घास एक एकबीजपत्री हरा पौधा है। इसके प्रत्येक गाँठ से रेखीय पत्तियाँ निकलती हुई दिखाई देती हैं। साधारणतः यह कमजोर, शाखायुक्त, रेंगनेवाला पौधा है। बाँस, मक्का तथा धान के पौधे भी घास ही हैं।
परिचय
घास शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है। साधारणतया घासों में वे सब वनस्पतियाँ सम्मिलित की जाती हैं जो गाय, भैंस, भेड़, बकरी आदि पालतू पशुओं के चारे के रूप में काम आती हैं, परन्तु आधुनिक युग में वानस्पतिक वर्गीकरण के अनुसार केवल घास कुल (ग्रेमिनी कुल, Gramineae family) के पौधे ही इसके अंतर्गत माने जाते हैं। लगभग दो लाख फूलने और फलने वाले पौधों में से पाँच हजार इस कुल के अंतर्गत आते हैं। चरागाह एवं खेल के मैदान ऐसे स्थानों में होने वाले पौधे, जैसे हाथी घास (नेपियर ग्रास, Napier grass), सूडान घास, दूब आदि को तो घास कहते ही हैं हमारे भोजन के अधिकांश अनाज, जैसे गेहूँ, धान, मक्का, ज्वार, बाजरा आदि भी घास कुल में ही परिगणित हैं। इनके अतिरिक्त ईख, बाँस आदि भी इसी कुल में सम्मिलित हैं।
विशेषताएँ
घासों के आकार एवं ऊँचाई में भिन्नता होती है। कुछ पौधे केवल कुछ इंच लंबे हाते हैं, जैसे खेल के मैदान एवं लान (lawn) की घासें; कुछ मध्यम वर्ग के होते हैं, जैसे गेहूँ, मक्का आदि तथा कुछ बहुत ही ऊँचे होते हैं, जैसे ईख, बाँस आदि। कुछ प्रकार के पौधों में फूल अलग-अलग तथा कुछ में गुच्छों में होते हैं। अनाजवाले पौधे अधिकतर वार्षिक होते है, किंतु बाँस, काँस आदि ३०-४० वर्ष, या इससे भी अधिक, जीवित रहते हैं। कुछ घासें पानी में उगती हैं या प्राय: नदी,तालाब और समुद्र के किनारे पाई जाती हैं। इसके विपरीत कुछ प्रकार की घासें केवल कम वर्षावाले स्थानों तथा मरुस्थलों में ही जीवित रहती हैं।
घासों की जड़ें प्राय: रेशेदार होती हैं। तने ठोस तथा संधियुक्त होते हैं। संधियों के बीच के भागों को पोर या पोरी (internodes) कहते हैं। पत्तियाँ नुकीली और तने के जोड़ों पर एक के बाद दूसरी ओर मुड़ी रहती हैं। पत्तियाँ सदैव समांतरमुखी (parallel viewed) होती हैं। और दो स्पष्ट भागों, मुतान (sheath) एवं फलक (blade), में विभाजित होती हैं। पत्तियाँ तने के जोड़ से निकलती हैं और मुतान पोरी को घेरे रहती हैं। मुतान में फलक के मूल के कुछ ऊपर से विशेष प्रकार के अस्तर (linings) निकलते हैं। इन्हें छोटी जीभ (Little tongue) कहते हैं। कुछ घासों की पत्तियों के नीचे फलक के मूल पर एक विशेष प्रकार के वृद्धि उपांग (growth appendages) होते हैं, जिन्हें कर्णाभ (Auricles) कहते हैं। इस प्रकार घास की पत्तियों की बनावट विशेष प्रकार की होती है तथा पत्तियों द्वारा ही इस कुल के पौधों को पहचाना जाता है। कुछ घासों में नीचे की ओर की कुछ पोरियाँ कुछ अधिक लंबी और उपवर्तुल (Subglobular) होकर पौधे के लिये भोजन तत्व इकट्ठा करने का स्थान बना लेती हैं। इस पकार के पौधे कंदीय (bulbus) कहलाते हैं।
जिस प्रकार पत्ती की बनावट से ग्रैमिनी कुल के पौधे पहचाने जाते हैं उसी प्रकार फूलों और बीजों द्वारा जातियाँ पहचानी जा सकती हैं। फूलों के गुच्छे विभिन्न प्रकार के होते हैं। फूल अकेले या समूह में फूल देनेवाली अनुशूकियों (spikelets) पर लगे होते हैं।
