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विस्फोटक उपकरण जो परमाणु प्रतिक्रिया से अपनी विनाशकारी शक्ति प्राप्त करता है विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
परमाण्वस्त्र (परमाणु-अस्त्र) या नाभिकीयास्त्र एक विस्फोटक उपकरण है जो नाभिकीय अभिक्रियाओं से अपनी विनाशकारी शक्ति प्राप्त करता है, या तो विखण्डन (विखण्डनास्त्र) या विखण्डन और संलयन प्रतिक्रियाओं (उष्णपरमाण्वस्त्र) का संयोजन, नाभिकीय विस्फोट का उत्पादन करता है। दोनों प्रकार के बम अपेक्षाकृत कम मात्रा में पदार्थ से बड़ी मात्रा में ऊर्जा छोड़ते हैं।
परमाण्वस्त्र के पहले परीक्षण में लगभग 20,000 टन टीएनटी के समतुल्य ऊर्जा जारी हुई। पहले उष्णपरमाण्वस्त्र (हाइड्रोजन बम) के परीक्षण ने लगभग 10 मिलियन टन टीएनटी के समतुल्य ऊर्जा जारी की। परमाण्वस्त्रों की उत्पाद 10 टन टीएनटी (W54) और त्सार बॉम्बा के लिए 50 मेगाटन के बीच थी। 270 किलोग्राम जितना कम वजन वाला थर्मोन्यूक्लियर हथियार 1.2 मेगाटन से अधिक टीएनटी के समतुल्य ऊर्जा छोड़ सकता है। आज के समय के परमाणु बम्बई ज्यादा खतरनाक है
कोई परमाण्वस्त्र; एक पारम्परिक बम से बड़ा नहीं; विस्फोट, अग्नि और विकिरण से पूरे नगर को ध्वस्त कर सकता है। चूंकि वे व्यापक विनाश के अस्त्र हैं, इसलिए परमाण्वस्त्रों का प्रसार अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध नीति का केन्द्र है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1945 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा जापानी नगरों हिरोशिमा और नागासाकी के विरुद्ध युद्ध में परमाण्वस्त्रों को दो बार स्थापित किया गया था।
परमाणु बम में विस्फुटित होने वाला पदार्थ यूरेनियम या प्लुटोनियम होता है। यूरेनियम या प्लुटोनियम के परमाणु विखंडन (Fission) से ही शाक्ति प्राप्त होती है। इसके लिए परमाणु के केंद्रक (nucleus) में न्यूट्रॉन (neutron) से प्रहार किया जाता है। इस प्रहार से ही बहुत बड़ी मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है। इस प्रक्रम को भौतिक विज्ञानी नाभिकीय विखंडन (nuclear fission) कहते हैं। परमाणु के नाभिक के अभ्यंतर में जो न्यूट्रॉन होते हैं उन्हीं से न्यूट्रान मुक्त होते हैं। ये न्यूट्रॉन अन्य परमाणुओं पर प्रहार करते हैं और उनसे फिर विखंडन होता है। ये फिर अन्य परमाणुओं का विखंडन करते हैं। इस प्रकार शृंखला क्रियाएँ आरंभ होती हैं। परमाणु बम की अनियंत्रित शृंखला क्रियाओं के फलस्वरूप भीषण प्रचंडता के साथ परमाणु का विस्फोट होता है।
यूरेनियम के कई समस्थानिक ज्ञात हैं। सामान्य यूरेनियम में 99.3 प्रतिशत यू-238 (U-238) और 0.7 प्रतिशत यू-235 (U-235) रहते हैं। यू-238 का विखंडन उतनी सरलता से नहीं होता जितनी सरलता से यू-235 का विखंडन होता है। यू-235 में यू-238 की अपेक्षा तीन न्यूट्रॉन कम रहते हैं। न्यूट्रॉन की इस कमी के कारण ही यू-235 का विखंडन सरलता से होता है।
अन्य विखंडनीय पदार्थ जो परमाणु बम में काम आते हैं वे यू-233 और प्लुटोनियम-239 हैं। परमाणु विस्फोट के लिए विखंडनीय पदार्थ की क्रांतिक संहति (critical mass) आवश्यक होती है। शृंखला क्रिया के चालू करने के लिए क्रांतिक संहति न्यूनतम मात्रा है। यदि विखंडनीय पदार्थ की मात्रा क्रांतिक संहति से कम है तो न्यूट्रॉन केवल धुर्रधुर्र करता रहेगा। मात्रा के धीरे धीरे बढ़ाने से एक समय ऐसी अवस्था आएगी जब कम से कम एक उन्मुक्त न्यूट्रॉन एक नए परमाणु पर प्रहार कर उसका विखंडन कर देगा। ऐसी स्थिति पहुँचने पर विखंडन क्रिया स्वत: चलने लगती है। क्रांतिक संहति की मात्रा गोपनीय है। जो राष्ट्र परमाणु बम बनाते है वे ही जानते हैं और दूसरों को बतलाते नहीं।
