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बेयरिंग
दौ वृताकार स्टिल के बिच लोहे का गोलो को दबा कर बनाया जाता है यहमशीन की बिच घृष्णकम करता है विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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किसी घूमनेवाली मशीन के अंग को संभालने के लिए धारुक या बेयरिंग (Bearings) का उपयोग होता है। यह एक ऐसी यांत्रिक युक्ति है जो मशीन के दो या अधिक भागों के बीच कम से कम घर्षण के साथ सापेक्ष गति (रेखीय गति या घूर्णन गति) की सुविधा प्रदान करती है।


धुरी या तकले (शाफ्ट) के उस भाग को, जो बेयरिंग पर रखा जाता है, जर्नल (journal) कहा जाता है। जर्नल, धारुक के भीतर घूमती रहती है और इस प्रकार एक तो धारुक धुरी का भार और दूसरे उसपर डाले हुए बलों को सहन करती है तथा धूरी को बिना किसी रुकावट के घूमने का अवसर देती है। सरल धारुक एक नली के समान होता है, जिसमें धुरी को डाल दिया जाता है। परंतु तेज चलनेवाली धुरियों के लिए, या जहाँ घर्षण के कारण धारुक तपकर खराब हो सकता हो, धारुक के दो पाटों में बनाया जाता है जो विभिन्न प्रकार के होते हैं।
किसी मशीन का धारुक ऐसा भाग है जिसपर मशीन के चलने से हर समय भार रहता है और धुरी के घूमने के कारण धारुक कुछ न कुछ घिसता ही रहता है। यदि धारुक को ठीक प्रकार से न बनाया जाए तो बहुत जल्द उसको बदलना पड़ता है। इसलिए सब बातों को ध्यान में रखते हुए धारुक को इस प्रकार बनाना पड़ता है कि वह कम से कम घिसे तथा घिसे हुए भागों को सुविधा से बदला जा सके। धारुक के दो भाग होते हैं, एक बंधनी (bracket) कहलाता है, जो मशीन में कसा जाता है और इस बंधनी के भीतर धारुक को जमाया जाता है, जो पीतल "गन" धातु (gun metal), या काँसे का होता है। इसी प्रकार की दूसरी धातुएँ भी इस भाग के बनाने में काम आती हैं। इसी भाग के भीतर धुरी घूमती है।
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बेयरिंग की रचना एवं कार्य करने का सिद्धान्त
सारांश
परिप्रेक्ष्य

1) बाहरी रिंग
2) गोलियाँ (बाल)
3) रिटेनर या केज
4) रेस-वे
5) अन्दर की रिंग
ऊपर बताया जा चुका है कि या तो धारुक को नली के समान एक भाग में बनाया जाता है, या इसको दो भागों में इस प्रकार बनाते हैं कि दोनों भाग मिलकर नली के समान हो जाएँ। धुरी धारुक के दो पाटों प1 तथा प2 के बीच में है। धारुक का नीचे का पाट प2 बंधनी के अर्धगोलाकार स्थान में बैठा दिया जाता है। इस पाट को घूमने से रोकने के लिए प्रक्षेप रखा जाता है। इस पाट में धुरी को रखकर पाट प2 को इसके ऊपर लगाकर टोपी ट से अर्गली द्वारा कस दिया जाता है। टोपी ट के ऊपरी भाग में एक छेद छ बनाया जाता है, जिससे तेल या स्नेहक (lubricant) दिया जाता है। तेल या स्नेहक छेद छ में से होता हुआ भीतर धुरीधर में बने हुए खाँचों में चला जाता है और जब धुरी घूमती है तो स्नेहक धुरी तथा धारुक के बीच एक झिल्ली बना देता है, जिसके कारण धुरी केवल स्नेहक की इस झिल्ली पर ही घूमती है। इसलिए धारुक का घिसाव बहुत कम होता है और वह भी धुरी के पूरी रफ्तार पकड़ने से पहले तथा इसके रुकने के समय ही हाता है। यदि स्नेहक ठीक समय पर दिया जाता रहे तो धारुक बहुत दिनों तक चलता है।
आधुनिक आकल्प के धारुक दूसरे ढंग से बनाए जाते हैं। कारखानों में, जहाँ लंबी धुरियों पर कई कई धारुक होते हैं, धारुकों के आकल्पन में इसका ध्यान रखा जाता है कि धुरी का संरेखण (alignment) खड़ी तथा क्षैतिज दिशा में व्यवस्थापी पेंचों से ठीक किया जा सके।
