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माता पाथरी वाली को माता धूतनी के नाम से भी जाना जाता है।माता का मंदिर पानीपत सीक पाथरी गाँव की भुमि पर स्थित है। चैत्र और आषाढ के बुधवारों को यहाँ भारी मेले लगते हैं। माता का यह मंदिर ५०० वर्षों से भी अधिक प्राचीन है।
पाथरी वाली माता पाथरी वाली धूतनी माता मंदिर | |
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पाथरी वाली माता | |
धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिन्दू धर्म |
देवता | धूतनी माता, गोड बंगालन, बावन रूपी |
त्यौहार | चैत्र, आषाढ के बुधवार |
अवस्थिति जानकारी | |
अवस्थिति | पाथरी गाँव पानीपत |
राज्य | हरियाणा |
देश | भारत |
वास्तु विवरण | |
निर्माता | सिंघा जाट |
निर्माण पूर्ण | 500 वर्ष पूर्व |
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माता पाथरी के विषय मे अनेकों दंत कथाएँ प्रचलित है। लोकगीतों और लोक मान्यताओं के अनुसार माता पाथरी का जन्म गौड बंगाल के रहने वाले सोहन गुर्जर के घर मे हुआ था। पंडित जब नामाकरण के लिए इनकी मस्तक रेखा देखने लगे तो यह शक्तिरूप हो अट्टहास कर हंसने लगी नवजात कन्या को अट्टहास करता देख पंडित ने अनिष्टकारी संबोधित करके कुएं मे फिंकवा दिया।जहाँ नागे गुरु ने इनको कुएं से बाहर निकाला। शक्ति ने नागे गुरु से टक्कर ली और ईश्वर की प्रेरणा से नागे गुरु जी ने इनको एक डिब्बी मे बंद करके अपनी जटाओं मे स्थान दिया। इन देवी ने नागे गुरु की शक्ति से परिचित होकर उनकों अपने गुरु जी के रूप मे धारण किया।
कथा के अनुसार सीक पाथरी गाँवों के नत्थू और भरतू दो युवकों ने नागे गुरु जी की बहुत सेवा की जिससे प्रसन्न होकर नागे गुरु ने वह डिब्बी नत्थू को देते हुए कहा इसको संभालकर रखना।एक दिन गुरु जी के प्रस्थान के पश्चात नत्थू ने डिब्बी को खोला तो माता प्रकट हो गयी। नत्थू डर गया किंतु बाद मे शक्ति के रहस्य को जानकर नत्थू और भरतू माता की सेवा करने लगे। गाँव के जमींदार जाट सिंघा द्वारा जाल के पेड़ के नीचे माता का स्थान बनवाया गया।तभी से माता की पूजा निरंतर होती आ रही है।
इन्हें भी देखें
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