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राजाओं के मरणोंपरान्त उनकी याद में स्थापत्य की दृष्टि से विशिष्ट स्मारक बनाये गए, जिन्हें छतरियां तथा देवल के नाम से जाना जाता है। छतरियां ज्यादातर भारतीय राज्य राजस्थान में देखने को मिलती है। जिसमें जयपुर की गैटोर, जोधपुर की जसवंत थड़ा ,कोटा का छत्र विलास बाग़, जैसलमेर का बड़ा बाग़ तो इस दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। जैसलमेर के पीले पत्थर से बनी छतरियां सुंदर है। छतरियों में हिन्दू और मुस्लिम दोनों शैलियों का मिश्रण पाया जाता है। सबसे नीचे चौकोर अथवा आठ कोनों का चबूतरा बनाया जाता है। इन चबूतरों के ऊपर दूसरा गोल चबूतरा बनाया जाता है।
८४ खम्भों की छतरी - शत्रुसाल का स्मारक (१६३१ ईस्वी में) बूंदी शासक - शाहजहाँ का समकालीन। बूंदी के देवपुरा गाँव के पास राव राजा अनिरुद्ध सिंह के धायबाई देवा की स्मृति में बनाई गयी। तीन मंजिला छतरी जिसमें ८४ भव्य स्तम्भ हैं। [1]
बूंदी से लगभग ४-५ किलोमीटर दूर स्थित केसरबाग में बूंदी शासकों तथा राजपरिवारों की ६६ छतरियां हैं। इनमें सबसे प्राचीन महाराज कुमार दादू की है तथा सबसे नवीन महाराजा राजा विष्णु सिंह की छतरी है। इन छतरियों पर राजाओं के साथ हुई सती हुई रानियों की मूर्तियाँ भी उत्कीर्ण है। [2]
इनकी छतरी राजस्थान के अलवर के बाला दुर्ग के नीचे सागर के दक्षिण किनारे हिन्दू स्थापत्य कला की इस ८० खम्भों की छतरी का निर्माण महाराजा बख्तारसिंह की मूसी रानी की स्मृति में महाराजा विनय सिंह के काल में हुआ था। सफेद संगमरमर एवं लाल पत्थर से निर्मित इस छतरी की ऊपरी मंजिल पर रामायण और महाभारत के भित्ति चित्र भी बने हुए हैं।
ये छतरियां भी राजस्थान के अलवर ज़िले में स्थित है। यहाँ स्थित मिश्रजी की छतरी विशेष रूप से प्रसिद्ध है जिसका निर्माण लगभग १४३२ ईस्वी में किया गया था। इस छतरी के गुबंद को आठ समकोण खड़े खम्भों पर स्थापित किया गया है। इस छतरी की विशेषता भित्ति चित्रण का बेमिसाल अलंकरण है। [3]
मंडोर के पास पंचकुंडा के निकट स्थित ये छतरियाँ भव्यतापूर्ण नक्काशी की कुल ४२ छतरियाँ है जिनमें रानी सूर्य कंवर की ३२ स्तम्भों वाली छतरी सबसे बड़ी और भव्य है। इसके अलावा यहाँ महाराजा मानसिंह की महारानी भटियाणी रानी की छतरी ऊँचे चबूतरे पर बनी हुई है।
मंडोर जोधपुर में पंचकुंडा के निकट लाल बलुई पत्थर की छतरी ,मेहरानगढ़ दुर्ग के तांत्रिक अनुष्ठान में जिस ब्राह्मण ने आत्मबलिदान दिया ,उसकी है। यह शिल्प कला और स्थापत्य कला का अद्भुत नजारा है। [4]
जोधपुर से पाँच किलोमीटर दूर ऋषि श्रेष्ठ काग भुशुण्डि की तपोभूमि ,जहाँ भगवती गंगा भी ऋषि के तप से प्रकट हुई थी, यहाँ लगभग १५० छतरियाँ बनी हुई हैं। कागा में शीतला देवी का मंदिर भी है जिसका निर्माण जोधपुर के नरेश विनयसिंह ने करवाया था। इस मंदिर के पास दीवान दीपचंद की छतरी स्थित है। कागा की छतरियों के पास महाराजा जसवंत सिंह के काल में बक नामक जादूगर द्वारा एक दिन में लगाया गया अनार का बगीचा है।
कागा की छतरियों के मध्य प्रधानमंत्री की छतरी है। यह छतरी १८ स्तम्भों पर लाल पत्थरों से बनाई हुई है। महाराज जसवंत सिंह की प्राण रक्षा हेतु उनके प्रधानमंत्री राजसिंह कुम्पावत ने आत्मबलिदान किया था। इसी की स्मृति में इस छतरी का निर्माण महाराजा जसवंत सिंह ने करवाया था।
राजस्थान के अलावा देश के मध्य प्रदेश में भी कई प्रसिद्ध छतरियाँ स्थित है जिसमें कुछ इस प्रकार है- ग्वालियर की श्रीमती बालाजी महाराज की छतरी, शुजालपुर में श्रीनाथ शिंदे जी की छतरी स्थित है इनके अलावा इंदौर, महेश्वर और शिवपुरी में भी छतरियाँ स्थित है। [5]
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