नरसिंहपुर
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नरसिंहपुर (Narsinghpur) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के नरसिंहपुर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।[1][2]
नरसिंहपुर Narsinghpur | |
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निर्देशांक: 22.95°N 79.19°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | मध्य प्रदेश |
ज़िला | नरसिंहपुर ज़िला |
क्षेत्रफल | |
• कुल | 5143 किमी2 (1,986 वर्गमील) |
ऊँचाई | 347 मी (1,138 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 5,03,000 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 487001 |
वाहन पंजीकरण | MP-49 |
वेबसाइट | http://narsinghpur.nic.in |
मध्य प्रदेश के मध्य में स्थित नरसिंहपुर 5000 वर्ग किमी. के क्षेत्रफल में फैला राज्य का प्रमुख जिला है। उत्तर में विन्ध्याचल और दक्षिण में सतपुड़ा की पहाड़ियों से घिरे नरसिंहपुर पर प्रकृति खूब मेहरबान हुई है। पवित्र नर्मदा नदी जिले की खूबसूरती में वृद्धि करती है। प्राचीन काल में यहां अनेक वंशों ने शासन किया था। महान वीरांगना रानी दुर्गावती के काल में यह स्थान काफी चर्चित रहा था। यहां अनेक ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल हैं। मृगन्नाथ धाम राजमार्ग ,नरसिंह मंदिर, ब्राह्मण घाट, झौतेश्वर आश्रम, श्रीनगर का जगन्नाथ मंदिर और डमरू घाटी यहां के लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं।
नरसिंहपुर जिला क्षेत्र अपने भीतर अस्तित्व के प्राचीनतम प्रमाण छुपाये हुये है । जो विभिन्न पुरातात्विक खोजों से समय समय पर उजागर होते रहे हैं । जिले के गजेटियर में उल्लखित पुरातात्विक प्रमाणों के अनुसार जिले के गाडरवारा से दूर भटरा नामक ग्राम में 1872 में पाषाण युग के जीवाश्म युक्त पशु और बलुआ पत्थर से निर्मित उपकरण प्राप्त हुये हैं । अन्य खोज अभियानों में देवाकछार, धुवघट, कुम्हड़ी, रातीकरार और ब्रम्हाण घाट आदि स्थलों में प्रागेतिहासिक अवशेष मिले हैं । बिजौरी ग्राम के समीप चिन्हित शैलामय एवं नक्कासीदार चट्टानी गुफायें भी जिले के अस्तित्व को प्राचीनतम काल से जोड़ते हैं । ब्रम्हाण घाट से झांसी घाट के बीच नर्मदा के तटवर्ती खोज अभियानों में मिले स्तनधारी जीवाश्म तथा पुरातात्विक औजारों के अवशेष जिले को प्रागेतिहासिक इतिहास से जोड़ते हैं ।
अनुकृतियों के अनुसार इस क्षेत्र का संबंध रामायण और महाभारत काल की घटनाओं से रहा है । पौराणिक संदर्भो के अनुसार ब्रम्हाण घाट वह स्थल है जहां सृष्टि के रचियता ब्रम्हा ने पवित्र नर्मदा के तट पर यज्ञ सम्पन्न किया था । चांवरपाठा विकास खंड के बिल्थारी ग्राम का प्राचीन नाम बलि स्थली " कहा जाता है । इसे राजा बलि का निवास स्थान माना जाता है ।
महाभारत काल में बरमान घाट के सत्धारा पर पाण्डवों द्वारा नर्मदा की धारा को एक ही रात में बांधने के प्रयत्न का उल्लेख पुराणों में हुआ है । सत्धारा के निकट भीम कुण्ड, अर्जुन कुण्ड आदि इसी को ईंगित करते हैं । कहा जाता है कि पाण्डवों ने वनवास की कुछ अवधि यहां बिताई थी । सांकल घाट की गुफा आदि गुरू शंकराचार्य के गुरूदेव के अध्ययन एवं साधना से जुड़ी है ।
