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1988 की जे॰ के॰ बिहारी की फ़िल्म विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
बीवी हो तो ऐसी 1988 में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है। इसको लिखित और निर्देशित जे॰ के॰ बिहारी ने किया और मुख्य भूमिकाओं में रेखा, फारूक शेख और बिन्दू हैं। संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने दिया है। यह सलमान ख़ान (आवाज किसी और ने डब की[1]) और रेणु आर्य की पहली फ़िल्म है।
बीवी हो तो ऐसी | |
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बीवी हो तो ऐसी का पोस्टर | |
निर्देशक | जे॰ के॰ बिहारी |
लेखक | जगदीश कनवाल (संवाद) |
पटकथा |
जगदीश कनवाल विजय कुमार |
कहानी | जे॰ के॰ बिहारी |
निर्माता | सुरेश भगत |
अभिनेता |
रेखा, फारूक शेख, बिन्दू, कादर ख़ान, असरानी, सलमान ख़ान |
संगीतकार | लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल |
प्रदर्शन तिथियाँ |
26 अगस्त, 1988 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
भंडारी समृद्ध उच्च वर्ग का परिवार है। घर में कमला (बिन्दू) का प्रभुत्व है जो भंडारी परिवार के सारे फैसले लेती हैं। वह पारिवारिक व्यवसाय का ख्याल रखती है, जबकि उसके घर पर रहने वाला पति कैलाश (कादर ख़ान) एक घर जमाई है। कमला चाहती है कि उसका सबसे बड़ा बेटा सूरज (फारूक शेख) एक ऐसी लड़की से विवाह करे जिसकी सामाजिक स्थिति उनके साथ मेल खाती हो।
हालाँकि, उनकी इच्छाओं के विपरीत, सूरज अपने दिल की मानता है और गरीब लेकिन प्रतिभाशाली गाँव की लड़की शालू (रेखा) से शादी करता है। ये कमला को बहुत क्रोधित करता है। अपने हास्यपूर्ण लेकिन हमेशा किसी योजना के साथ तैयार सचिव (असरानी) के साथ, कमला ने उसे घर से बाहर निकालने का प्रण लिया और उसके खिलाफ चतुर और चालाक रणनीतियां इस्तेमाल की।
इस बीच, शालू कमला के दिल को जीतने की कोशिश करके एक सौहार्दपूर्ण बहू बनने की कोशिश करती है। उसके पास ससुर कैलाश का पूरा समर्थन और समझ है जो उसे बेटी की तरह मानते हैं। साथ ही देवर विकी (सलमान ख़ान) भी उसके साथ सहानुभूति रखता है, जो कभी-कभी अपनी भाभी पर होने वाले अत्याचारों को सहन नहीं कर पाता। वह अपनी अत्याचारी मां के खिलाफ विरोध में मुखर हो जाता है।
अपमान और अंतहीन व्यक्तिगत हमलों के बाद, शालू अपनी शैली में जवाब देती है। उसकी असली पहचान अंत में प्रकट होती है। अपने अशिष्ट गाँव की लड़की की पहचान के विपरीत उसने स्पष्ट भाषण के साथ सभी को झटका दिया।
उसके पिता अशोक मेहरा (भंडारी परिवार के मित्र) ने उसकी असली पहचान प्रकट की। कमला को पता चलता है कि शालू मेहरा की ऑक्सफोर्ड से शिक्षित बेटी है, जिसने अपने ससुर कैलाश के साथ मिलकर, परिवार में अपना रास्ता बनाया था ताकि कमला को नम्रता और मानवता का सबक सिखाया जा सके। कैलाश पहली बार कमला के खिलाफ मुखर हो जाता है।
कमला परिवार के प्रति अपने व्यवहार के लिए अपनी गलती को महसूस करती है जब वे सभी उसे और घर को छोड़ने का फैसला करते हैं। कमला पश्चाताप कर ईमानदारी से सभी से माफी माँगती है और खुशी अंततः भंडारी परिवार में प्रवेश करती है।
सभी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल द्वारा संगीतबद्ध।
क्र॰ | शीर्षक | गीतकार | गायन | अवधि |
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1. | "फूल गुलाब का" | समीर | अनुराधा पौडवाल, मुहम्मद अज़ीज़ | 6:10 |
2. | "मेरे दुल्हे राजा" | समीर | अलका याज्ञनिक | 5:52 |
3. | "मैं हूँ पानवाली" | अनजान | अलका याज्ञनिक | 5:10 |
4. | "मैं तेरा हो गया" | हसन कमाल | अलका याज्ञनिक, मुहम्मद अज़ीज़ | 7:10 |
5. | "साँचा तेरा नाम" | समीर | अनुराधा पौडवाल | 4:43 |
6. | "सासूजी तूने मेरी क़दर न जानी" | समीर | अनुराधा पौडवाल | 5:18 |
कुल अवधि: | 34:23 |
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