स्नेहक (lubricant)
तेज और भारी धुरियों के धारक के नीचे के भाग में तेल या स्नेहक का एक आगार (reservoir) रहता है। कुछ धारुकों में नीचे के भाग में तेल से भरे हुए तल्प रहते हैं। ये तल्प धुरी और धारुक के बीच में रहते हैं और तल्प से एक बत्ती छेद में से होती हुई तेल के कुएँ में चली जाती है। इसी बत्ती के द्वारा तल्प को हर समय तेल मिलता रहता है।
धारुक के बीच तेल भेजने की दो रीतियाँ हैं, गुरुत्व से या दबाव से। यह तेल भीतर जाकर धुरी के घूमने पर जो झिल्ली बनाता है उसके महत्तम निपीड का स्थान धुरी की रफ्तार, भार और इसके घूमने की दिशा पर निर्भर है। यदि क्षैतिज धुरी पर, जो वामावर्त (anticlockwise) दिशा में घूम रही है भार डाला जाए तो महत्तम दाब का केंद्र बीच की खड़ी रेखा के दाहिनी ओर 10 डिग्री से 45 डिग्री तक के कोण पर मिलेगा और यह कोण भार तथा गति के मान पर आधृत होगा। कम गति और अधिक भार के कारण महत्तम दाब का केंद्र लगभग धारुक के पेंदे में होगा। न्यूनतम दाब का क्षेत्रफल, इस धुरी के लिए ऊपरी भाग में खड़ी रेखा के दाहिनी और होगा। यदि धुरी के घूमने की दिशा बदल दी जाए तो महत्तम तथा न्यूनतम दाब के विंदु उसी कोण पर खड़ी केंद्र रेखा के बाई ओर होंगे। जिन धारुकों में तेल आकर्षण से जाता है उनके लिए तेल को न्यूनतम दाब के स्थान पर भीतर जाना चाहिए। यदि मुख्य बेयरिंग पर भार है तो धारुकों के ऊपरी भाग द्वारा तेल देने से भी काम चल जाता है। जहाँ दबाव से तेल दिया है वहाँ तेल के महत्तम निपीड़ के स्थान के पास से भीतर भेजना ठीक होगा। इस स्थान को उसी दिशा में होना चाहिए जिस ओर धुरी घूम रही है।
छोटे धारुकों को छोड़कर अन्य सब धारुकों में खाँचे बनाए जाते हैं, जिससे तेल सब स्थानों पर एक समान फैल जाता है। ये खाँचे तेल के निपीड के स्थानों पर नहीं बनाए जाते, क्योंकि इन स्थानों पर खाँचे तेल को कम घर्षण के स्थानों की ओर जाने का अवसर देंगे और तेल की झिल्ली ठीक प्रकार नहीं बन पाएगी। मुख्य बेयरिंग या जर्नल में खाँचे नहीं बनाए जाते, बल्कि धारुकों में ही बनाए जाते हैं, परंतु तेल के भीतर आने के स्थान से धुरी के घूमने की दिशा की ओर जानेवाला खाँचा अधिक लाभदायक है। ठीक प्रकार तेल दिए गए धारुक का घर्षण गुणांक, थ्र्, तेल के लक्षण पर निर्भर है। धारुक की धातु का प्रभाव घर्षण गुणांक के ऊपर अवश्य होता है, यह धुरी के चलने और तेल की झिल्ली बनने तथा धुरी के रुकने या फिर स्नेहक के गुणों पर निर्भर होता है। मान लें, तेल की ठीक झिल्ली बन गई है तो संघर्ष गुणांक तेल, ताप, गति और भार पर आधृत है। घर्षण गुणांक 0.005 या 0.002 अच्छे स्नेहक के लिए और 0.05 या इससे अधिक खराब स्नेहक के लिए होता है।
उन स्थानों पर बिना तेल के धारुकों का उपयोग भी होता है, जहाँ यह ध्यान रखना पड़ता है कि तेल गिरने से मशीन से बननेवाले माल में खराबी न आ जाए, जैसे कपड़ा बनानेवाली मशीनें। यदि इन मशीनों में तेलवाले धारुक हों तो कपड़े पर तेल जरूर गिरेगा, जिससे कपड़ा खराब हो जाएगा। अत: ये धारुक विविध प्रकार के होते हैं। एक धारुक में तेल में भीगी हुई लकड़ी लगाई जाती है, दूसरे में पीतल के भाग में ग्रैफाईट लगा दिया जाता है, जिसके कारण घर्षण बहुत कम हो जाता है। इसी प्रकार और दूसरे धारुक भी बनाए जाते हैं, जिनमें तेल की आवश्यकता नहीं होती।
धारुक की लम्बाई व व्यास पर विचार
