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1992 की मंसूर खान की फ़िल्म विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
जो जीता वही सिकंदर 1992 में बनी खेल आधारित हिन्दी भाषा की फिल्म है। इसका निर्देशन मंसूर खान और निर्माण नासिर हुसैन ने किया। फिल्म में आमिर खान, आयशा जुल्का, दीपक तिजोरी, पूजा बेदी, मामिक सिंह और कुलभूषण खरबंदा हैं। संगीत जतिन-ललित ने दिया था। इसने सर्वश्रेष्ठ फिल्म सहित दो फिल्मफेयर पुरस्कार जीते थे।[1]
जो जीता वही सिकंदर | |
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जो जीता वही सिकंदर का पोस्टर | |
निर्देशक | मंसूर खान |
लेखक |
नासिर हुसैन मंसूर खान |
निर्माता | नासिर हुसैन |
अभिनेता |
आमिर ख़ान, आयशा जुल्का, दीपक तिजोरी मामिक सिंह, पूजा बेदी, कुलभूषण खरबंदा |
छायाकार | नजीब खान |
संगीतकार |
जतिन-ललित मजरुह सुल्तानपुरी (गीत) |
प्रदर्शन तिथियाँ |
22 मई, 1992 |
लम्बाई |
176 मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
कुल कारोबार | ₹4 करोड़ (US$5,84,000) |
फिल्म लोकप्रिय रही थी और विशेषकर अब भी युवाओं के बीच लोकप्रिय है। इसका संगीत भी पसंद किया गया था और गीत "पहला नशा" सदाबहार गीत है।
यह फिल्म देहरादून, भारत में स्थापित है। फिल्म शहर के विभिन्न कॉलेजों के विवरण के साथ खुलती है। राजपूत कॉलेज में समृद्ध पृष्ठभूमि के छात्र हैं। इसके विपरीत, मॉडल कॉलेज में गरीब स्थानीय परिवारों के छात्र हैं। अन्य कॉलेजों में जेवियर्स कॉलेज और क्वींस कॉलेज शामिल हैं। क्वींस कॉलेज केवल लड़कियों का कॉलेज है जहां दूसरे कॉलेज के छात्र लड़कियों को लुभाने की कोशिश करते हैं। शहर का मुख्य आकर्षण वार्षिक मैराथन साइकिल दौड़ है जिसमें सभी कॉलेज भाग लेते हैं। फिल्म की शुरुआत में, मॉडल कॉलेज के रतन लाल शर्मा (मामिक सिंह) और राजपूत कॉलेज के शेखर मल्होत्रा (दीपक तिजोरी) के बीच दौड़ रही थी जिसे रतन कम गुणवत्ता की साइकिल के कारण हार गया था। दौड़ के बाद, दोनों को उनके संबंधित स्कूलों द्वारा सम्मानित किया जाता है जिससे शेखर बेअदब और अहंकारी हो जाता है।
संजू (आमिर खान) रतन का छोटा भाई है और रतन जैसा जिम्मेदार नहीं है। वह एक लापरवाह नौजवान है जो खुदगर्ज़ है और हमेशा अपने पिता रामलाल (कुलभूषण खरबंदा) के साथ परेशानी में रहता है, जो चाहते हैं कि वह अधिक परिपक्व रूप से कार्य करे और रतन की तरह जिम्मेदार हो। संजू और उसके छोटे टोली में अंजलि (आयशा जुल्का) (जो संजू को चाहती है) शामिल है। अंजली और उसके पिता वाहन की मरम्मत की दुकान चलाते हैं और अंजलि के पिता अपनी बेटी को संजू से दूर रहने के लिए कहते हैं। रामलाल और उनका परिवार एक छोटा सा कैफे चलाते हैं जो अधिकांश कॉलेज के छात्रों के लिए अड्डा है। रतन और उसके पिता को अपमानित करने के शेखर के प्रयासों के कारण संजू और शेखर के बीच कई हाथापाई होती है। एक नई लड़की देविका (पूजा बेदी) तुरंत संजू और शेखर दोनों को पसंद आ जाती है। शुरुआत में वह शेखर की ओर होती है लेकिन संजू उसे अमीर और जेवियर स्कूल से छात्र होना बताता है। संजू का झूठ का आखिरकार खुलासा हुआ जब देविका उसे नृत्य प्रतियोगिता के दौरान मॉडल कॉलेज समूह में नृत्य करती देखती है। शो के बाद, संजू और देविका ने उस शाम को रिश्ता तोड़ दिया और संजू शेखर के दोस्तों के साथ लड़ता है। रामलाल संजू से पैसा जमा करने के बारे में पूछते हैं, जिन्हें उसे बैंक में जमा करने के लिए दिये थे (उसने देविका पर खर्च दिये)। उसके पिता ने उसे घर से निकाल दिया।
