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धारामापी या गैल्वेनोमीटर (galvanometer) एक प्रकार का अमीटर ही है। यह किसी परिपथ में धारा की उपस्थिति का पता करने के लिये प्रयोग किया जाता है। प्रायः इसपर एम्पीयर, वोल्ट या ओम के निशान नहीं लगाये गये रहते हैं।
धारामापी कई प्रकार के हो सकते हैं-
स्पर्शज्या धारामापी (Tangent galvanometer) सबसे सरल और उपयोगी चलचुंबक धारामापी (moving magnet galvanometer) है। इसमें किसी अचुंबकीय पदार्थ के ऊर्ध्वाधर ढाँचे पर विद्युतरोधी ताँबे के तार की एक वृत्ताकार कुंडली लगी रहती है। कुंडली में प्राय: ५५२ चक्कर होते हैं, जिसमें २, ५० और ५०० चक्करों के बाद संयोजक पेंच लगे रहते हैं। इनकी सहायता से आवश्यतानुसार कम या अधिक चक्करों से काम ले सकते हैं। वृत्ताकार कुंडली को ऊर्ध्वाधर अक्ष के चारों ओर घुमाया जा सकता है। कुंडली के केंद्र पर एक चुंबकीय सुई ऊर्ध्वाधर कीलक (pivot) पर सधी रहती है और सुई के लंबरूप एक ऐल्यूमिनियम का लंबा संकेतक लगा रहता है, जो सूई के साथ साथ क्षैतिज वृत्ताकार स्केल पर घूमता है और चुंबकीय सूई का विक्षेप बतलाता है। यह स्केल चार चतुर्थांशों में विभाजित रहता है और प्रत्येक चतुर्थांश में ० डिग्री से ९० डिग्री तक के चिह्न होते हैं। जब चुंबकीय सूई चुंबकीय याम्योत्तर (meridian) में होती है, तो संकेतक शून्य अंश पर रहता है।
धारा नापने के पूर्व धारामापी के आधार को क्षैतिज कर लेते हैं और कुंडली के समतल को घुमाकर चुंबकीय याम्योत्तर में ले आते हैं। इस दशा में चुंबकीय सुई के बक्स को कुंडली के केंद्र पर क्षैजित स्थिति में रखते हैं और यह भी देख लेते हैं कि संकेतक के दोनों सिरे ० डिग्री - ० डिग्री पर स्थित है अब धारामापी के दो संयोजक पेंचों को उस परिपथ में संबद्ध कर देते हैं जिसमें धारा का प्रवाह होता है। ऊर्ध्वाधर कुंडली में धारा के प्रवाहित होते ही, एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है, जो पार्थिव क्षैतिज चुंबकीय क्षेत्र से समकोण बनाता है। उन दोनों चुंबकीय क्षेत्रों के कारण चुंबकीय सूई पर दो विपरीत दिशा में घुमानेवाले बलयुग्म कार्य करते हैं। सूई विक्षेपित होकर ऐसी दशा में रुक जाती है जहाँ दोनों बलयुग्मों का घूर्ण बराबर होता है। यदि सूई का विक्षेप Q हो, तो धारा का मान निम्न सूत्र से ज्ञात होता है :
अर्थात् धारामापी में बहनेवाली धारा विक्षेप कोण के स्पर्शज्या के समानुपाती होती है। नियतांक (K) धारामापी का परिवर्तन गुणक कहलाता है। परिवर्तन गुणक ऐंपियर में नापा जाती है। यह उस विद्युत्धारा के बराबर होता है, जो धारामापी की सूई में ४५ डिग्री का विक्षेप उत्पन्न कर सकती है। इस प्रकार का सरल स्पर्शज्या धारामापी यथेष्ट रूप से सूक्ष्मग्राही और यथार्थ नहीं होता। विशेष रूप से धारा के कारण चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता चुंबकीय सुई के दोनों ध्रुवों पर एक सी नहीं होती। इस कारण धारामान में त्रुटि हो जाती है, क्योंकि सूत्र इसी पर निर्भर है कि दोनों ध्रुवों पर चुंबकीय क्षेत्र एक सा हो। इसलिए इसी सिद्धांत पर आधारित एक दूसरा धारामापी बना, जिसे हेल्महोल्ट्स गैलवेनोमीटर (Helmholtz galvanometer) कहते हैं। इस धारामापी में यह त्रुटि नहीं होती और यह सरल स्पर्शज्या धारामापी से अधिक सूक्ष्मग्राही होता है। इसमें अचुंबकीय पदार्थ के दो ऊर्ध्वाधर ढाँचों पर वृत्ताकार कुंडलियाँ होती हैं। उनके केंद्रों के बीच की दूरी उनके अर्धव्यास के बराबर होती है। चुंबकीय सूई का बक्स दोनों कुंडिलियों के क्षैतिज अक्ष पर ठीक बीच में रखा जाता