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दलसिंहसराय समस्तीपुर बिहार का एक प्रखण्ड।
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दलसिंहसराय शहर बिहार राज्य समस्तीपुर जिले का एक अधिसूचित क्षेत्र है। नामकरण-
दलसिंहसराय अघोङी के 9 वें गुरु दलपत सिंह नाम के नाम पर रखा गया है। इससे पहले कि यह अघोङिया घाट बुलाया गया था।
पिनकोड-848114
इतिहास-
यह शहर ब्रिटिश शासन के दौरान नील की खेती का केंद्र रहा है। 1902 में एक इंडिगो अनुसंधान संस्थान पूसा भी इस शहर के करीब खोला गया था। ब्रिटिश शासनकाल में यहाँ एक सिगरेट कारखाना का भी निर्माण किया गया जो आसपास के इलाकों में उच्च मात्रा में तंबाकू की खेती के लिए प्रसिध्द था।
जनसांख्यिकी-
2001 के जनगणना के अनुसार, कुल आबादी 50,000 से ऊपर है। पुरुषों और महिलाओं की जनसंख्या 47% और 53% है। औसत साक्षरता दर 59.5% है जो राष्ट्रीय औसत की तुलना में अधिक है। पुरुष साक्षरता दर 69% है और महिला साक्षरता दर 51% है।
तीर्थ स्थल विद्यापतिधाम-
दलसिंहसराय की धरती इतनी पवित्र है।जहां कवि विद्यापति भगवान शिव के चाकरी करते अंतर्ध्यान हो गए थे।यह विद्यापतिधाम आज पूरे विश्व में बिहार के देवगढ़ के रूप में चर्चित है।जो पर्यटकों के बीच एक तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है। यह दलसिंहसराय के नजदीक, गंगा नदी के तट पर स्थित है। विद्यापति नगर का नाम मैथिली भाषा के प्रसिद्ध कवि विद्यापति के नाम पर रखा गया है। एक विश्वास के अनुसार, भगवान शिव की खोज में इस कवि ने इस स्थान को खोज निकाला था।
पांड़ बनाम पाण्डवगढ़-
दलसिंहसराय रेलवे स्टेशन से प्रायः दस कि0मी0 दक्षिण - पश्चिम में अवस्थित पांड़ बनाम पाण्डवगढ़ एक पौराणिक एवं ऐतिहासिक पुरास्थल है। आज से प्रायः पचीस वर्ष पहले यहाॅ से भिक्षुणी की मृण्मूर्ति पुराने पात्रखण्ड आदि मिले थे। यहां के टीलों में प्राचीन कुषाण कालीन ईंटों (2'x1'x3') की दीवार अवशिष्ट है। यह स्थल चारो तरफ से चैरों से घिरा है। काशी प्र0 जायसवाल शोध संस्थान, पटना की ओर से कई वर्षों तक पुरातात्विक उत्खनन से प्राप्त पुरावशेष मुख्यतः कुषाणकालीन हैं। इन पुरावशेषों में ’पुलक’ नामक व्यापारी के मृण्मोहर से यह कोई राजकीय गढ़ न होकर यह व्यापारिक केन्द्र ही अधिक प्रतीत होता है, यद्यपि जनश्रुति इसे पाण्डवों के अज्ञातवास और लाक्षागृह प्रसंग से जोड़ती है। उत्खनन प्रतिवेदन की तैयारी शोध संस्थान में चल रही है। उत्खनन से नवपाषाणकाल से गुप्तकाल तक छह सांस्कृतिक चरणों में विकसित होने के साक्ष्य मिले है। दलसिंहसराय का नाम बिहार की समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास में जोड़ा गया।यहां 6,000 साल पुराने मानव सभ्यता के अवशेष का पता पांडव नगर (पांङ) में लगाया गया था।
काशी शोध संसाधन के निदेशक प्रो. विजय कुमार चौधरी के निर्देश पर यहां की खुदाई हुई थी। यहां कम से कम 5500 से 6000 वर्ष पुराना इतिहास छुपा है। इसमें सबसे अधिक कुषाण काल की धरोहरें हैं। सबसे जाग्रत सभ्यता का अवशेष उसी काल का मिला है। कुषाण सभ्यता के तीन हजार वर्ष पहले न्यूलीथिक एज के अवशेष मिले हैं। इसकी खुदाई का बीजा रोपण 1991-92 में प्रसिद्ध प्रो. स्व. रामशरण शर्मा जी के निर्देश पर काशी प्रसाद जायसवाल संस्था की देख-रेख में किया गया था। पांडव स्थान से संग्रहित अवशेषों को देखने के बाद ही प्रो. शर्मा ने इस स्थल पर प्राचीन सभ्यता विकसित होने की बात कही थी। ऐतिहासिक रूप से तथ्यों की खोज हो चुकी है। अब मात्र इसे विकसित करने की आवश्यकता है।
यहां मिले थे ये अवशेष
उत्खनन से प्राप्त वस्तुओं में एनबीपी, तांबे की वंशी, लोहे के सिक्के एवं पत्थर के कुदाल, सेल खड़ी के मनके, हाथी के दांत का बना पासा, ईंट की दीवार, मानव ढांचा, हड्डी के वाणग्र, गोमेद के झुमके, मोती कांड़ी एवं मनवा शेष आदि प्रमुख हैं।यहाँ की पुरासामग्रियाँ, कुमार संग्रहालय, हसनपुर, बेगुसराय एवं पटना में संरक्षित है।
माँ वैष्णवी मनोकामना मंदिर-
शहर के सोनापट्टी स्थित माँ वैष्णवी मनोकामना मंदिर जहाँ मां की साल भर पूजा अर्चना की जाती है। माना जाता है कि माता के दर्शन से मन की सारी मन्नत पूरी होती है।
7 मंडी- दलसिहसराय में उतर बिहार का एक प्रमुख मंडी है ,यहाँ से भागलपुर, बंगाल,खगड़िया आदि जगहों पर सब्जी भेजी जाती है ।
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