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भारत के अंतरिक्ष अभियान के अंतर्गत चंद्रमा पर भेजा जाने वाला अंतरिक्ष यान विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
चन्द्रयान (अथवा चंद्रयान-१) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम के अंतर्गत द्वारा चंद्रमा की तरफ कूच करने वाला भारत का पहला अंतरिक्ष यान था।[1] इस अभियान के अन्तर्गत एक मानवरहित यान को २२ अक्टूबर, २००८ को चन्द्रमा पर भेजा गया और यह ३० अगस्त, २००९[2] तक सक्रिय रहा। यह यान ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पोलर सेटलाईट लांच वेहिकल, पी एस एल वी) के एक संशोधित संस्करण वाले राकेट की सहायता से सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से प्रक्षेपित किया गया। इसे चन्द्रमा तक पहुँचने में ५ दिन लगे पर चन्द्रमा की कक्षा में स्थापित करने में १५ दिनों का समय लग गया।[3] चंद्रयान ऑर्बिटर का मून इम्पैक्ट प्रोब (MIP) 14 नवंबर 2008 को चंद्र सतह पर उतरा, जिससे भारत चंद्रमा पर अपना झंडा लगाने वाला चौथा देश बन गया।[4]
मिशन प्रकार | चन्द्र ऑर्बिटर | ||||
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संचालक (ऑपरेटर) | भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन | ||||
कोस्पर आईडी | 2008-052A | ||||
सैटकैट नं॰ | 33405 | ||||
वेबसाइट |
www | ||||
मिशन अवधि |
योजना: 2 वर्ष हासिल: 10 माह, 6 दिन | ||||
अंतरिक्ष यान के गुण | |||||
लॉन्च वजन | 1,380 किलोग्राम (3,040 पौंड) | ||||
मिशन का आरंभ | |||||
प्रक्षेपण तिथि | 22 अक्टूबर 2008, 00:52 यु.टी.सी | ||||
रॉकेट | ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन वाहन सी11 | ||||
प्रक्षेपण स्थल | द्वितीय लॉन्च पैड, सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र | ||||
ठेकेदार | भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन | ||||
मिशन का अंत | |||||
अंतिम संपर्क | 28 अगस्त 2009, 20:00 यु.टी.सी | ||||
कक्षीय मापदण्ड | |||||
निर्देश प्रणाली | चन्द्र केन्द्रीय कक्ष | ||||
अर्ध्य-मुख्य अक्ष (सेमी-मेजर ऑर्बिट) | 1,758 किलोमीटर (1,092 मील) | ||||
विकेन्द्रता | 0.0 | ||||
परिधि (पेरीएपसिस) | 200 किलोमीटर (120 मील) | ||||
उपसौर (एपोएपसिस) | 200 किलोमीटर (120 मील) | ||||
युग | 19 मई 2009 | ||||
चन्द्र ऑर्बिटर | |||||
कक्षीय निवेशन | 8 नवंबर 2008 | ||||
कक्षायें | 3,400 | ||||
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चंद्रयान का उद्देश्य चंद्रमा की सतह के विस्तृत नक्शे और पानी के अंश और हीलियम की तलाश करना था। चंद्रयान-प्रथम ने चंद्रमा से १०० किमी ऊपर ५२५ किग्रा का एक उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया। यह उपग्रह अपने रिमोट सेंसिंग (दूर संवेदी) उपकरणों के जरिये चंद्रमा की ऊपरी सतह के चित्र भेजे।
भारतीय अंतरिक्षयान प्रक्षेपण के अनुक्रम में यह २७वाँ उपक्रम था। इसका कार्यकाल लगभग २ साल का होना था, मगर नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूटने के कारण इसे उससे पहले बंद कर दिया गया। चन्द्रयान के साथ भारत चाँद को यान भेजने वाला छठा देश बन गया था। इस उपक्रम से चन्द्रमा और मंगल ग्रह पर मानव-सहित विमान भेजने के लिये रास्ता खुला।
हालाँकि इस यान का नाम मात्र चंद्रयान था, किन्तु इसी शृंखला में अगले यान का नाम चन्द्रयान-२ होने से इस अभियान को चंद्रयान-१ कहा जाने लगा।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र 'इसरो' के चार चरणों वाले ३१६ टन वजनी और ४४.४ मीटर लंबे अंतरिक्ष यान चंद्रयान प्रथम के साथ ही ११ और उपकरण एपीएसएलवी-सी११ से प्रक्षेपित किए गए जिनमें से पाँच भारत के और छह अमरीका और यूरोपीय देशों के थे।[5] इस परियोजना में इसरो ने पहली बार १० उपग्रह एक साथ प्रक्षेपित किए।