यदि यू-235 की क्रांतिक संहति 20 पाउंड है तो दस दस पाउंड दो जगह लेने से शृंखला क्रिया चालू नहीं होगी। 20 पाउंड को एक साथ लेने से ही शृंखलाक्रिया चालू होगी। शृंखलाक्रिया में न्यूट्रॉन की संख्या बड़ी शीघ्रता से बढ़ती है।
परमाणु बम में विखंडन से यूरेनियम और उसे निकटवर्ती अन्य पदार्थों का ताप बड़ी शीघ्रता से ऊपर उठता है। धात्विक यूरेनियम बड़ी ऊँची दाब और ताप पर तापदीप्त गैस में परिणत हो जाता है। विस्फोटक पिंड का ताप 10,00,00,000° से. तक उठ जाता है। इतने ऊँचे ताप पर यूरेनियम की थापी (tamper) हट जाती है। तब सारा पिंड बड़ी प्रचंडता से विस्फुटित होता है। परमाणु बम के विस्फुटित होने पर आधात तरंगें (Shock waves) उत्पन्न होती हैं जो ध्वनि की गति से भी अधिक गति से चारों ओर फैलती है। जब परमाणु बम को पृथ्वीतल के ऊपर विस्फुटित किया जाता है तो तरंगें पृथ्वीतल से टकराकर ऊपर उठती हैं और नया आघात उत्पन्न करती हैं जो ऊपर और नीचे तीव्रता से फैलता है। विस्फोट (Bomb blast) का केंद्र तत्काल तप्त होकर निर्वात उत्पन्न करता है। निर्वात भरने के लिए आसपास की ठंडी हवाएँ दौड़ती है। इस प्रकार परमाणु बम से घरों पर आघात पड़ने से वे टूट जाते हैं।
विस्फोटी यूरेनियम अन्य तत्वों में बदल जाता है, उससे रेडियो ऐक्टिवेधी किरणें निकलकर जीवित कोशिकाओं को आक्रांत कर उन्हें नष्ट कर देती हैं। बम का विनाशीकारी कार्य (1) आघात तरंगों, (2) वेधी किरणों तथा (3) अत्यधिक ऊष्मा उत्पादन के कारण होता है।
हाइड्रोजन बम परमाणु बम का एक प्रकार है। हाइड्रोजन बम या एच-बम (H-Bomb) अधिक शक्तिशाली परमाणु बम होता है। इसमें हाइड्रोजन के समस्थानिक ड्यूटीरियम (deuterium) और ट्राइटिरियम की आवश्यकता पड़ती है। परमाणुओं के संलयन करने (fuse) से बम का विस्फोट होता है। इस संलयन के लिए बड़े ऊँचे, ताप, लगभग 500,00,000° सें. की आवश्यकता पड़ती है। यह ताप सूर्य के ऊष्णतम भाग के ताप से बहुत ऊँचा है। परमाणु बम द्वारा ही इतना ऊँचा ताप प्राप्त किया जा सकता है। अमेरिका, इंग्लैंड, रूस, चीन व भारत ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया। माना जा रहा हा कि उत्तर कोरिया ने भी ऐसा खतरनाक बम बनाया है।
जब परमाणु बम आवश्यक ताप उत्पन्न करता है तभी हाइड्रोजन परमाणु संलयित (fuse) होते हैं। इस संलयन (fusion) से ऊष्मा और शक्तिशाली किरणें उत्पन्न होती हैं जो हाइड्रोजन को हीलियम में बदल देती हैं। 1922 ई. में पहले पहल पता लगा था कि हाइड्रोजन परमाणु के विस्फोट से बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न हो सकती है।
1932 में ड्यूटीरियम नामक भारी हाइड्रोजन का और 1934 ई. में ट्राइटिरियम (ट्रिशियम) नामक भारी हाइड्रोजन का आविष्कार हुआ। 1950 ई. में संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति ट्रु मैन ने हाइड्रोजन बम तैयार करने का आदेश दिया। इसके लिए 1951 ई. में साउथ कैरोलिना में एक बड़े कारखाने की स्थापना हुई। 1953 ई. में राष्ट्रपति आइजेनहाबर ने घोषणा की थी कि TNT के लाखों टन के बराबर हाइड्रोजन बम तैयार हो गया है। 1955 ई. में सोवियत संघ ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया। चीन और फ्रांस ने भी हाइड्रोजन बम के विस्फोट किए हैं।
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