गयासुद्दीन तुग़लक़
दिल्ली सल्तनत का 17 वाँ सुल्तान और तुगलक वंश का पहला विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
दिल्ली सल्तनत का 17 वाँ सुल्तान और तुगलक वंश का पहला विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
गयासुद्दीन तुग़लक़ दिल्ली सल्तनत में तुग़लक़ वंश का शासक था। ग़ाज़ी मलिक या तुग़लक़ ग़ाज़ी, ग़यासुद्दीन तुग़लक़ (1320-1325 ई॰) के नाम से 8 सितम्बर 1320 को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। इसे भारत मे तुग़लक़ वंश का संस्थापक भी माना जाता है। इसने कुल 29 बार मंगोल आक्रमण को विफल किया। सुल्तान बनने से पहले वह क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी के शासन काल में उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त का शक्तिशाली गर्वनर नियुक्त हुआ था।[1] वह दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था, जिसने अपने नाम के साथ 'ग़ाज़ी' शब्द जोड़ा था।।[2]
गयासुद्दीन तुगलक़ व गाज़ी मलिक | |
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सुल्तान | |
शासनावधि | 8 सितम्बर 1321 – फरवरी 1325 |
राज्याभिषेक | 8 सितम्बर 1321 |
पूर्ववर्ती | खुसरो खान |
उत्तरवर्ती | मुहम्मद बिन तुगलक़ |
निधन | फरवरी 1325 कड़ा, मानिकपुर, भारत |
समाधि | दिल्ली, भारत |
घराना | तुगलक़ वंश |
पिता | करौना तुगलक ऐक तुर्क गुलाम |
माता | हिन्दू पंजाबी जाटनी |
सुल्तान ने आर्थिक सुधार के अन्तर्गत अपनी आर्थिक नीति का आधार संयम, सख्ती एवं नरमी के मध्य संतुलन (रस्म-ए-मियान) को बनाया। उसने लगान के रूप में उपज का 1/10 या 1/11 हिस्सा ही लेने का आदेश जारी कराया।[3]ग़यासुद्दीन ने मध्यवर्ती ज़मीदारों विशेष रूप से मुकद्दम तथा खूतों को उनके पुराने अधिकार लौटा दिए, जिससे उनको वही स्थिति प्राप्त हो गयी, जो बलबन के समय में प्राप्त थी। ग़यासुद्दीन ने अमीरों की भूमि पुनः लौटा दी। उसने सिंचाई के लिए कुँए एवं नहरों का निर्माण करवाया। सम्भवतः नहर का निर्माण करवाने वाला ग़यासुद्दीन प्रथम सुल्तान था। अलाउद्दीन ख़िलजी की कठोर नीति के विरुद्ध उसने उदारता की नीति अपनायी, जिसे बरनी ने 'रस्मेमियान' अथवा 'मध्यपंथी नीति' कहा है।
उसने तुगलक राजवंश की स्थापना की और 1320 से 1325 तक दिल्ली की सल्तनत पर शासन किया। मंगोलो के विरुद्ध गयासुद्दीन की नीति कठोर थी। उसने मंगोल कैदियों को कठोर रूप से दंडित किया।
उसने अमरोहा की लड़ाई (1305ई) में मंगोलों को पराजित किया। जब गयासुद्दीन् मुल्तान से दिल्ली चला गया, तो सूमरो कबीले के लोगो ने विद्रोह कर दिया और थट्टा पर कब्ज़ा कर लिया। तुगलक ने ताजुद्दीन मलिक को मुल्तान का, ख्वाज़ा खातिर को भक्कर का गवर्नर नियुक्त किया। उसने सेहावाँ का कार्यभार मलिक अली शेर के हाथो मे सौप दिया। 1323 में, गयासुद्दीन ने अपने बेटे ज़ौना खान (बाद में मुहम्मद बिन तुगलक) को काकतीय राजधानी वारंगल के अभियान पर भेजा। वारंगल के आने वाले घेराबंदी के परिणामस्वरूप वारंगल, और काकतीय वंश का अंत हुआ।[4]
1323 में उसने अपने बेटे मुहम्मद शाह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और राज्य के मंत्रियों और रईसों से व्यवस्था के लिए एक लिखित वादा या समझौता किया। उसने तुगलकाबाद किले का निर्माण भी शुरू किया।