जिले का बरहटा ग्राम महाभारत काल के विराट नगर का अवशेष माना जाता है । यहीं कदम कदम पर मिलतीं पाषाण मूर्तियां और कलात्मक अवशेष से इस किवदंती को बल मिलता है । बचई के निकट पड़ी मानवाकार पाषाण शिला को कीचक" से जोड़ा जाता है । जिले के बोहानी क्षेत्र को पृथ्वीराज कालीन वीरचरित नायकों आल्हा-ऊदल के पिता जसराज व चाचा बछराज का गढ़ माना जाता है । अनेक ऐतिहासिक प्रमाणों खुदाई में प्राप्त प्राचीन वस्तुओं तथा उल्लेखों से जिले का संदर्भ प्राचीन काल से जोड़ने वाले तथ्य और अनुकृतियां बहुतायत में हैं । पर इतिहास ग्रंथों तथा ऐतिहासिक अभिलेखों द्वारा जिले के प्रमाणिक इतिहास की श्रृंखला दूसरी शताब्दी के इतिहास से मिलती है ।
दूसरी शताब्दी में इस क्षेत्र पर सातवाहन शासकों का अधिपत्य था । चौथी शताब्दी में यह गुप्त साम्राज्य के अधीन रहा जब समुद्र गुप्त ने मध्य भारत क्षेत्र तथा दक्षिण तक अपने साम्राज्य की सीमायें स्थापित करने में सफलता पाई । छठी शताब्दी में पेदीराज्य के कुछ संकेत मिलते हैं । पर लगभग 300 वर्षो तक का काल पुन: अंधेरों में खोया हुआ है । नौवीं शताब्दी में क्षेत्र कलचुरी शासन (हैहय) के स्थापित होने का उल्लेख प्राप्त है । कलचुरी राजवंश की राजधानी नर्मदा किनारे माहिष्मती नगरी थी जो आगे चलकर त्रिपुरी में स्थापित हो गई । कलचुरी राज्य के गोमती से नर्मदा घाट तक फैले होने का विवरण इतिहास ग्रंथों में सुरक्षित है । कलचुरी सत्ता के पतन के पश्चात इस क्षेत्र पर आल्हा-ऊदल के पिता व चाचा के संरक्षण का उल्लेख मिलता है । जिनने बोहानी को अपना राज केन्द्र बनाया उनके पश्चात लगातार चार शताब्दियों तक यह क्षेत्र राजगौड़ वंश के साम्राज्य का अंग रहा ।
इस शासन की स्थापना से जिले में नये व्यवस्थित शांतिपूर्ण एवं खुशहाली का दौर प्रारंभ होता है । इस राजवंश के उदय का श्रेय यादव राव (यदुराव) को दिया जाता है । जिनने चौदहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षो में गढ़ा कटंगा में स्थापित किया और एक महत्वपूर्ण शासन क्रम की नींव डाली । इसी राजवंश के प्रसिद्ध शासक संग्राम शाह (1400-1541) ने 52 गढ़ स्थापित कर अपने साम्राज्य को सुदृढ़ बनाया । नरसिंहपुर जिले में चौरागढ़ (चौगान) किले का निर्माण भी उसने ही कराया था जो रानी दुर्गावती के पुत्र प्रेमनारायण की वीरता का मूक साक्षी है । संग्राम शाह के उत्तराधिकारियों में दलपति शाह ने सात वर्ष शांति पूर्वक शासन किया । उसके पश्चात उसकी वीरांगना रानी दुर्गावती ने राज्य संभाला और अदम्य साहस एवं वीरता पूर्वक 16 वर्ष (1540-1564) शासन किया । सन् 1564 में अकबर के सिपहसलार आतफ खां से युद्ध करते हुये रानी ने वीरगति पाःथ्द्यर्; । नरसिंहपुर जिले में स्थित चौरागढ़ एक सुदृढ़ पहाड़ी किले के रूप में था जहां पहुंच कर आतफ खां ने राजकुमार वीरनारायण को घेर लिया और अंतत: कुटिल चालों से उसका बध कर दिया । गढ़ा कटंगा राज्य पर 1564 में मुगलों का अधिकार हो गया गौंड़, मुगल, और इनके पश्चात यह क्षेत्र मराठों के शासन काल में प्रशासनिक और सैनिक अधिकारियों तथा अनुवांशिक सरदारों में बंटा हुआ रहा । जिनके प्रभाव और शक्ति के अनुसार ईलाकों की सीमायें समय समय पर बदलती रहती थीं । जिले के चांवरपाठा, बारहा, सांःथ्द्यर्;खेड़ा, शाहपुर, सिंहपुर, श्रीनगर और तेन्दूखेड़ा इस समूचे काल में परगानों के मुख्यालय के रूप में प्रसिद्ध रहे ।
