ताम्र पाषाण युग (चाल्कोलिथिक)
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ताम्र पाषाण युग या तांबा युग (अंग्रेजी: चाल्कोलिथिक, यूनानी: χαλκός khalkós, "ताम्र" और λίθος líthos, "पाषाण") यह नवपाषाण युग के बाद शुरू होता है लगभग 2000 ईसापूर्व से 1500 ईसा पूर्व के आस पास साथ ही इसे कांस्य युग का ही एक भाग माना जाता है। इस काल में मनुष्य पत्थर के औजार से तांबे के औजार उपयोग करने लग गया था। इस सभ्यता के लोग घोड़े से परिचित नही थे यह राजस्थान मे आहड़ उदयपुर व राजसमन्द जिले मे फैली हुई है, देखा जाये तो यह युग सिंधु घाटी सभ्यता के पूर्व का है,परन्तु उत्तर भारत में सिंधु घाटी सभ्यता जो की काँस्य-युग माना जाता है के पश्चात ही ताम्रपाषाण [1](तांबा-पत्थर) युग का आरम्भ माना जाता है,
- ताम्रपाषाण युग मुख्यता ग्रामीण संस्कृति थी
- राजस्थान में गिलुंद एवं अहर ताम्रपाषाण युगीन स्थल है
- महाराष्ट्र में प्रवरा नदी तट पर जोरवे संस्कृति विकसित हुई थी
- प्रमुख जोरवे स्थलों में जोरवे,दैमाबाद,इनामगांव,नेवासा शामिल है,सबसे बड़ा जोरवे स्थल दैमाबाद है
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