कुछ आकल्पन करनेवालों का विचार है कि धुरी की शक्ति को ध्यान में रखते हुए जर्नल का व्यास कम से कम रखना चाहिए, जिसके कारण कम से कम घिसाव हो। यह भी बताया जाता है कि यदि धुरी की गति अधिक रखनी है तो इसपर भार भी कम ही होना चाहिए। परंतु आधुनिक आकल्पन करनेवालों में यह स्थिर किया है कि यदि धारुक का आकल्पन ठीक प्रकार से किया जाए, तो गति के साथ साथ इसपर भार भी ज्यादा डाला जा सकता है। इससे कोई हानि नहीं होगी। यह भी सिद्ध कर दिया है कि धारुक की लंबाई कम करने से अधिक लाभ होता है, विशेषकर ज्यादा गति की धुरी के लिए यह बहुत जरुरी है। कम लंबे धारुकों में झुकाव नहीं होगा। इसके कारण धारुक के भीतर निपीड हर स्थान पर बराबर होगा। इसलिए धारुक की लंबाई उसके व्यास से कम रखने से धुरी की चाल भी ज्यादा की जा सकती है और धुरी पर भार भी ज्यादा डाला जा सकता है। इसका ध्यान रहे कि यदि धारुकों की लंबाई अधिक कम हो गई तो इसके भीतर का निपीड़ बढ़ जाएगा, जिसके कारण धुरी में जकड़ पैदा हो सकती है और अगर लंबाई अधिक हो गई तो धारुक में झुकाव पैदा हो सकता है। इसलिए धारुक की लंबाई तथा व्यास का अनुपात ऐसा रखना चाहिए जिनसे न तो झुकाव का डर हो और न घुरी ही जकड़ सके। इसी कारण यह अनुपात पानी के जहाज की धुरी के लिए 1 : 1.5, स्थापित इंजनों के लिए 1.2 : 2.5, सरल भारी धुरी के लिए 2 : 3 और 3 : 4 रखा जाता है।
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धारुक के प्रकार
सारांश
परिप्रेक्ष्य
धारुक कई प्रकार के होते हैं। इनमें हर एक का उपयोग अलग अलग है :
कीलक धारुक (Pivot Bearing)
खड़ी धुरी के लिए कीलक धारुक बनाया जाता है। इसमें "व" एक बंधनी है, जिसको मशीन में कसा जाता है। इस बंधनी में पीतल का धारुक है, जिसमें धुरी को लगाया जाता हैं। धुरी का पूरा भार धारुक के आधार पर रहता है। इसको अर्धगोलाकार बनाया जाता है और इसी भाग में तेल या स्नेहक रहता है। एक परीक्षा के फल से यह पता चला है कि यदि इस धारुक के आधार में एक खाँचा बनाकर उसमें तेल भर दिया जाए तो धुरी के चलने पर यह तेल ऊपर की ओर जाता है और धुरी के बराबर से होता हुआ बाहर निकल जाता है। यदि इस बाहर निकले हए तेल को फिर से भीतर भेज दिया जाए तो इस तेल का उपयोग बार बार हो सकता है और धारुक के भीतर कभी तेल खतम नहीं होगा।
इस प्रकार की धुरी पर भार अधिक होने से कीलक पर अधिक दाब हो जाएगी, जिसके कारण धारुक विफल हो सकता है। इसलिए इस प्रकार के धारुक पर 15 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर से अधिक दाब नही डाली जाती। इससे अधिक दाब होने पर गलपट्ट धारुक (Collar Bearing) का उपयोग किया जाता है।
गलपट्ट धारुक (Collar Bearing)
इस प्रकार के धारुकों का उपयोग उन स्थानों पर होता है जहाँ धुरी पर अधिक भार हो। इस धारुक का पीतल दो भागों में होता है, जिनमें धुरी के पदों के अनुसार खाँचे बने होते हैं। इन खाँचों में धुरी के पदों को बैठाया जाता है और यह संयुक्त अंग बंधनी में उतार दिया जाता है। इस प्रकार हर एक पद अलग अलग काम करता है और धुरी का भार इन पदों में बँट जाता है। इन धारुकों को जल द्वारा ठंड़ा रखा जाता है। यदि यह धारुक ठीक प्रकार ठंड़े रखे जाएँ और इनमें ठीक समय पर तेल भी दिया जाता रहे तो यह अधिक चाल और दाब सहन कर सकते हैं और अधिक दिनों तक चल सकते हैं।
वेलन तथा गोली धारुक (Roller and Ball Bearing)