सन् 1785 में माधो जी भोसले ने 27 लाख रूपये में मण्डला और नर्मदा घाटी को प्राप्त कर लिया जो राधो जी भोसले/भोपाल नबाब/पिंडोरी सरदारों आदि की खींचतान और सैन्य शासन के क्रूर दबाब में डूबता उतराता रहा । इसे संकटो और अस्थिरता का कौल कहा जा सकता है । जिसमें लूटपाट के साथ क्षेत्र की जनता का जबरजस्त शोषण हुआ । अंतत: 1817 में ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आ गया ।
ब्रिटिश अधिपत्य के कठोर शिकंजे में रहने के वावजूद जिले में आजादी की तड़प जन मानस में सदैव कौंधती रही । 1857 में चांवरपाठा और तेन्दूखेड़ा पुलिस स्टेशनों पर बिद्रोही सैनानियों ने अधिकार कर लिया । मदनपुर के गौड़ प्रमुख डेलन शाह के नेतृत्व में आजादी के लिये विप्लव का शंखनाद हुआ । 1858 में डेलन शाह को पकड़ लिया जाकर फांसी पर लटका दिया गया । 1857 के पहले स्वतंत्रता संघर्ष को कुचलकर ब्रिटिश सम्राट अपनी जडें जमाने में सफल होता रहा ।
1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के पश्चात जिले में आजादी के लिये आंदोलन की चिनगारी सदैव प्रज्वलित रही - लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, पं. जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चंद्र वोस प्रभूति नेताओं की प्रेरणा और नेतृत्व में जिले में स्वतंत्रता के लिये आंदोलन का जोश पूर्ण वातावरण रहा । जिले के नेताओं में गयादत्त, माणिकचंद कोचर, चौधरी शंकर लाल, ठाकुर निरंजन सिंह, श्याम सुंदर नारायण मुशरान आदि के नेतृत्व में जिले से बड़ी संख्या में आंदोलन कारी सक्रिय रहे । इसी एकता एवं उत्साह को भंग करने के लिये ब्रिटिश शासन ने 1932 में जिले को पुन: तोड़कर होशंगावाद जिले में मिला दिया गया । परंतु इससे आंदोलन और सत्याग्रह के उत्साह मे कोई शिथिलता नहीं आई । 1942 में चीचली मे सत्याग्राही जुलूस पर हुये गोली चालन में मंशाराम और गौरादेवी शहीद हो गये । सैंकडों आंदोलन-कारियों ने दमन चक्र को हंसते हंसते झेला और ब्रिटिश शासन के विरूद्ध त्याग और वलिदान की अनूठी परम्परा कायम की । इस जिले में शिक्षा के लिए योगदान आदरणीय शिक्षक स्व. प.श्री ख्यालीप्रसाद शर्मा जी तथा उनके सुपुत्र शिक्षक श्री मनोहरलाल जी शर्मा गरहा का रहा ।
नरसिंहपुर की स्थति है 22.95°N 79.2°E[3] पर। यहां कीऔसट ऊम्चाई है 347 मीटर (1138 फीट)।
जलवायु के आधार पर यह नर्मदा घाटी भाग में हैं। यह जिला कर्क रेखा के अधिक नजदीक हैं। जिससे इस क्षेत्र में ग्रीष्म ऋतु अत्यधिक गर्म एवं शीत ऋतु साधारण ठण्डी रहती हैं।
(मार्च-जून) अधिकतम 45.4 डिग्रीसें॰ न्यूनतम 9.4 डिग्रीसें॰
(जुलाई-अक्टूबर) अधिकतम 13.5डिग्रीसें॰ न्यूनतम 39 डिग्रीसें.
