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उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ां (२ अप्रैल १९०२- २३ अप्रैल १९६८) हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के पटियाला घराने के गायक थे। उनकी गणना भारत के महानतम गायकों व संगीतज्ञों में की जाती है। इनका जन्म लाहौर के निकट कसूर नामक स्थान पर पाकिस्तान में हुआ था,[1] पर इन्होने अपना जीवन अलग समयों पर लाहौर, बम्बई, कोलकाता और हैदराबाद में व्यतीत किया। प्रसिद्ध ग़जल गायक गुलाम अली इनके शिष्य थे। इनका परिवार संगीतज्ञों का परिवार था। बड़े गुलाम अली खां की संगीत की दुनिया का प्रारंभ सारंगी वादक के रूप में हुआ बाद में उन्होंने अपने पिता अली बख्श खां, चाचा काले खां और बाबा शिंदे खां से संगीत के गुर सीखे। इनके पिता महाराजा कश्मीर के दरबारी गायक थे और वह घराना "कश्मीरी घराना" कहलाता था। जब ये लोग पटियाला जाकर रहने लगे तो यह घराना "पटियाला घराना" के नाम से जाना जाने लगा। अपने सधे हुए कंठ के कारण बड़े गुलाम अली खां ने बहुत प्रसिद्ध पाई। सन १९१९ के लाहौर संगीत सम्मेलन में बड़े गुलाम अली खां ने अपनी कला का पहली बार सार्वजनिक प्रदर्शन किया। इसके कोलकाता और इलाहाबाद के संगीत सम्मेलनों ने उन्हें देशव्यापी ख्याति दिलाई। उन्होंने अपनी बेहद सुरीली और लोचदार आवाज तथा अभिनव शैली के बूते ठुमरी को एकदम नये अंदाज में ढाला जिसमें लोक संगीत की मिठास और ताजगी दोनों मौजूद थी। संगीत समीक्षकों के अनुसार उस्ताद खां ने अपने प्रयोगधर्मी संगीत की बदौलत ठुमरी की बोल बनाव शैली से परे जाकर उसमें एक नयी ताजगी भर दी। उनकी इस शैली को ठुमरी के पंजाब अंग के रूप में जाना जाता है। वे अपने खयाल गायन में ध्रुपद, ग्वालियर घराने और जयपुर घराने की शैलियों का खूबसूरत संयोजन करते थे।[2] बड़े गुलाम अली खां के मुँह से एक बार "राधेश्याम बोल" भजन सुनकर महात्मा गाँधी बहुत प्रभावित हुए थे। मुगले आजम फिल्म में तानसेन पात्र के लिए उन्होंने ही अपनी आवाज़ दी थी। भारत सरकार ने १९६२ ई. में उन्हें "पद्मभूषण" से सम्मानित किया था। २३ अप्रैल १९६८ ई. को बड़े गुलाम अली खां का देहावसान हो गया।[3]
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