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संपादक, निबंधकार, नाटककार, जीवनीकार, उपन्यासकार, लघु कथाकार, कवि, आलोचक, इतिहासकार, दार्शनिक और राज विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
नरसिंहन चिंतामण केळकर या तात्यासाहेब केलकर (२४ अगस्त, १८७२- १४ अक्तूबर, १९४७) एक उल्लेखानीय साहित्यकार थे जिन्हें 'साहित्य-सम्राट' की उपाधि से अलंकृत किया गया था। ये केसरी-महारत्त समाचार-पत्र के ४१ वर्षों तक संपादक रहे थे। इसके साथ ही ये केसरी न्यास के न्यासी (ट्रस्टी) भी थे।
नरसिंह चिंतामण केलकर | |
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जन्म |
24 अगस्त 1872 मिराज, महाराष्ट्र, भारत |
मौत |
14 अक्टूबर 1947 75 वर्ष) पुणे, भारत | (उम्र
राष्ट्रीयता |
British India (1872-1947) Dominion of India (1947-1947) |
उपनाम | साहित्यसम्राट तात्यासाहेब केळकर |
पेशा | राजनेता, अधिवक्ता, सम्पादक, उपन्यासकार, इतिहासकार |
राजनैतिक पार्टी | हिन्दू महासभा |
इन्होंने कला स्नातक व विधि स्नातक किया था। बाद में इन्होंने सतारा में वकालत की। इनको बालगंगाधर तिलक द्वारा १८६९ में मुंबई बुलाया गया था। १९१६ में इन्होंने तिलक के साठवें जन्मदिवस के आयोजन के लिए सक्रिय भाग लिया, व एक लाख रुपए का चंदा जमा किया। १९२० में तिलक की मृत्यु उपरांत कांग्रेस में तिलक समर्थकों के अग्रणी रहे। ये १९२४-१९२९ तक वाइसरॉय परिषद के सदस्य भी रहे थे। ये अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के दो बार अध्यक्ष निर्वाचित हुए (१९२८-जबलपुर सत्र एवं १९३२-दिल्ली सत्र)।
नरसिंह चिंतामणि केलकर का जन्म मिरज (महाराष्ट्र) में हुआ था। हाईस्कूल और कालेज में उन्होने अंग्रेजी एवं संस्कृत साहित्य का विशेष अध्ययन किया और उनकी साहित्यिक प्रतिभा पल्लवित हुई। बी० ए०, एल-एल० बी० होने के पश्चात् वे लोकमान्य तिलक के अंग्रेजी समाचार पत्र मराठा के संपादक हुए। इस प्रकार सन् 1947 तक वे मराठा, केसरी तथा सह्याद्रि (मासिकपत्र) जैसे लोकप्रिय एवं प्रौढ़ समाचारपत्रों के संपादक रहे।
वे न केवल व्यवसायी संपादक वरन् सव्यसाची साहित्यिक भी थे। संपादन करते हुए उन्होंने मालाकार चिपलूणकर की प्रौढ़ निबंधशैली का उत्कर्ष किया। इन्होंने निबंध, जीवनी, नाटक, इतिहास, साहित्यशास्त्र, उपन्यास, विनोद, यात्रावर्णन आदि अनेक साहित्यरूपों में अपनी प्रौढ़ कृतियों द्वारा अच्छा योग दिया। इनकी निबंधरचना इतनी विविध, विपुल और कलापूर्ण है कि मराठी में कदाचित् ही किसी एक व्यक्ति ने इनकी टक्कर का निबंधप्रणयन किया हो। इनकी निबंधरचना लगभग पाँच हजार पृष्ठों की है।
'गैरीबाल्डी चरित्र', 'आयरिश देशभक्तों के चरित्र', 'लोकमान्य तिलक का त्रिखंडात्मक बृहत् चरित्र' (लगभग तीन हजार पृष्ठों का) और आत्मकथा (लगभग आठ सौ पृष्ठों की) की रचना कर इन्होंने चरित्रसाहित्य को खूब संपन्न किया। इनका ऐतिहासिक संशोधनयुक्त 'मराठे व इंग्रज' ग्रंथ पठनीय और संग्रहणीय है। वैसे ही 'सुभाषित और विनोद' नामक प्रौढ़ ग्रंथ का प्रणयान कर इन्होंने हास्य रस का शास्त्रीय शैली से प्रतिपादन किया है।
केलकर सफल समीक्षक भी थे। इन्होंने लगभग सौ भिन्न प्रकार के ग्रंथों के मार्मिक परिचय लिखे और बीसों ग्रंथों की उद्बोधक समालोचनाएँ कीं। वे मराठी के दूसरे साहित्यसम्राट कहे जाते हैं। अपने सामर्थ्य के अनुसार इन्होंने देश सेवा में भी योग दिया। 1947 ई. में इनका निधन हुआ।
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