ताबो
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ताबो (Tabo) भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के लाहौल और स्पीति ज़िले में स्थित एक बस्ती है। यह स्पीति नदी के किनारे बसा हुआ है। ताबो राष्ट्रीय राजमार्ग 505 पर काज़ा और रिकांग पिओ के बीच स्थित है।[1][2][3][4]
ताबो Tabo | |
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ताबो गोम्पा | |
निर्देशांक: 32.094°N 78.383°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | हिमाचल प्रदेश |
ज़िला | लाहौल और स्पीति ज़िला |
ऊँचाई | 3280 मी (10,760 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 592 |
भाषा | |
• प्रचलित | स्पीति, हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
ताबो एक प्रसिद्ध बौद्ध मठ ताबो गोम्पा के चारो तरफ बसा हुआ है। यह मठ हिमालय क्षेत्र का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण मठ माना जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार इस मठ का निर्माण 996 ई. में हुआ था।
इस गोम्पा की स्थापना लोचावा रिंगचेन जंगपो (रत्नाभद्र) ने 996 ई. में की थी। लोचावा रिंगचेन जंगपो एक प्रसिद्ध विद्धान थे। ताबो मठ परिसर में कुल 09 देवालय है, जिनमें से चुकलाखंड, सेरलाखंड एवं गोन्खंड प्रमुख हैा मठ के भीतर अनेक भित्ति चित्र एवं मूर्तियां निर्मित की गई है, चुकलाखंड लंड (देवालय) के दीवारों पर बहुत ही सुंदर चित्र अंकित किये गये जिसमें बुद्ध के संपूर्ण जीवन को चित्रों के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया है, गोंपा में बहुत ही पुराने धर्म ग्रन्थ (जो कि तिब्बती भाषा में लिखे हुये है) एवं बौद्ध धर्म से संबंधित बहुत पुराने पांडुलिपि भी प्राप्त हुआ है। ताबो गोंपा के चित्र अजंता गुफा की चित्रों से मेल खाते है इसलिये ताबो गोंपा को हिमालयन अजंता के नाम से भी जाना जाता हैा इस गोम्पा में लगभग 60 से 80 लामा प्रतिदिन बौद्ध धर्म का अध्ययन करते है, जिनका दैनिक चर्या बौद्ध धर्म के धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन एवं स्थानीय लोगों के अनुरोध पर उनके घरों में जाकर धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन करना एवं पूजा पाठ कराना हैा इस गोम्पा का निर्माण भालू मिट्टी एवं मिट्टी के ईटों से किया गया है। मुख्य मंदिर के मध्य में वेरोकाना की मूर्ती है जो कि मुख्य मंदिर को चारो दिशाओं से मुखारबिंद किये हुये है, एवं उनके चारो तरफ मंदिर की दीवार के मध्य में दुरयिंग के मूर्तियों है, जिनमें महाबुद्ध अमिताभ, अक्षोभया, रत्नासंभा की मूर्तियॉ मुख्य हैा वर्ष 1996 ई. में इस गोम्पा ने अपने स्थापना के 1000 वर्ष पूरे किए। दलाई लामा जी ने ताबो गोम्पा में वर्ष 1983 एवं 1996 में कालचक्र प्रवर्तन किया गया। यहां हर चार वर्ष में एक बार चाहर मेला लगता है जोकि माह अक्टूबर में होता है।
ताबो गोम्पा के सामने ही प्रकृति निर्मित गुफा है। इन गुफाओं में अब सिर्फ एक ही गुफा 'फू गोम्पा' गावं से अलग एवं कुछ दूरी पर स्थित होने के कारण इसे फू कहा गया है, सुरक्षित अवस्था में है। बाकी गुफाओं के संरक्षण के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग प्रयत्नशील है। इन गुफाओं की दीवारों पर चित्र भी बने हुए हैं। कुछ चित्र अभी भी सुरक्षित अवस्था में हैं। इन चित्रों में कुछ पशुओं के चित्र भी हैं। इन पशुओं में जंगली बकरा तथा तेंदुआ शामिल है।