द्रव्यमान - प्रक्षेपण के समय १३८० किलोग्राम और बाद में चन्द्रमा तक पहुँचने पर इसका वजन ५७५ किग्रा हो जाएगा। अपने इम्पैक्टरों को फेंकने के बाद ५२३ किग्रा।
आकार- एक घन के आकार में जिसकी भुजाए १.५ मीटर लम्बी हैं।
संचार- एक्स-बैंड
ऊर्जा- ऊर्जा का मुख्य स्रोत सौर पैनल है जो ७०० वाट की क्षमता का है। इसे लीथियम-आयन बैटरियों में भर कर संचित किया जा सकता है।
२४ सितंबर २००९ को साइंस (पत्रिका) ने बताया कि चंद्रयान पर चंद्रमा खनिजोग्य मैपर (एम 3) ने चंद्रमा पर पानी की बर्फ होने की पुष्टि की है।[10]
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन [इसरो] ने दावा किया कि चांद पर पानी भारत की खोज है। चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता चंद्रयान-1 पर मौजूद भारत के अपने मून इंपैक्ट प्रोब [एमआईपी] ने लगाया। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के उपकरण ने भी चांद पर पानी होने की पुष्टि की है। चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता भारत के अपने एमआईपी ने लगाया है। चंद्रयान-1 के प्रक्षेपण के करीब एक पखवाड़े बाद भारत का एमआईपी यान से अलग होकर चंद्रमा की सतह पर उतरा था। उसने चंद्रमा की सतह पर पानी के कणों की मौजूदगी के पुख्ता संकेत दिए थे। चंद्रयान ने चांद पर पानी की मौजूदगी का पता लगाकर इस सदी की महत्वपूर्ण खोज की है। इसरो के अनुसार चांद पर पानी समुद्र, झरने, तालाब या बूंदों के रूप में नहीं बल्कि खनिज और चंट्टानों की सतह पर मौजूद है। चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी पूर्व में लगाए गए अनुमानों से कहीं ज्यादा है।
चंद्रयान-1 द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़े वर्ष 2010 के अंत तक जनता के लिए उपलब्ध कराए गए थे। आंकड़े को दो सत्रों में विभाजित किया गया था जिसमें पहले सत्र 2010 के अंत तक सार्वजनिक हो गया था और दूसरा सत्र 2011 के मध्य तक सार्वजनिक हो गया था। आंकड़ो में चंद्रमा की तस्वीरें और चंद्रमा की सतह के रासायनिक और खनिज मानचित्रण के आंकड़े शामिल हैं।[11]
18 सितंबर २००८ को, प्रथम मनमोहन सिंह ने मिशन को मंजूरी दी। अंतरिक्षयान का डिजाइन अगस्त २००९ में पूरा हुआ, जिसमें दोनों देशों के वैज्ञानिकों ने एक संयुक्त समीक्षा की। हालांकि इसरो ने चंद्रयान२ के प्रति शेड्यूल के लिए पेलोड को अंतिम रूप दिया, मिशन को जनवरी 2013 में स्थगित कर दिया गया और २०१६ को पुनर्निर्धारित किया गया क्योंकि रूस समय पर लैंडर विकसित करने में असमर्थ था रोस्कोसमोस बाद में मार्स में फोबोस-ग्रंट मिशन की विफलता के कारण वापस ले लिया, क्योंकि फ़ुबोस-ग्रंट मिशन से जुड़े तकनीकी पहलुओं का उपयोग चंद्र परियोजनाओं में भी किया गया था, जिनकी समीक्षा किए जाने की आवश्यकता थी। जब रूस ने २०१५ तक भी लैंडर प्रदान करने में असमर्थता का हवाला दिया, तो भारत ने चंद्र मिशन को विकसित करने का फैसला किया
जिसकी समीक्षा करने की आवश्यकता है। जब रूस ने २०१५ तक भी लैंडर प्रदान करने में असमर्थता का हवाला दिया, तो भारत ने चंद्र मिशन को स्वतंत्र रूप से विकसित करने का निर्णय लिया। 2018 के तहत तैयारी के तहत दूसरा चरण, चंद्रमा पर नरम-लैंडिंग में सक्षम अंतरिक्ष यान को शामिल करेगा और अतिरिक्त माप लेने के लिए एक ऑर्बिटर के साथ चंद्र सतह पर एक रोबोट रोवर को भी तैनात करेगा।
चंद्रयान -2 को 14 जुलाई २०१९ को लॉन्च किया जाना था। लेकिन लॉन्च को तकनीकी मुद्दों के कारण लॉन्च से 56 मिनट पहले अंतिम क्षणों में बंद कर दिया गया था। इसे बाद में 22 जुलाई, 2019 को जीएसएलवी एमके ३ रॉकेट पर लॉन्च किया गया था। 6 सितंबर, २०१९ को लगभग 1:53 बजे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, इसरो, मिशन कंट्रोल ने यान के साथ सभी संपर्क खो दिया, जबकि जमीन पर उतरने का प्रयास किया। संपर्क खो जाने पर चंद्रमा की सतह से 2.1 किमी की ऊंचाई पर होने का अनुमान लगाया गया था।
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