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पंचगंगा घाट, कोल्हापुर के उत्तर-पश्चिम में पंचगंगा नदी पर निर्मित प्रसिद्ध घाट है। इस घाट के आस-पास कई छोटे बड़े मन्दिर हैं जिसमें से कुछ नदी के बीच भी स्थित हैं। पंचघंगा घाट पूरी तरह से पत्थरों से निर्मित है। यह बहुत बड़ा है और प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर है।
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के लिए उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (जून 2020) स्रोत खोजें: "पंचगंगा घाट" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
यहीं पर सन्त एकनाथजी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया और काशिनरेश तथा विद्वतजनों द्वारा उस ग्रन्थ की हाथी पर शोभायात्रा बड़ी धूमधामसे निकाली गयी। आलमगीर मस्जिद जो स्थानीय स्तर पर बेनी माधव का डेरा के नाम से जानी जाती है, यहाँ स्थित है। अब इसकी मीनारें कम ऊंचाई की रह गई हैं। वास्तव में यह मस्जिद अपने समय के सबसे बड़े मंदिर बिंदु माधव के अवशेषों पर खड़ी है। यह विष्णु जी का एक विशाल मंदिर हुआ करता था जो पंचगंगा से राम घाट तक फैला हुआ था। बाद में औरंगज़ेब ने इसे तहस-नहस कर दिया और यहीं बनवाई शानदार मस्जिद। पंचगंगा हिंदू-मुस्लिम संबंधों की एक और कड़ी अपने में समेटे हुए है। यह कड़ी है मध्ययुगीन काल के सूफी संत कबीर के रूप में। एक मुस्लिम जुलाहे के पुत्र कबीर अपनी रचनाओं और मानवीय दृष्टिकोण के चलते हिंदू-मुस्लिम दोनों ही वर्गों में समान रूप से लोकप्रिय थे। नदी के मुहाने पर तीन तरफ से घिरी कोठरियां हैं, जो बरसात के मौसम में पानी में डूबी रहती हैं। इनमें से कुछ में शिवलिंग हैं तो कुछ में भगवान विष्णु की मूर्तियां स्थापित हैं। कुछ खाली भी पड़ी हैं जिनका इस्तेमाल ध्यान और योग करने में किया जाता है। यहीं पर है पांच नदियों के संगम का प्रतीक मंदिर। धूतपाप और किरण जैसी अदृश्य नदियों समेत यमुना, सरस्वती और गंगा नदी का यह मिलन स्थल है।
उत्तर की ही तरफ त्रिलोचन घाट से भी आगे पड़ता है त्रिनेत्र शिव का प्रतीक शिवलिंग। इसके आगे गंगा नदी वाराणसी के कुछ ऐसे इलाकों से होकर गुजरती है जो आजकल मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र हैं। यहां पड़ने वाले घाट भी समय के साथ-साथ अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं और महज कच्चे घाट ही बचे हैं।
शहर के बाहरी हिस्से में पड़ने वाले आदि केशव घाट पर वरुण नदी गंगा में मिलती है। बरसात के दिनों में यहां पहुंचना भी मुश्किल है क्योंकि यह पूरी तरह से पानी में डूब चुका होता है। यह वह स्थान है जहां भगवान विष्णु शिवजी के दूत बनकर आए थें। वास्तव में यही शहर का मूल स्थान है। कालांतर में शहर का फैलाव दक्षिण की दिशा में हुआ। आदि केशव के आस-पास भगवान गणेश के कई मंदिर हैं।
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