काज़ा यहाँ से 47 किलोमीटर दूर है। काज़ा में प्रशासनिक भवन तथा कुछ बौद्व मठ हैं। नजदीक ही अनुमंडल अधिकारी का कार्यालय है। इसी कार्यालय से विदेशियों को लाहौल-स्पीति के अंदरुनी भागों में जाने की अनुमति मिलती है। यहां ठहरने के लिए कुछ होटल भी है। काजा से ही हिक्किम तथा कौमिक गांव जाने का रास्ता है।
(65 किलोमीटर) काजा से एक रास्ता उत्तर-पूर्व दिशा में किब्बर को जाता है। यह समुद्र तल से 13796 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां स्कूल, डाकघर तथा रेस्ट हाउस है। यहां प्रत्येक वर्ष जुलाई महीने में 'लदारचा मेला' लगता है। इस मेले में भाग लेने के लिए दूर-दूर से बौद्ध धर्म के मानने वाले लोग आते हैं।
(54 किलोमीटर) यह काजा से 14 किलोमीटर की दूरी पर है। इस मठ की स्थापना 13वीं शताब्दी में हुई थी। यह स्पीती क्षेत्र का सबसे बड़ा मठ है। यह मठ दूर से लेह में स्थित थिकसे मठ जैसा लगता है। यह मठ समुद्र तल से 13504 फीट की ऊंचाई पर एक शंक्वाकार चट्टान पर निर्मित है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इसे रिंगछेन संगपो ने बनवाया था। यह मठ महायान बौद्ध के जेलूपा संप्रदाय से संबंधित है। इस मठ पर 19वीं शताब्दी में सिखों तथा डोगरा राजाओं ने आक्रमण भी किया था। इसके अलावा यह 1975 ई. में आए भूकम्प में भी सुरक्षित रहा। इस मठ में कुछ प्राचीन हस्तलिपियों तथा थंगकस का संग्रह है। इसके अलावा यहां कुछ हथियार भी रखे हुए हैं। यहां प्रत्येक वर्ष जून-जुलाई महीने में 'चाम उत्सव' मनाया जाता है।
(32 किलोमीटर) डंखर एक समय स्पीती की राजधानी थी। आज यह एक छोटा सा गांव है। यहां 16 वीं शताब्दी में डंखर गोम्पा की स्थापना हुई थी। यह गोम्पा समुद्र तल से 12763 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। डंखर गोंपा को भी ताबो गोंपा के समान स्पिति में मान्यता प्राप्त है। वर्तमान में यह 150 लामाओं का निवास स्थान है। इस गोम्पा में भी बौद्ध धर्म के अनेक प्राचीन धर्मग्रन्थ एवं थांगा पैंटिग संरक्षित किये गये हैा। यहां ध्यानमग्न बुद्ध की एक मूर्त्ति भी है। यह गोम्पा सिचलिंग सड़क से 2 घण्टे की खड़ी चढ़ाई पर स्थित है।
(33 किलोमीटर) इसे 'वर्फीले तेंदुओं तथा जंगली बकरों' की धरती कहा जाता है। यह दक्षिणी धनकर में स्थित है। यह पार्क 675 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस पार्क के समीप 600 वर्ष पुराना कुंगरी गोम्पा है। यह गोम्पा बौद्ध धर्म के नियिगम्पा सम्प्रदाय से संबंधित है। यहां काजा से बस द्वारा जाया जा सकता है।
यहां अधिकतर रेस्टोरेंटो में उत्तर भारतीय भोजन दाल-चावल-रोटी-सब्जी मिलता है। इसके अलावा यहां तुकापा मोमो भी परोसा जाता है। काजा में स्थित शाक्या रेस्टोरेंट में स्पीती का स्थानीय भोजन मिलता है। लायूल कैफे में प्रसिद्ध कीयू परोसा जाता है। ताबो में खाने के लिए मिलेनियम मोनेस्ट्री रेस्टोरेंट तथा तेंजिन रेस्टोरेंट अच्छा है। यहां उत्तर भारतीय तथा स्थानीय भोजन दोनों मिलता है।
जुब्बारहट्टी (शिमला) यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है।
कालका यहां का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है। यहां से बस या टैक्सी द्वारा ताबो जाया जा सकता है।
यह राष्ट्रीय राजमार्ग 505 पर स्थित है। शिमला से ताबो जाने के लिए हिंदूस्तान-तिब्बत रोड द्वारा जाया जा सकता है।।
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