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पौधों की प्रजाति विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
नागकेसर या नागचम्पा (वानस्पतिक नाम : Mesua ferrea)[1] एक सीधा सदाबहार वृक्ष है जो देखने में बहुत सुंदर होता है। यह द्विदल अंगुर से उत्पन्न होता है। पत्तियाँ इसकी बहुत पतली और घनी होती हैं, जिससे इसके नीचे बहुत अच्छी छाया रहती है। इसमें चार दलों के बडे़ और सफेद फूल गरमियों में लगते हैं जिनमें बहुत अच्छी महक होती है। लकड़ी इसकी इतनी कड़ी और मजबूत होती है कि काटनेवाले की कुल्हाडियों की धारें मुड मुड जाती है; इसी से इसे 'वज्रकाठ' भी कहत हैं। फलों में दो या तीन बीज निकलते हैं। हिमालय के पूरबी भाग, पूरबी बंगाल, आसाम, बरमा, दक्षिण भारत, सिहल आदि में इसके पेड बहुतायत से मिलते हैं।[2][3]
नाग केसर Mesua ferrea | |
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Ceylon ironwood in Thelwatta, South-East Sri Lanka. | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | पादप |
विभाग: | सपुष्पक पौधा |
वर्ग: | मैग्नोलियोप्सीडा |
गण: | Malpighiales |
कुल: | Clusiaceae |
उपकुल: | Kielmeyeroideae |
वंश समूह: | Calophylleae |
वंश: | Mesua |
जाति: | M. ferrea |
द्विपद नाम | |
Mesua ferrea Carolus Linnaeus | |
पर्यायवाची | |
Mesua coromandelina Wight |
नागकेसर के सूखे फूल औषध, मसाले और रंग बनाने के काम में आते हैं। इनके रंग से प्रायः रेशम रँगा जाता है। श्रीलंका में बीजों से गाढा, पीला तेल निकालते हैं, जो दीया जलाने और दवा के काम में आता है। तमिलनाडु में इस तेल को वातरोग में भी मलते हैं। इसकी लकड़ी से अनेक प्रकार के सामान बनते हैं। लकड़ी ऐसी अच्छी होती है कि केवल हाथ से रँगने से ही उसमें वारनिश की सी चमक आ जाती है। बैद्यक में नागकेसर कसेली, गरम, रुखी, हलकी तथा ज्वर, खुजली, दुर्गंध, कोढ, विष, प्यास, मतली और पसीने को दूर करनेवाली मानी जाती है। खूनी बवासीर में भी वैद्य लोग इसे देते हैं। इसे 'नागचंपा' भी कहते हैं।
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