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बाह्यत्वचा पौधे का बाह्यतम आवरण है। इसके अन्तर्गत बाह्यत्वचीय कोशिकाएँ, रन्ध्र तथा बाह्यत्वचीय उपांग—त्वचारोम और मूलरोम आते हैं। बाह्यत्वचा पौधों के भागों की बाहरी त्वचा है। इसकी कोशिकाएँ लम्बी तथा परस्पर से सटी होती हैं और एक अखण्ड स्तर बनाती है। बाह्यत्वचा प्रायः एकस्तरीय होती है। बाह्यत्वचीय कोशिकाएँ मृदूतकीय होती है जिनमें बहुत कम मात्रा में कोशिकाद्रव्य होता है जो कोशिका भित्ति के साथ होता है। इसमें एक बड़ी रसधानी होती है। बाह्यत्वचा की बाह्य सतह मोम की मोटी परत से ढकी होती है, जिसे उपत्वचा कहते हैं। उपत्वचा पानी की हानि को रोकती है। मूल में उपत्वचा नहीं होती। रन्ध्र ऐसी रचनाएँ हैं, जो पत्रों की बाह्यत्वचा पर होते हैं। मूल के बाह्यत्वचीय कोशिकाओं पर अनेक रोम होते हैं, जिन्हें मूलरोम कहते हैं। ये बाह्यत्वचीय कोशिकाओं का एककोशिकीय दीर्घीकरण स्वरूप होती हैं जो जल एवं खनिज तत्त्वों के अवशोषण में सहायक होती हैं। तने पर पाए जाने वाले ये बाह्य त्वचीय रोम त्वचारोम कहलाते हैं प्ररोह तन्त्र में यह त्वचारोम बहुकोशिकीय होते हैं। ये शाखित या अशाखित तथा कोमल या नरम हो सकते हैं। ये स्रावी हो सकते हैं। ये वाष्पोत्सर्जन से होने वाले जल की हानि को रोकते हैं।
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