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दीपक शर्मा (जन्म ३० नवंबर १९४६) हिन्दी की जानी मानी कथाकार हैं। उन्होंने चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय से १९६८ में अँग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। उनकी पहली कहानी पंजाबी में अचतन चेती परौहना शीर्षक से १९७० में पंजाबी मासिक प्रीत-लड़ी में दीपक भुल्लर नाम से प्रकाशित हुई थी। हिंदी में पहली कहानी कोलंबस अलविदा धर्मयुग के दिसंबर १९७९ अंक में उनके विवाहित नाम दीपक शर्मा से प्रकाशित हुई।
दीपक शर्मा | |
---|---|
जन्म |
30 नवम्बर 1946, 1946 |
नागरिकता | भारत, ब्रिटिश राज, भारतीय अधिराज्य |
शिक्षा | पंजाब विश्वविद्यालय |
पेशा | लेखक |
दीपक शर्मा के पिता इंजीनियर आल्हासिंह भुल्लर पाकिस्तान के लाहौर शहर के निवासी थे तथा माँ मायादेवी धर्मपरायण गृहणी थीं।[1] १९४७ में विभाजन के समय विस्थापित होकर वे पंजाब के अमृतसर शहर में आ बसे। दीपक शर्मा की प्रारंभिक शिक्षा वहीं एलेक्जेंड्रा हाई स्कूल में हुई। १९६६ में गवर्नमेंट कालेज फार वीमेन, अमृतसर से ग्रेजुएट होने के बाद उन्होंने चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य से एम.ए. किया और कुछ वर्ष तक पंजाब शिक्षा सेवा के अंतर्गत अमृतसर के एक सरकारी कालेज में अध्यापन किया। १९७२ में उनका विवाह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी श्री प्रवीण चंद्र शर्मा से हुआ। १९७८ में उन्होंने लखनऊ क्रिश्चियन कॉलेज के स्नातकोत्तर अंग्रजी विभाग में प्राध्यापक के रूप मेे कार्य प्रारंभ किया और वहीं से अध्यक्षा एवं रीडर पद से सेवा निवृत्त हुईं। संप्रति वे अपने पति के साथ लखनऊ में रहती हैं। पुत्र शाश्वत मुंबई में पत्नी शिल्पा और पुत्री अनुषा के साथ रहते हैं।
२०२१ तक उनके २१ कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं-
हिंसाभास (१९९३) , दुर्गभेद (१९९४), परखकाल (१९९४), बवंडर(१९९५), रण-मार्ग (१९९६), उत्तरजीवी (१९९७) आपदधर्म (२००१), आतिशी शीशा (२०००), चाबुक (२००३), रथक्षोभ (२००६), दूसरे दौर में (२००८), घोड़ा एक पैर (२००९), लचीले फीते (२०१०), तालघर (२०११), अनचीता (२०१२), ऊँची बोली (२०१५), बाँकी (२०१७), स्पर्श रेखाएँ (२०१७), उपछाया (२०१९), दम-बदम (२०२१), पिछली घास (२०२१)
वर्ष २०२१ में उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण सम्मान प्रदान किया गया।
समाज के उपेक्षित वर्ग पर तीखी नज़र रखने वाली दीपक शर्मा नपे-तुले शब्दों में इतना व्यापक परिवेश, इतनी व्यापक संवेदनाएँ और ऐसी चुनी हुई शब्द संरचना प्रस्तुत करती हैं जो समसामयिक लेखकों में उनकी अलग पहचान बनाती है।[2] उनके पात्र अशांत, पीड़ित, समाज द्वारा ठुकराए हुए लोग हैं। उनकी कहानियों का कटु यथार्थ चौंकाता है, प्रश्न छोड़ता है और सोचने के लिए विवश करता है। पर उनके कथन में सादगी है। कहीं कहीं वायवीय शब्दजाल आते हैं पर वे उस परिस्थिति के परिणाम हैं जहाँ पात्र स्वयं उस उस वायवीयता में उलझा होता है।[3] उनकी कहानियों में विविध भंगिमाएँ हैं जो संवेदनात्मक गहराई के साथ आकार लेती हैं। रिश्तों के आपसी तालमेल और तनाव दोनो को वे एक सी सहजता के साथ चित्रित करती हैं। वे विवादात्मक मुद्दों को अतीव शालीनता से निभाती हैं, दोनो पक्षों को ईमानदारी के साथ सामने रखती हैं और अपनी राय दिये बिना सिरे को पाठक के निर्णय के लिए खुला छोड़ देती हैं। निर्मल वर्मा ने उनके विषय में एक स्थान पर लिखा है कि उनकी कहानियाँ विस्मित करती है। बहुत सारे सामाजिक पक्ष जो हिंदी लेखन में अछूते हैं उन्हें दीपक शर्मा लगातार अपनी कहानियों का विषय बनाती रही हैं।[4]
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