(नवम्बर-फरवरी) अधिकतम 3.2 डिग्रीसें॰ न्यूनतम 35.4 डिग्रीसें॰
नरसिंहपुर जिला औसत से अधिक वर्षा (125 से॰मी॰- 150 से॰मी॰) वाले क्षेत्र में आता हैं ।
नर्मदा नदी जिले में प्रमुख नदी हैं जो कि लगभग 160 कि॰मी॰ हैं झांसीघाट, मुआर घाट, ब्रम्हकुण्ड, बरमानघाट, लिंगा घाट, पटना-घघरौला घाट, बिलथारी घाट, ककरा घाट, हीरापुर घाट हैं। नर्मदा नदी के बाद शक्कर नदी, शेर नदी, सनेर नदी आदि नदीयाँ हैं। टोनघाट जलप्रपात शेर नदी पर हैं जो कि गोटेगाँव तहसील में स्थति हैं। जो कि जिला मुख्यालय से लगभग 45 किमी हैं। सिंचाई नदीयों, तालाबों एवं नलकूपों के अलावा रानी अवन्ती बाई सागर (बरगी परियोजना) नहर द्धारा जिले में जल उपलब्ध कराया जा रहा हैं। जिलें में 50-60 प्रतिशत शुद्ध सिंचित क्षेत्र हैं।
जिले में छछली एवं मध्यम काली मृदा पायी जाती हैं। मुख्य फसल गन्ना, तुअर दाल, सोयाबीन, चावल, मसूर आदि हैं।जिले का कलमतहार क्षेत्र एशिया का सबसे उपजाऊ क्षेत्र है। गाडरवारा मुख्य रूप से तुवार (अरहार) दालों के लिए प्रसिद्ध है जिला स्तर पर कृषि खेतों में, मिट्टी प्रयोग प्रयोगशालाएं हैं। जहां किसानों को कीटनाशकों, सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले बीज, उर्वरक और सबसे महत्वपूर्ण तकनीकी मार्गदर्शन मिलते हैं।
जिलें का 26.55 प्रतिशत क्षेत्र वन हैं । वनों में सागौन, बाँस, तेंदुपत्ता आदि एवं आम, महुआ, आचार, खैरी आदि से भरा पड़ा हैं। वन्य जीव में बंदर, नील गाय, हिरण, खरगोश और मोर मिलतें हैं।
जिले में प्रमुख खनिज सोप स्टोन, डोलोमाइट, फायर क्ले, लाइम स्टोन हैं। मुरम व नर्मदा नदी की रेत का उपयोग निर्माण कार्य में किया जाता हैं।
गोंड शासक संग्राम शाह ने इस किले को 15वीं शताब्दी में बनवाया था। यह किला गाडरवारा रेलवे स्टेशन से लगभग 19 किमी. दूर है। वर्तमान में प्रशासन की उपेक्षा के कारण किला क्षतिग्रस्त अवस्था में पहुंच गया है। किले के निकट ही नोनिया में 6 विशाल प्रतिमाएं देखी जा सकती हैं।
नरसिंहपुर में 2 नरसिंह मंदिर हैं। नरसिंहपुर के यह प्राचीन मंदिर जबलपुर से लगभग 84 किमी. दूर है। एक श्री देव बूढ़े नरसिंह जी मंदिर वैष्णव साधुओं द्वारा निर्मित है जहाँ भगवान नरसिंह सालिग्राम रूप में स्थित हैं वहीं दूसरे को 18वीं शताब्दी में एक जाट सरदार ने बनवाया था। मंदिर में विष्णु के अवतार भगवान नरसिंह की सपाट प्रतिमा स्थापित है।
