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जल्हण १२वीं शताब्दी के कश्मीर के प्रख्यात संस्कृत कवि थे। इनके पिता लक्ष्मीदेव थे। ये राजपुरी के कृष्ण नामक राजा के मंत्री थे जिसने सन् 1147 ई. में राज्य प्राप्त किया था। इनकी अनेक रचनाएँ प्राप्त हैं। ऐतिहासिक काव्य लिखनेवालों में इनका नाम राजतरंगिणीकार कल्हण के बाद आता है। 'श्रीकण्ठचरितम्' महाकाव्य के रचयिता मंखक के कथनानुसार जल्हण उसके भाई अलंकार की विद्वत्सभा के पंडित थे। अलंकार कश्मीर नरेश जयसिंह के मंत्री थे जिनका समय ई. 1129-1150 है।
जल्हण द्वारा लिखित ग्रंथों में 'सोमपाल विलास' ऐतिहासिक महाकाव्य है। इसमें उन्होंने राजपुरी के राजा सोमपाल की वंशावली, समवर्ती नरेश और सोमपाल के जीवन पर प्रकाश डाला है। यह सोमपाल अंत में सुस्सल द्वारा पराजित होता है। 'सूक्तिमुक्तावली' , 'सुभाषित मुक्तावली' में धन, दया, भाग्य दु:ख, प्रीति और राजकीय सेवा आदि विषयों पर क्रमबद्ध रूप में प्रकाश डाला गया है। इसका वह अंश विशेष महत्वपूर्ण है जिससे विभिन्न कवियों एवं विद्वानों की रचनाओं और समय के संबंध में निश्चित ज्ञान प्राप्त होता है। अपने पूर्ववर्तीं दामोदर गुप्त, क्षेमेन्द्र आदि की रचनाओं से प्रभावित होकर जल्हण ने 'मुग्धोपदेश' की रचना की जिसमें कुल 66 पद हैं। जल्हण द्वारा रचित 'सप्तशती छाया' नाम का एक ग्रंथ और भी हैं।
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