अगली सुबह, रामलाल शहर जाते हैं। रतन संजू को बताता है कि पिताजी ने उसे क्षमा कर दिया है और उससे घर लौटने के लिए कहा है, जिसे संजू ने अनदेखा करने की कोशिश की। रतन और शेखर के बीच एक बहस और लड़ाई होती है। इससे रतन गलती से खाई में गिर जाता है। रतन अस्पताल में हैं, जबकि संजू अपने पिता के साथ मेल-मिलाप करता है। रतन के अस्पताल में होते हुए, संजू अधिक जिम्मेदार हो गया और अपने पिता और भाई की देखभाल करना शुरू कर दिया। उसने फैसला किया कि वह अंजलि की मदद से दौड़ में भाग लेगा और रतन के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेगा। अपने प्रशिक्षण के दौरान, संजू ने अंजलि के लिए उसकी वास्तविक भावनाओं को महसूस किया।
दौड़ से एक दिन पहले, संजू को दुर्घटना के असली कारण के बारे में पता चला और रतन से बहस करता है, जो उसे बताता है कि उसने दुर्घटना के बारे में कुछ भी इसलिए नहीं कहा क्योंकि संजू जिम्मेदार और उन सभी के करीब हो गया था। रतन ने संजू से दौड़ में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने को कहा, अगर वह वास्तव में अपने भाई रतन से प्यार करता है। अपने नई साइकिल के साथ, संजू दौड़ में भाग लेता है। दौड़ में संजू और शेखर दोनों बराबरी पर होते हैं। बीच में कहीं, संजू और शेखर और उसके दोस्तों के बीच हाथापाई होती है। इसके दौरान, अन्य साइकिल चालक आगे पहुँच जाते हैं। शेखर वापस अपने दोस्तों के साथ संजू को पकड़कर वापस आगे पहुँचाता है। संजू शेखर के दोस्तों से मुक्त हो जाता है और दौड़ में शामिल हो जाता है। दौड़ के आखिरी अंतराल में वो शेखर को समापन क्षणों में मात दे देता है। जिससे मॉडल कॉलेज, उसके पिता और भाई को उनकी लंबे समय से प्रतीक्षित जीत मिलती है।
जो जीता वही सिकंदर | ||||
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अलबम जतिन-ललित द्वारा | ||||
जारी |
1992 | |||
संगीत शैली | फ़िल्म संगीत | |||
लंबाई | 35:01 | |||
लेबल |
सारेगामा | |||
जतिन-ललित कालक्रम | ||||
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सभी गीत मजरुह सुल्तानपुरी द्वारा लिखित; सारा संगीत जतिन-ललित द्वारा रचित।
क्र॰ | शीर्षक | गायक | अवधि |
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1. | "अरे यारों मेरे प्यारों" | उदित नारायण, विजयता पंडित | 5:16 |
2. | "नाम है मेरा फ़ाँसेका" | अमित कुमार, अलका याज्ञनिक | 4:41 |
3. | "पहला नशा" | उदित नारायण, साधना सरगम | 4:51 |
4. | "यहाँ के हम सिकंदर" | उदित नारायण, साधना सरगम, जतिन-ललित | 5:29 |
5. | "रूठके हमसे" | जतिन पंडित | 5:15 |
6. | "शहर की परियों" | उदित नारायण, साधना सरगम | 5:16 |
7. | "हम से है सारा जहाँ" | साधना सरगम, जतिन पंडित | 4:13 |
वर्ष | नामित कार्य | पुरस्कार | परिणाम |
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1993 | नासिर हुसैन | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार | जीत |
जफर सुल्तान, दिलीप कातालगी | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सम्पादन पुरस्कार | जीत | |
मंसूर खान | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार | नामित | |
आमिर खान | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार | नामित | |
जतिन-ललित | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार | नामित | |
मजरुह सुल्तानपुरी ("वो सिकंदर ही") | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार | नामित | |
उदित नारायण ("पहला नशा") | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक पुरस्कार | नामित |
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