नर्मदा नदी के मणि सागर पर बना यह घाट नरसिंहपुर के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में है। जो प्राचीन काल में ब्रह्माण्ड घाट और वर्तमान में अपभ्रंश स्वरूप बरमान घाट हो गया। भगवान ब्रह्मा की यज्ञशाला, दीपा मन्दिर (दीपेश्वर् महादेव), हाथी दरवाजा और वराह मूर्ति यहां के मुख्य आकर्षण हैं। मकर संक्रांति और बसंत पंचमी के अवसर पर यह स्थान संगीत और रंगों से जीवंत हो उठता है।
यह आश्रम परमहंसी गंगा आश्रम के नाम से भी जाना जाता है। नरसिंहपुर का यह लोकप्रिय आध्यात्मिक केन्द्र संत जगतगुरू शंकराचार्य जोतेश और द्वारकाधीश पीठाधेश्वर सरस्वती महाराज से संबंधित है। कहा जाता है कि उन्होंने काफी लंबे समय तक ध्यान लगाया था। सुनहरा राजाराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर यहां का मुख्य आकर्षण है। जोटेश्वर मंदिर, लोधेश्वर मंदिर, हनुमान टेकरी और शिवलिंग यहां के अन्य पूज्यनीय स्थल हैं। बसंत पंचमी के मौके पर यहां सात दिन तक समारोह आयोजित किया जाता है।
झोतेश्वर से तीन किलोमीटर पास एवं गोटेगाव से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।इस पावन गांव मे भगवान जगन्नाथ का प्राचीन मंदिर है।एव भगवान् शिव का भी अति प्राचीन मंदिर है जिसे नदिया पहले पार के नाम से जाना जाता है।
डमरू घाटी नरसिंहपुर का एक पवित्र स्थल है। गाडरवारा रेलवे स्टेशन से यह घाटी ५. किमी. की दूरी पर है। घाटी की मुख्य विशेषता यहा शिव जी की एक विशाल मूर्ती है इसके भीतर एक छोटा शिवलिंग बना हुआ है। हर बर्ष महाशिवरात्रि पर 7 दिन यहाँ मेला लगता है
इस प्राचीन नगर की खुदाई से अनेक ऐतिहासिक इमारतों का पता चला है। इतिहास की किताबों और दूसरी शताब्दी की हस्तलिपियों में इस स्थान का उल्लेख मिलता है। बचई के निकट ही बरहाटा एक अन्य ऐतिहासिक स्थल है।
प्रारंभ में बालीस्थली के नाम से मशहूर यह नरसिंहपुर का एक छोटा-सा गांव है। यह स्थान महाभारत से भी संबंधित माना जाता है। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास का कुछ समय यहां व्यतीत किया था।
स्वामी स्वरूपानंद सरश्वती महाराज ने गोटेगाव का नाम झोतेश्वर धाम के कारण श्रीधाम कर दिया। झोतेश्वर श्रीधाम से 16 k.m. पर है। यह आश्रम परमहंसी गंगा आश्रम के नाम से भी जाना जाता है। नरसिंहपुर का यह लोकप्रिय आध्यात्मिक केन्द्र संत जगतगुरू शंकराचार्य जोतेश और द्वारकाधीश पीठाधेश्वर सरस्वती महाराज से संबंधित है। सुनहरा राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर यहां का मुख्य आकर्षण है। बसंत पंचमी के मौके पर यहां सात दिन तक समारोह आयोजित किया जाता है।