है। दोनों कुंडलियों के तार इस प्रकार जोड़ दिए जाते हैं कि जब उनमें धारा प्रवाहित हो तब दोनों से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र एक ही दिशा में हों। ऐसा होने से चुंबकीय सूई के पास धरा से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र अधिक तीव्र हो जाता है और यह भी सिद्ध किया जा सकता है कि इस क्षेत्र की तीव्रता सूई के दोनों सिरों पर एक सी रहती है। इस परिवर्तन के फलस्वरूप यह धारामापी अधिक सूक्ष्मग्राही और यथार्थ हो जाता है। धारा नापने के पहले सूई के बक्स के समतल को क्षैतिज करना और ऊर्ध्वाधर कुंडलियों को चुंबकीय याम्योत्तर में करना आवश्यक है। इस समंजन के बाद जब धारामापी की कुंडलियों में धारा प्रवाहित की जाती है और चुंबकीय सूई में कोण (Q) का विक्षेप होता है, तब धारा का मान निम्न सूत्र से ज्ञात होता है :
G को हेल्महोल्ट्स धारामापी का पविर्तन गुणक कहते हैं। यह धारामापी भी यथेष्ट रूप से सूक्ष्मग्राही नहीं होता। अधिक सूक्ष्मग्राही धारामापी बनाने के लिए एक नया सिद्धांत प्रयोग में लाया जाता है। वह यह है कि यदि पार्थिव चुंबकीय क्षेत्र का प्रभाव चुंबकीय सूई पर कम कर दिया जाए, तो किसी भी धारा के कारण चुंबकीय सूई में पहले से अधिक विक्षेप होगा, अर्थात् यंत्र अधिक सूक्ष्मग्राही हो जाएगा। इसको अस्थैतिक युग्म (astatic pair) का सिद्धांत कहते हैं।
यदि दो लगभग बराबर चुंबकीय घूर्ण वाले चुंबकों को एक दृढ़ छड़ से ऐसा जोड़ा जाए कि वे एक दूसरे के समांतर हों और उनके विपरीत ध्रुव पास पास हों, तो उन्हें अस्थैतिक युग्म कहते हैं। इस युग्म में दोनों चुंबकों के विपरीत ध्रुव पास पास होते हैं, इस कारण पार्थिव चुंबकीय क्षेत्र का प्रभाव इस युग्म पर बहुत कम पड़ता है। तार की कुंडली या कुंडलियाँ एक चुंबक या दोनों चुंबक के चारों ओर इस प्रकार लपेटी जाती हैं कि उनमें धारा बहने पर चुंबकों पर एक ही दिशा में बलयुग्म लगे। इस दशा में यदि कुंडलियों में न्यून धारा भी प्रवहित हा, ता भ चुंबकीय युग्म में अधिक विक्षेप होता है। इस प्रकार के धारामापी अति सूक्ष्मग्राही होते हैं। यदि इस चुंबकीय युग्म को एक ऐंठनरहित लटकन द्वारा लटका दिया जाए और इस लटकन में एक छोटा सा दर्पण लगा दिया जाए, तो प्रकाश किरण द्वारा अति सक्ष्म विक्षेप नापा जा सकता है। प्रकाश की किरणें लैंप से चलकर धारामापी के दर्पण से परावर्तित होकर एक लेंस द्वारा स्केल पर फोकस में आती हैं। जब धारा प्रवाह के कारण चुंबकीय युग्म में विक्षेप होता है और दर्पण कोण Q द्वारा घूमता है, तो परवर्तित प्रकाश किरणे कोण 2Q में घूमती हैं और स्केल पर प्रकाशबिंदु में स्थानांतरण हो जाता है। इस विधि से सूई का अति सूक्ष्म विक्षेप नापा जा सकता है और इसके फलस्वरूप इस धारामापी से अति सूक्ष्म धारा नापी जा सकती है। अस्थैतिक चुंबकीय युग्म का प्रयोग कई प्रकार से विभिन्न नामों के धारामापियों में किया गया है। केलविन धारामापी (Kelvin's galvanometer), पाशेन (Paschen) धारामापी और ब्रोका (Broca) धारामापी इनके कुछ उदाहरण हैं। इन धारामापियों से १०-१२ ऐंपियर तक की धारा नापी जा सकती है। जलचुंबक धारामापी, विशेष कर अस्थैतिक धारामापी, अत्यं सूक्ष्मग्राही होते हैं, परंतु इनका प्रयोग असुविधाजनक होता है। ये अस्थायी भी होते हैं। यही कारण है कि वे बहुत कम प्रयुक्त होते हैं। अधिकतर चलकुंडल धारामापी (moving coil galvanometer) का ही उपयोग होता है, क्योंकि ये यथेष्ट सूक्ष्मग्राही होने के अतिरिक्त, स्थायी, सरल तथा सुविधाजनक होते हैं।
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