ज़ेब-उन-निसा

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ज़ेब-उन-निसा

जे़ब-अल-निसा (फ़ारसी: زیب النساء مخفی)[1] (15 फरवरी 1638 – 26 मई 1702)[2] एक मुग़ल शहज़ादी और बादशाह औरंगज़ेब (3 नवंबर, 1618 – 3 मार्च 1707) और उसकी मुख्य मलिका दिलरस बानो बेगम की सबसे बड़ी औलाद थी। वह एक कवित्री भी थी, जो "मख़फ़ी" (مخفی) के छद्म नाम के तहत लिखा करती था। उसके जीवन के पिछले 20 वर्षों में उसे सलीमगढ़ क़िला, दिल्ली में उसके पिता द्वारा क़ैद रखा गया है। शहज़ादी जे़ब-उन-निसा को एक कवयित्री के रूप में याद किया जाता है, और उसका लेखन दीवान-ए-मख़फ़ी के रूप में मरणोपरांत एकत्रित किया गया था। ज़ेब-उन-निसा , हिंदू राजा छत्रसाल बुंदेला से प्रेम करती थी, औरंगज़ेब को यह बात पसंद नहीं आई और उसने ज़ेब-उन-निसा को कैद कर लिया है। इतिहासकारों के अनुसार ज़ेब-उन-निसा का प्रेम राजा छत्रसाल के लिए प्रगाढ़ था एवम जिनसे प्रभावित होकर वह विष्णु जी के आठवें अवतार श्री कृष्ण की भक्त बन गई थी । वह भजन लिखती और अपने कक्ष में गायन भी करती। समकक्ष इतिहासकार लिखते हैं कि धीरे-धीरे उसका झुकाव इस्लामिक रीति रिवाजों से इतर सनातन संस्कृति की ओर बढ़ने लगा।

सामान्य तथ्य ज़ेब-उन-निसा, जन्म ...
ज़ेब-उन-निसा
मुगल साम्राज्य की शहज़ादी
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राजकुमारी ज़ेब-अन-निसा अपने परिचारकों के साथ
जन्म15 फ़रवरी 1638
दौलताबाद, भारत
निधन26 मई 1702(1702-05-26) (उम्र 64 वर्ष)
दिल्ली, भारत
समाधि
पिताऔरंगज़ेब
मातादिलरस बानो बेगम
धर्मइस्लाम
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प्रारंभिक वर्ष

सारांश
परिप्रेक्ष्य

जन्म

जे़ब-अल-निसा ("नारीजगत का आभूषण "),[3]  राजकुमार मोहि-उद-दीन (भविष्य बादशाह औरंगजेब) की सबसे बड़ी औलाद थी। उस का जन्म 15 फरवरी 1638 में दौलताबाद, डेक्कन, में उसके माता-पिता की शादी के ठीक नौ महीने के बाद हूई थी। उसकी माँ, दिलरस बानो बेगम थी, जो औरंगजेब की पहली और मुख्य पत्नी थी, और  ईरान (फारस) के शासक वंश सफ़ाविद राजवंश की राजकुमारी थी।[4][5] जे़ब-अल-निसा अपने पिता की पसंदीदा बेटी थी,[6] और इस वजह से वह उसे उन लोगों को क्षमा करने के लिए मजबूर कर सकती थी जिन्होंने उन्हें नाराज़ किया था।

शिक्षा

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ज़ैब-उन-निसा पैलेस, 1880, औरंगाबाद.

उनके पिता ने हाफिजा मारीम, जो दरबार की महिलाओं में से एक थी, को ज़ेब-उल-निसा की शिक्षा का काम सौंपा। अपने पिता की बुद्धिमत्ता और साहित्यिक स्वाद का पैनापन उसे विरासत में मिला था क्योंकि ज़ेब-उल-निसा ने तीन साल में कुरान को याद किया और सात साल की उम्र में हाफिज बन गई थी। इस अवसर को उनके पिता ने एक महान दावत और सार्वजनिक अवकाश के साथ मनाया था।[7] राजकुमारी को उसके प्रसन्न पिता ने 30,000 स्वर्ण टुकड़े का इनाम भी दिया था। [8] औरंगजेब ने अपनी जहीन पुत्री को अच्छी तरह से पढ़ाने के लिए उस्ताद बी को 30,000 स्वर्ण टुकड़ों की राजसी राशि का भुगतान किया।[9]

जे़ब-अल-निसा ने मोहम्मद सईद अशरफ मज़ंधारानी, जो एक फारसी फारसी कवि भी थे, के साथ समय का विज्ञान भी सीखा।[10] उसने दर्शन, गणित, खगोल विज्ञान,[11] साहित्य सीखा , और फारसी, अरबी और उर्दू की धनी थी। सुलेख में भी उनकी अच्छी प्रतिष्ठा थी

उसकी लाइब्रेरी ने अन्य सभी निजी संग्रहों को पार कर लिया, और उसने कई विद्वानों को अछ्छे वेतन पर अपनी बोली में साहित्यिक कार्यों का निर्माण करने या उसके लिए पांडुलिपियों की प्रतिलिपि बनाने के लिए रोजगार दिया। जे़ब-अल-निसा की लाइब्रेरी बादशाह अकबर के संग्रह से प्रेरित थी, जिसमें कुरान, हिंदू और जैन ग्रंथों, ग्रीक पौराणिक कथाएँ, फारसी ग्रंथों, विद्वान अल्बरूनी के यात्रा के अकाउन्ट, बाइबिल के अनुवाद और अपने पूर्वजों के बारे में समकालीन लेखन शामिल थे।[12] उनकी लाइब्रेरी ने प्रत्येक विषय पर साहित्यिक काम भी प्रदान किए, जैसे कानून, साहित्य, इतिहास और धर्मशास्त्र।[13]

जे़ब-अल-निसा एक दयालु महिला थी और हमेशा लोगों की ज़रूरत के समय मदद करती थी। उसने विधवाओं और अनाथों की मदद की। न केवल उसने लोगों की मदद की, बल्कि हर साल उसने मक्का और मदीना को हज श्रद्धालुओं को भेजा।[14] वह संगीत में रुचि लेती थी और कहा जाता है कि वह अपने समय की महिलाओं में सबसे अच्छी गायक थी। [15] वह हथियारों के इस्तेमाल में भी कुशल थी और उसने युद्ध में कई बार भाग लिया था।

जे़ब-अल-निसा ने 14 साल की उम्र से फ़ारसी में कविताएं कहनी शुरू कर दीं, लेकिन जैसा कि उसके पिता को कविता पसंद नहीं है, वह चुपके से लिखती थी।उस्ताद बयाज़, जो उनके शिक्षकों में से एक थे, ने उनकी कविताएं पाई और कहते रहने के लिए प्रोत्साहित किया। यह बताया जाता है कि औरंगजेब के अदालत में, गनी कश्मीरी, नामातुल्ला खान और अकिल खान राजी जैसे "महान" कवियों के बीच छिपी हुई साहित्यिक और काव्यवादी पार्टियां हुया करती थीं और जे़ब-अल-निसा ने इन पार्टियों में चुपके से भाग लिया।

सन्दर्भ

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