अभी तक जो धारुक बताए गए हैं उनमें धुरी का तल धारुक के तल पर घूमता रहता है और सर्पी घर्षण (sliding friction) के कारण दोनों की धातु घिसती रहती हैं। इसी घर्षण को कम करने के लिए घूमनेवाले तलों के बीच बेलन या गोलियों को बैठा दिया जाता है। इस प्रकार दोनों तल बेलनों पर घूमते हैं और सर्पी घर्षण के स्थान पर बेलन घर्षण (rolling friction) काम करता है, जिसके कारण तापन तथा घिसाई बहुत कम हो जाती है, परंतु इन धारुकों के घिस जाने पर दूसरे धारुकों के समान इनका व्यवस्थापन नहीं किया जा सकता, बल्कि इनको बदलना ही पड़ता है। ये धारुक बहुत मजबूत होते हैं और कम घर्षण के कारण इनसे अधिक गति भी प्राप्त होती है।
गोली घारुक भी इसी के सदृश बनाया जाता है। इसकी गोलियाँ दोनों बाजुओं के बीच रहती हैं। अंतर केवल यही है कि गोली धारुक में भार विंदुओं पर होता है और बेलन धारुक में भार रेखाओं पर होता है। इसलिए भार इतना अधिक नहीं होना चाहिए कि बाजुओं पर खाँचे या गढ़े पड़ जाएँ। बेलन तथा गोली और बाजू सब कठोर इस्पात के बने होते हैं। एक धारुक के समस्त बेलनों अथवा गोलियों का परिमाण एक समान होना आवश्यक है नहीं तो बड़े परिमाण की गोली पर अधिक भार होगा और धारुक विफल हो जाएगा।
अधिक चाल के लिए धारुक
ऊपर लिखी गई बातों से पता चलेगा कि किसी धारुक के ठीक काम करने के लिए तेल जरूरी चीज है। जर्नल और धारुक के बीच यह तेल हलकी झिल्ली बना लेता है, जिसके कारण दोनों धातुएँ एक दूसरे से नहीं मिल पातीं और जर्नल इसी झिल्ली पर घूमता रहता है। यदि किसी कारण से धारुक में तेल कम हो जाता है तो यह तेल की झिल्ली टूट जाती है और जर्नल की धातु धारुक की धातु से रगड़ खाने लगती है, जिससे धारुक तथा जर्नल अधिक गरम हो जाते हैं। इस तापन से दोनों धातुएँ फैल जाती हैं और धारुक जर्नल को जकड़ लेता है। मशीन का जर्नल ऐसा भाग है जिसकी लागत धारुक से अधिक होती है और इसकी खराब होने से बचाया जाता है। इसी को बचाने के लिए धारुक के पीतल में खाँचे बनाकर उनमें श्वेत धातु (white metal) भर दी जाती है। जब किसी कारण से धारुक तपकर जकड़ने लगती है तब यह धातु पिघलकर जर्नल और धारुक के बीच चला आता है और पूरी धुरी रुक जाती है। इसलिए जर्नल के बिना कम उष्मा और घर्षण से घूमने के लिए दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक है :
- (1) इसका प्रबंध करना है कि तेल की झिल्ली कभी टूटने न पाए,
- (2) धारुक के गरम होने पर उसको ठंड रखने का भी प्रबंध होना जरूरी है। इसलिए या तो तेल का कुआँ धारुक के नीचे ही हो, जहाँ से धारुक को बराबर तेल मिलता रहे, या फिर तेल को दबाव द्वारा धारुक के भीतर भेजा जाए।
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धारुक घर्षण से कार्य में कमी
धारूक में घर्षण हो तो शाफ्ट की कुछ शक्ति धारूक में नष्ट होती रहती है और उपयोगी कार्य की मात्रा कुछ कम हो जाती है।
चित्रदीर्घा
- सादा बीयरिंग ( plain bearing या sliding bearing)
- बाल-बीयरिंग
- चुम्बक-बीयरिंग
- निडिल-रोलर-बीयरिंग
- सिलिंडर-बीयरिंग
- डमरू-बीयरिंग
- टेपर्ड-रोलर-बीयरिंग
- गोलाकार-रोलर-बीयरिंग
- थ्रस्ट-बीयरिंग
- Самоустанавливающийся подшипник
- Сепаратор с роликами игольчатого подшипника
- Линейный рельсовый подшипник
- Линейный телескопический подшипник
- Шариковая винтовая передача
बाहरी कड़ियाँ
- बेयरिंग कैसे काम करती है?
- Early bearing failure detection
- How to measure a bearing
- Kinematic Models for Design Digital Library (KMODDL) - Movies and photos of hundreds of working mechanical-systems models at Cornell University. Also includes an e-book library of classic texts on mechanical design and engineering.
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