त्रिशूल (मिसाइल) कम दूरी का जमीन से हवा में मार करने वाला यह समन्वित मार्गदर्शित मिसाइल विकास कार्यक्रम में (DRDO) रक्षा अनुसंधान विकास संगठन ओर(BDL) भारत डायनामिक्स लिमिटेड द्वारा विकसित किया गया था। इसका उपयोग कम उड़ान पर हमला करने वाली मिसाइलों के खिलाफ जहाज से एक विरोधी समुद्र तलवार के रूप में भी किया जा सकता है।
त्रिशूल | |
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प्रकार | गतिशील सतह से हवा में मिसाइल प्रणाली |
उत्पत्ति का मूल स्थान | भारत |
सेवा इतिहास | |
सेवा में | वर्तमान |
द्वारा प्रयोग किया | भारतीय थल सेना |
उत्पादन इतिहास | |
डिज़ाइनर | डीआरडीओ ओर भारत डायनामिक्स लिमिटेड |
निर्माता | आयुध कारखाना बोर्ड भारत डायनेमिक्स |
उत्पादन तिथि | वर्तमान |
निर्दिष्टीकरण | |
वजन | 130 कि॰ग्राम (290 पौंड) |
लंबाई | 3.1 मी॰ (120 इंच) |
वारहेड | उच्च विस्फोटक, पूर्व खंडित बम |
विस्फोट तंत्र | आरएफ निकटता फ्यूज |
फेंकने योग्य | अभिन्न रॉकेट मोटर/रैमजेट बूस्टर और स्थिर मोटर |
परिचालन सीमा | 9 कि॰मी॰ (5.6 मील)[1] |
गति | मैक 2[1] |
मार्गदर्शन प्रणाली | एकल चरण ठोस ईंधन |
भारत के पूर्वी तट पर भुवनेश्वर से 180 किलोमीटर दूर स्थित चांदीपुर अंतरिम परीक्षण रेंज से इस मिसाइल का परीक्षण एक मोबाइल लॉंचर के ज़रिए किया गया। मोबाइल मिसाइल लॉंचर से चलाई गई इस मिसाइल से एक माइक्रो-लाइट विमान को निशाना बनाया गया। महत्वपूर्ण ये है कि इस मिसाइल का इस्तेमाल थल सेना, नौसेना और वायुसेना, सभी कर सकते हैं।
इतिहास
त्रिशूल मिसाइल का इतिहास 1983 से शुरू होता है 1983 में त्रिशूल मिसाइल परियोजना को चालू किया गया था। यह परियोजना 1992 तक पूरी होनी थी और मिसाइल ब्रह्मपुत्र क्षेत्र की ओर विदेशी खतरे से निपटने के लिए इसे स्थापित करने की योजना थी। 1985 में त्रिशूल मिसाइल को श्रीहरिकोटा सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अपना पहली उड़ान भरी ओर कुछ असफल भरी उड़ान के बाद इसमे लगातार सुधार होते गए। 1989 में अपनी पहली पूर्ण सीमा निर्देशित उड़ान भरी जो सफल हुई। 1992 में मिसाइल को सफलतापूर्वक एक लक्ष्य के खिलाफ परीक्षण किया गया और ओर सफलता मिली। 1997 में समुद्र की ओर से आने वाले विदेशी मिसाइल के खतरे से बचने के लिए रडार सिस्टम लगाया गया।
1997 में भारतीय नौसेना ने ब्रह्मपुत्र वर्ग क्षेत्र रक्षा के लिए त्रिशूल मिसाइल के विकास में विलंब होने में अपनी नाराजगी व्यक्त की। 1998 तक मिसाइल 24 उड़ान परीक्षणों से गुजर चुका था 1998 में त्रिशूल मिसाइल प्रक्षेपण प्रणाली में भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL) महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1999 में भारतीय सेना और भारतीय वायुसेना द्वारा मिसाइल को सेवा में शामिल किया गया था। अक्टूबर 2001 में डीआरडीओ (DRDO) द्वारा मिसाइल की समीक्षा की गई। मिसाइल प्रणाली की कमी पाया गया क्योंकि ट्रैकिंग रडार बीम में आंतरिक क विराम टूट रहा था जिसके परिणामस्वरूप मिसाइल को लक्ष्य नहीं मिला था और भारी बीएमपी-द्वितीय चेसिस गतिशीलता के लिए सैन्य गुणात्मक आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पा रहा था। 2002 में नौसैनिक संस्करण का परीक्षण समुद्र किया गया।2003 में भारत सरकार ने घोषणा की कि मिसाइल एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शक होगी और इसे अन्य परियोजनाओं से जोड़ा जाएगा। 2005 में मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था। कार्यक्रम का विकास लागत 2.826 बिलियन (43 मिलियन अमेरिकी डॉलर) था। नौसेना इस मिसाइल का इस्तेमाल समुद्र से आसमान में उड़ान भरते लक्ष्यों को निशाना बनाने के लिए कर चुकी है।
विशेषता
त्रिशूल प्रक्षेपास्त्र जिसकी मारक क्षमता 9 किलोमीटर है। त्रिशूल नौसेना, थल सेना और वायु सेना के लिये प्रयोग होने वाला अस्त्र है। इसका उपयोग नीची उडान भर रहे विमानो को मार गिराने के लिये किया जाता है। त्रिशूल के नौसेनिक संस्करण को 'टारपीडो एम के 2' नाम से जाना जाता है। तीन मीटर लंबी और दो मीटर चौड़ी ये मिसाइल धरती से आसमान में नौ किलोमीटर तक मार कर सकता है.त्रिशूल (मिसाइल) भारत द्वारा विकसित लघु-सीमा वाली सतह से हवा मार करने वाली मिसाइल है।
प्रणोदक
एकल चरण ठोस ईंधन में यहा मिसाइल उड़ती है।
सन्दर्भ
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