खिलजी वंश के शासनकाल में ग़यासुद्दीन को दिपालपुर का गवर्नर नियुक्त किया गया। अलाउद्दीन खिलजी के काल में उसने मुल्तान,उच्छ तथा सिन्ध को चगतई ख़ान के आक्रमणों से सुरक्षा प्रदान की।[1]
1321 ई. में ग़यासुद्दीन ने वारंगल पर आक्रमण किया, किन्तु वहाँ के काकतीय राजा प्रताप रुद्रदेव को पराजित करने में वह असफल रहा। 1323 ई. में द्वितीय अभियान के अन्तर्गत ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने शाहज़ादे 'जौना ख़ाँ' (मुहम्मद बिन तुग़लक़) को दक्षिण भारत में सल्तनत के प्रभुत्व की पुन:स्थापना के लिए भेजा। जौना ख़ाँ ने वारंगल के काकतीय एवं मदुरा के पाण्ड्य राज्यों को विजित कर दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया।
इस प्रकार सर्वप्रथम ग़यासुद्दीन के समय में ही दक्षिण के राज्यों को दिल्ली सल्तनत में मिलाया गया। इन राज्यों में सर्वप्रथम वारंगल था। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ पूर्णतः साम्राज्यवादी था। इसने अलाउद्दीन ख़िलजी की दक्षिण नीति त्यागकर दक्षिणी राज्यों को दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया।[4]
ग़यासुद्दीन जब बंगाल में था, तभी सूचना मिली कि, ज़ौना ख़ाँ (मुहम्मद बिन तुग़लक़) निज़ामुद्दीन औलिया का शिष्य बन गया है और वह उसे राजा होने की भविष्यवाणी कर रहा है। निज़ामुद्दीन औलिया को ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने धमकी दी तो, औलिया ने उत्तर दिया कि, "हुनूज दिल्ली दूर अस्त, अर्थात दिल्ली अभी बहुत दूर है।[5] हिन्दू जनता के प्रति ग़यासुद्दीन तुग़लक़ की नीति कठोर थी। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ संगीत का घोर विरोधी था। बरनी के अनुसार अलाउद्दीन ख़िलजी ने शासन स्थापित करने के लिये जहाँ रक्तपात व अत्याचार की नीति अपनाई, वहीं ग़यासुद्दीन ने चार वर्षों में ही उसे बिना किसी कठोरता के संभव बनाया।
अपनी सत्ता स्थापित करने के बाद ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने अमीरों तथा जनता को प्रोत्साहित किया। शुद्ध रूप से तुर्की मूल का होने के कारण इस कार्य में उसे कोई विशेष कठिनाई नहीं हुई। ग़यासुद्दीन ने कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए किसानों के हितों की ओर ध्यान दिया। उसने एक वर्ष में इक्ता के राजस्व में 1/10 से 1/11 भाग से अधिक की वृद्धि नहीं करने का आदेश दिया।[3] उसने सिंचाई के लिए नहरें खुदवायीं तथा बाग़ लगवाए।
जनता की सुविधा के लिए अपने शासन काल में ग़यासुद्दीन ने क़िलों, पुलों और नहरों का निर्माण कराया। सल्तनत काल में डाक व्यवस्था को सुदृढ़ करने का श्रेय ग़यासुद्दीन तुग़लक़ को ही जाता है।[3] ‘बरनी’ ने डाक-व्यवस्था का विस्तृत वर्णन किया है। शारीरिक यातना द्वारा राजकीय ऋण वसूली को उसने प्रतिबंधित किया।[3]
ग़यासुद्दीन एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। इस्लाम धर्म में उसकी गहरी आस्था और उसके सिद्धान्तों का वह सावधानीपूर्वक पालन करता था। उसने मुसलमान जनता पर इस्लाम के नियमों का पालन करने के लिए दबाव डाला। वह अपने साम्राज्य के बहुसंख्यकों के धर्म के प्रति शत्रुभाव तो नहीं रखता था किंतु उनके प्रति दयावान् भी नहीं था।[3]
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