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बरपेटा को वैष्णव सम्प्रदाय का गढ़ माना जाता है। यह भारतके पूर्वी राज्य असम के बरपेटा जिला में पड़ता है। इसको कई नामों जैसे तातिकूची, पोराभिता, मथुरा, वृंदावन, चौखुटीस्थान, नवरत्न-सभा, इचाकुची, पुष्पक विमान और कामरूप के नाम से भी जाना जाता है। इस पर अनेक शासकों ने शासन किया है। पर्यटकों के देखने और करने के लिए यहां बहुत कुछ है। यहां के जंगलों में पर्यटक वन्य जीवन के खूबसूरत दृश्य भी देख सकते हैं और खूबसूरत जंगलों की सैर कर सकते हैं। यहां पर पर्यटक बोटिंग का आनंद ले सकते हैं। बोटिंग के अलावा पर्यटक यहां पर ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों के खूबसूरत दृश्य देख सकते हैं।
बरपेटा सत्तरा बरपेटा जिले के हृदय में बसा हुआ है। होली में यहां पर दौल उत्सव आयोजित किया जाता है। इस उत्सव में भाग लेने के लिए यहां हर वर्ष हजारों की संख्या में पर्यटक आते हैं। इस मेले के अलावा यहां पर वैष्णव गुरूओं की जयंतियां और पुण्य तिथियां भी बडी धूम-धाम से मनाई जाती हैं। सत्तरा में कई इमारतों का निर्माण किया गया है। यह इमारतें 20 बीघा में फैली हुई हैं। यहां पर एक कीर्तन घर का निर्माण भी किया गया है। पूरे असम में यह सबसे बड़ा कीर्तन घर है। कीर्तन घर के अलावा यहां पर तीन आसनों का भी निर्माण किया गया है। यह तीन आसन श्रीमंत शंकरदेव, श्री महादेव और श्री बदुला अता को समर्पित हैं। यहां पर प्रतिदिन नाम-प्रसंग का पाठ भी किया जाता है।
श्रीमंत शंकरदेव ने सबसे पहले अपने चरण यहीं पर रखे थे। यह प्लांग्दी बोरी नदी के किनारे पर स्थित है। प्लांग्दी बोरी को अब प्लांगदिहाती के नाम से जाना जाता है। शंकरदेव ने यहां पर छ: मास तक वास किया था और यहीं पर उन्होंने उपदेश दिए थे। यह बरपेटा सत्तरा से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। शंकरदेव ने यहां पर नामघर का निर्माण भी कराया था। इस नामघर को पर्यटक आज भी देख सकते हैं।
सुन्दरीदिया सत्तरा वैष्णव धर्म का सबसे महत्वपूर्ण सत्तरा है। इस सत्तरा का निर्माण श्री माधवदेव ने कराया था। यहीं पर उन्होंने भक्ति रत्नाकर और नामघोष नामक पुस्तक की रचना की थी। अपने वास के दौरान उन्होंने यहां पर एक कुआं भी खुदवाया था। इस कुंए को बहुत पवित्र माना जाता है।
यह सत्तरा बरपेटा शहर की उत्तर दिशा में स्थित है। इसे देखने के लिए हर वर्ष हजारों की संख्या में पर्यटक आते हैं। असम के सभी सत्तारों में से यह सत्तरा सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि सत्तरा होने के साथ-साथ यह एक सांस्कृतिक केन्द्र भी है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का केन्द्र है। वैष्णव सम्प्रदाय के तीन सबसे बड़े गुरु यहां जीवन व्यतीत कर चुके हैं। इन सभी गुरूओं ने अपने जीवनकाल के दौरान अनेक शास्त्रों और गीतों की रचना की। श्रीमंत शंकरदेव ने अपने जीवन के 18 वर्ष इसी सत्तरा में बिताए। यहां रहते हुए उन्होंने 240 बारगीतों, शास्त्रों और अंकिया नट (नाटकों) की रचना की। यह सभी रचनाएं आज भी इस सत्तरा में देखी जा सकती है। असम सरकार ने इन बेशकीमती रचनाओं के संरक्षण के लिए इस सत्तरा में एक संग्राहलय का निर्माण भी कराया है। इस सत्तरा में दामोदर देव सत्तरा का निर्माण भी किया गया है।
सैय्यद शाहनूर सूफी संत अजन फकीर के अनुयायी थे। भेला में रहकर उन्होंने सूफी दर्शन का प्रचार किया। सूफी दर्शन में दैविक शक्ति होती है। इसी दैविक शक्ति से उन्होंने अहोम वंश के राजा शिव सिंह की पत्नी फूलेश्वरी की गर्भावस्था की समस्या का निदान किया था। रानी को ठीक करने पर राजा ने उसे अनेक उपहार और काफी भूमि प्रदान की थी। राजा शिवसिंह के अलावा राजा चन्द्र कांत सिंह ने भी शाहनूर को भूमि प्रदान की थी। भूमि पर अधिकार का आदेश उन्होंने ताम्रपत्र पर दिया था। यह ताम्रपत्र 1824 ई. के बर्मा युद्ध में गुम हो गए।
निज सरीहा (सोरभोग): श्री नारायण दास ठाकुर अता श्रीमंत शंकरदेव के अनुयायी थे। यह थान उन्हीं को समर्पित है। इस थान की संरचना बरपेटा सत्तरा के कीतर्नघर की संरचना से काफी मिलती-जुलती है। इसका क्षेत्रफल 25 बीघा है। यहां पर हर वर्ष दौल उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
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