गोटेगाँव तहसील में जबलपुर रोड पर कंजई गाँव से 3 K.M. अंदर पीपरपानी गाँव है वास्तव मे ये पीपरपानी की माता के नाम पर रखा गया है। यहां पर पीपरपानी माता की सर्वकामना सिद्धि मढिया है जहां नवरात्रि के अवसर पर माँ के दर्शन और मनोकामनाये माँगी जाती हैं। माता के परम भक्त स्व.जमना प्रसाद कुशवाहा जी के स्वर्गवास होने के बाद उनके चेले श्री परशराम कुशवाहा जी ने माता की भक्ति की और जन समूह की जड़ी-बूटियो और माता की कृपा से पीड़ितों और जानवरों का इलाज किया करते हैं। इनके अलावा यहां पर बघेण नदी कालांतर में बाघन नदी के नाम से जानी जाती थी इसके किनारे पर दो बड़े टीले है जिसे 1. पीली कगार 2. हथियागढ की कगार कहा जाता है। कहते हैं कि पीली कगार पर भूतो का डेरा है, गाँव वाले भूतो से रूबरू होने का दावा किया करते हैं, पर इसका कोई साक्ष्य नहीं है। और हथियागढ की कगार पर कहा जाता है; कि, बहुत पहले हाथियों का झुंड इस से गिर कर मर गया था। जिसके कारण इसका नाम हथियागढ कहा जाता है। भिरभी दौनो कगार बेहद डरावनी और रोचक है।
जबलपुर विमानक्षेत्र यहां का नजदीकी एयरपोर्ट जो नरसिंहपुर से करीब 84 किमी. दूर है। देश के अनेक शहर इस एयरपोर्ट से वायुमार्ग द्वारा जुड़े हैं।
नरसिंहपुर रेलवे स्टेशन मुंबई-हावडा रूट का प्रमुख स्टेशन है। इस रूट पर चलने वाली ट्रेनें नरसिंहपुर को देश के अन्य शहरों से जोड़ती हैं।जिले में रेल्वे ट्रेक की लम्बाई लगभग 105 किमी हैं। कुल स्टेशनों की संख्या 11 हैं जिसमें 3 मुख्य स्टेशन हैं जहाँ सुपर फास्ट ट्रेनों के स्टॉपेज हैं 5 ऐसे स्टेशन हैं जहाँ सिर्फ पैसेन्जर ट्रेनों के स्टॉपेज हैं और ऐसे 3 से स्टेशन हैं जहाँ सिर्फ एक्सप्रेस वपैसेन्जर ट्रेनों के स्टॉपेज है।
क्र | स्टेशन नाम | स्टेशन कोड | दूरी (किमी) |
---|---|---|---|
1 | विक्रमपुर | BMR | 0 |
2 | श्रीधाम | SRID | 12 |
3 | करकबेल | KKB | 28 |
4 | बेलखेड़ा | BELD | 32 |
5 | घाटपिंडरई | GPC | 37 |
6 | नरसिंहपुर | NU | 43 |
7 | करेली | KY | 59 |
8 | करपगाँव | KFY | 68 |
9 | बोहानी | BNE | 75 |
10 | गाडरवारा | GAR | 87 |
11 | सालीचौका रोड | SCKR | 101 |
नरसिंहपुर सड़क मार्ग द्वारा जबलपुर, छिंडवाडा, सिवनी, होशंगाबाद, देवरी, सागर आदि शहरों से जुड़ा हुआ है। जिलें से उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर NH-26 के माध्यम से बरमान, करेली नरसिंहपुर, मुगवानी से गुजरता हैं। बरमान के पास राजमार्ग चौराहा हैं जहाँ से NH 44 तथा NH 45 गुजरते हैं। राज्य के अनेक शहरों से यहां के लिए बसें चलती हैं।
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