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कन्नड़ कवि विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
दत्तात्रेय रामचंद्र बेन्द्रे (31 जनवरी 1896 – 26 अक्टूबर 1981) कन्नड साहित्यकार थे। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह अरलु–मरलु के लिये उन्हें सन् १९५८ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[1] इन्हें १९७३ में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
दत्तात्रेय रामचन्द्र बेन्द्रे | |
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राष्ट्रीयता | भारतीय |
साहित्यकृति | साहित्य का प्रकार | प्रकाशनवर्ष (इ.स.) | भाषा |
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अरळू मरळू | काव्यसंग्रह | इ.स. १९५७ | कन्नड |
उय्याले | काव्यसंग्रह | इ.स. १९३८ | कन्नड |
कृष्णकुमारी | काव्यसंग्रह | इ.स. १९२२ | कन्नड |
गंगावतरण | काव्यसंग्रह | इ.स. १९५१ | कन्नड |
गरी | काव्यसंग्रह | इ.स. १९३२ | कन्नड |
चैत्यालय | काव्यसंग्रह | इ.स. १९५७ | कन्नड |
जीवलहरी | काव्यसंग्रह | इ.स. १९५७ | कन्नड |
नादलीले | काव्यसंग्रह | इ.स. १९४० | कन्नड |
पूर्ती मत्तु कामकस्तुरी | काव्यसंग्रह | कन्नड | |
मेघदूत | काव्यसंग्रह | इ.स. १९४३ | कन्नड |
सखीगीते | काव्यसंग्रह | कन्नड | |
सूर्यपान | काव्यसंग्रह | इ.स. १९५६ | कन्नड |
हाडू पाडू | काव्यसंग्रह | इ.स. १९४६ | कन्नड |
हृदयसमुद्र | काव्यसंग्रह | इ.स. १९५६ | कन्नड |
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