ख़ुबानी एक गुठलीदार फल है। वनस्पति-विज्ञान के नज़रिए से ख़ुबानी, आलू बुख़ारा और आड़ू तीनों एक ही "प्रूनस" नाम के वनस्पति परिवार के फल हैं। उत्तर भारत और पाकिस्तान में यह बहुत ही महत्वपूर्ण फल समझा जाता है और कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह भारत में पिछले ५,००० साल से उगाया जा रहा है।[2] ख़ुबानियों में कई प्रकार के विटामिन और फाइबर होते हैं।

सामान्य तथ्य ख़ुबानी, संरक्षण स्थिति ...
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तुर्की में उग रहा एक ख़ुबानी का पेड़
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खुबानी और उसका पार अनुभाग

अंग्रेजी में ख़ुबानी को "ऐप्रिकॉट" (apricot) कहते हैं। पश्तो में इसे "ख़ुबानी" (خوبانۍ) ही कहते हैं। फ़ारसी में इसको "ज़र्द आलू" (زردآلو) कहते हैं। फ़ारसी में "आलू" का मतलब "आलू बुख़ारा" और "ज़र्द" का मतलब "पीला (रंग)" होता है, यानि "ज़र्द आलू" का मतलब "पीला आलू बुख़ारा' होता है। ध्यान रहे के जिसे हिन्दी में आलू बोलते हैं उसे फ़ारसी में "आलू ज़मीनी" बोलते हैं (यानि ज़मीन के नीचे उगने वाला आलू बुख़ारा)। मराठी में इसके लिए फ़ारसी से मिलता-जुलता "जर्दाळू" शब्द है।

विवरण

ख़ुबानी के पेड़ का कद छोटा होता है - लगभग ८-१२ मीटर तक। उसके तने की मोटाई क़रीब ४० सेंटीमीटर होती है। ऊपर से पेड़ की टहनियां और पत्ते घने फैले हुए होते है। पत्ते का आकार ५-९ सेमी लम्बा, ४-८ सेमी चौड़ा और अण्डाकार होता है। फूल पाँच पंखुड़ियों वाले, सफ़ेद या हलके गुलाबी रंग के होते हैं और हाथ की ऊँगली से थोड़े छोटे होते हैं। यह फूल या तो अकेले या दो के जोड़ों में खिलते हैं। ख़ुबानी का फल एक छोटे आड़ू के बराबर होता है। इसका रंग आम तौर पर पीले से लेकर नारंगी होता है लेकिन जिस तरफ सूरज पड़ता हो उस तरफ ज़रा लाल रंग भी पकड़ लेता है। वैसे तो ख़ुबानी के बहरी छिलका काफी मुलायम होता है, लेकिन उस पर कभी-कभी बहुत महीन बाल भी हो सकते हैं। ख़ुबानी का बीज फल के बीच में एक ख़ाकी या काली रंग की सख़्त गुठली में बंद होता है। यह गुठली छूने में ख़ुरदुरी होती है।

पैदावार

विश्व में सबसे ज़्यादा ख़ुबानी तुर्की में उगाई जाती है जहाँ २००५ में ३९०,००० टन ख़ुबानी पैदा की गई। मध्य-पूर्व तुर्की में स्थित मलत्या क्षेत्र ख़ुबानियों के लिए मशहूर है और तुर्की की लगभग आधी पैदावार यहीं से आती है। तुर्की के बाद ईरान का स्थान है, जहाँ २००५ में २८५,००० टन ख़ुबानी उगाई गई। ख़ुबानी एक ठन्डे प्रदेश का पौधा है और अधिक गर्मी में या तो मर जाता है या फल पैदा नहीं करता। भारत में ख़ुबानियाँ उत्तर के पहाड़ी इलाकों में पैदा की जाती है, जैसे के कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, वग़ैराह।

प्रयोग

सूखी ख़ुबानी को भारत के पहाड़ी इलाक़ों में बादाम, अख़रोट और न्योज़े की तरह ख़ुबानी को एक ख़ुश्क मेवा समझा जाता है और काफ़ी मात्रा में खाया जाता है। कश्मीर और हिमाचल के कई इलाक़ों में सूखी ख़ुबानी को किश्त या किष्ट कहते हैं। माना जाता है के कश्मीर के किश्तवार क्षेत्र का नाम इसीलिए पड़ा क्योंकि प्राचीनकाल में यह जगह सूखी खुबनियों के लिए प्रसिद्ध थी।

खुबानी की प्यूरी को वसा के विकल्प के तौर पर प्रयोग कर सकते हैं। इसकी प्यूरी आलूबुखारे की प्यूरी की तरह बहुत गहरे रंग की नहीं होती और न ही सेब की प्यूरी की तरह जल की अधिकता वाली ही होती है। खुबानी का उद्गम उत्तर पश्चिम के देशों विशेषकर अमेरिका का माना जाता है। कुछ समय बाद यह फल तुर्की पहुंचा। इस समय वहां खुबानी की पैदावार सबसे ज्यादा होती है। खुबानी का रंग जितना चमकीला होगा, उसमें विटामिन-सी और ई और पोटेशियम की मात्रा उतनी ही अधिक होगी। सूखी खुबानी में ताजी खुबानी की तुलना में १२ गुना लौह, सात गुना आहारीय रेशा और पांच गुना विटामिन ए होता है। सुनहरी खुबानी में कच्चे आम व चीनी मिला कर बहुत स्वादिष्ट चटनी बनती है। खुबानी का पेय भी बहुत स्वादिष्ट होता है, जिसे ‘एप्रीकॉट नेक्टर’ कहते हैं।[3]

ख़ुबानी के बीज

ख़ुबानी की गुठली के अन्दर का बीज एक छोटे बादाम की तरह होता है और ख़ुबानी की बहुत सारी क़िस्मों में इसका स्वाद एक मीठे बादाम सा होता है। इसे खाया जा सकता है, लेकिन इसमें हलकी मात्रा में एक हैड्रोसायनिक ऐसिड नाम का ज़हरीला पदार्थ होता है। बच्चों को ख़ुबानी का बीज नहीं खिलाना चाहिए। बड़ों के लिए यह ठीक है लेकिन उन्हें भी एक बार में ५-१० बीजों से अधिक नहीं खाने चाहिए।[4]

किस्में

खुबानी कई रंगों में आती है, जैसे सफेद, काले, गुलाबी और भूरे (ग्रे) रंग। रंग से खुबानी के स्वाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन इसमें जो कैरोटीन होता है, उसमें जरूर अंतर आ जाता है।

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

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