पुंकेसर (stamens) और स्त्रीकेसर (pistils) प्राय: साथ-साथ होते हैं, किंतु मक्का जैसे पौधों में अलग-अलग भी होते हैं। फूल के अतिरिक्त अनुशूकी में दो या अधिक निपत्र (bracts) होते हैं, जिन्हे तुषनिपत्र ( glumes) कहते हैं। इनमें फूलों के नीचेवाले तुषनिपत्र को बाह्य पुष्पकवच (लेमा, Lemmas) और उनके ऊपरवालों को अंत: पुष्पकवच (पेलिया, palea) कहते हैं। कभी कभी बाह्य पुष्पकवच में नुकीली तथा काँटे की तरह वृद्धि होती है, जिसे सीकुर (Awn) कहते हैं, जैसे गेहूँ, जौ इत्यादि में। फूलों में आकर्षित करनेवाला कोई रंग या सुंगध नहीं होती। परागण प्राय: हवा द्वारा होता है। कुछ फूलों में स्वयं परागण (self pollination) भी होता है। कैलिक्स (calyx) और पँखड़ियों (petals) के स्थान पर दो या तीन पतले पारभासक शल्क होते हैं, जिन्हें परिपुष्पक (Lodicules) कहते हैं। जब फूलों के खिलने का समय आता है तब परिपुष्पक एक प्रकर के रस से भर जाते हैं और बाह्मपुष्पकवच तथा अंत:पुष्पकवच पर दबाव पड़ता है, जिससे फूल खिल जाते हैं। इस अवस्था में वायु द्वारा परागण होता है।
सभी पौधों का फल एक बीज वाला होता है, जिसमें बीजावरण (seed coat), या बीजकवच (Testa), फलकवच (fruit coat) फलावरण (pericarp) से चिपका रहता है। घासों के बीज बहुत छोटे होते हैं तथा बहुत अधिक मात्रा में पैदा होते हैं। ये बहुत दिनों तक जीवित रह सकते हैं और विभिन्न प्रकार की जलवायु और मिट्टी में उगाए जा सते हैं। बीजों का विकिरण (dispersal) उनकी बनवाट के अनुसार विभिन्न प्रकार से होता है, परंतु मुख्य रूप से हवा, पानी मनुष्यों और पशुओं द्वारा होता है।
भारत मे पाई जाने वाली कास घास के पुष्प श्वेत होते हैं।
मिट्टी और घास
मिट्टी और उसपर उगनेवाली वनस्पति में परस्पर बहुत घनिष्ठ संबंध होता है। संसार की कुछ प्रकार की मिट्टियाँ घासों के प्रकार और उपज से विशेष रूप से संबंधित हैं। जिन प्रदेशों में बड़ी-बड़ी घासें उगती हैं, वहाँ की मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है। बहुत अधिक घास उपजाने वाले स्थलों (grass lands) को प्राय: ब्रेड बास्केट्स (Bread Baskets) कहा जाता है। उदाहरण के लिये संयुक्त राज्य अमरीका, तथा कनाडा के प्रेरिज (prairies), अर्जेंटाइना के पंपाज (pampas), आस्ट्रेलिया की ग्रेन बेल्ट (Grain belt) और यूरेशिया में स्टेप्स के बहुत से भाग, विशेषकर यूक्रेन प्रदेश में स्थित भाग आजकल संसार के मुख्य मुख्य ब्रेड बास्केट्स हैं।
महत्व
कुछ प्रकार की घासें, जिनमें प्रसारण (propagation), विरोहक (stolon) तथा प्रकंद (rhizone) से होता है, कम वर्षा वाले प्रदेशों में बहुत उगती हैं। इनमें दूब प्रधान घास है। इसे धर्मग्रंथों में राष्ट्ररक्षक (Preserver of nations) एवं 'भारत की ढाल' (Shield of India) कहा गया है। मिट्टी के भीतर इन घासों की जड़ों का घना जाल रहता है, जिससे वर्षाजल से मिट्टी का कटाव या बहाव कम होता है। भूमि के ऊपर घनी पत्तियाँ होने से वायु द्वारा मिट्टी का कटाव नहीं होता। हवा और पानी से कटाव रोककर भूमिसंरक्षण करने में घासें बड़ी सहायक होती हैं।
इसके अतिरिक्त घासों की जड़ों में आश्रय पाने वाले उपयोगी जीवाणु वहाँ से नाइट्रोजन संचित कर मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं तथा उनकी जड़ों द्वारा मिट्टी का विन्यास (texture) अत्यधिक उत्तम हो जाता है। इस प्रकार घासों द्वारा पथरीली या कम उपजाऊ भूमि भी अधिक उपजाऊ बनाई जा सकती है।
इसका महत्व गाय,भैंस तथा बकरी आदि के चारे के उपयोग के आता है।
इन्हें भी देखें
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