार थे
=प्रतिमाएं= Jay shree Ram
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