ख़ोतान
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ख़ोतान या होतान (उईग़ुर: خوتەن, ख़ोतेन; चीनी: 和田, हेतियान; अंग्रेजी: Hotan या Khotan) मध्य एशिया में चीन के शिनजियांग प्रांत के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित एक शहर है जो ख़ोतान विभाग की राजधानी भी है। इसकी आबादी सन् २००६ में १,१४,००० अनुमानित की गई थी। ख़ोतान तारिम द्रोणी में कुनलुन पर्वतों से ठीक उत्तर में स्थित है। कुनलुन शृंखला में ख़ोतान पहुँचने के लिए तीन प्रमुख पहाड़ी दर्रे हैं - संजु दर्रा, हिन्दु-ताग़ दर्रा और इल्ची दर्रा - जिनके ज़रिये ख़ोतान हज़ारों सालों से भारत के लद्दाख़ क्षेत्र से व्यापारिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध बनाए हुए था।[1] यह शहर टकलामकान रेगिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी छोर पर स्थित है लेकिन दो शक्तिशाली नदियाँ इसे सींचती हैं - काराकाश नदी और योरुंगकाश नदी। ख़ोतान में मुख्य रूप से उइग़ुर लोग बसते हैं।[2]
ख़ोतान خوتەن شەھىرى Khotan / 和田市 | |
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नगर | |
ख़ोतान मस्जिद के सामने का दृश्य | |
शिंजियांग में स्थिति | |
निर्देशांक: 37°06′N 80°01′E | |
देश | जनवादी गणतंत्र चीन |
प्रान्त | शिंजियांग |
विभाग | ख़ोतान विभाग |
Seat | नूरबाग़ उपज़िला |
क्षेत्रफल | |
• कुल | 85035 किमी2 (32,832 वर्गमील) |
ऊँचाई | 1382 मी (4,534 फीट) |
जनसंख्या (2010 जनगणना) | |
• कुल | 3,22,330 |
• घनत्व | 3.8 किमी2 (9.8 वर्गमील) |
भाषा | |
• प्रचलित | उइग़ुर |
'ख़ुतन', 'ख़ोतन' या 'ख़ोतान' मध्य एशिया में पूर्वी तुर्किस्तान (शिंजियांग) की मरुभूमि (तकलामकान) के दक्षिणी सिरे पर स्थित एक नखलिस्तान-नगर है। जिस नखलिस्तान में यह स्थित है, वह यारकंद से ३०० किमी दक्षिण पूर्व है और अति प्राचीन काल से ही तारिम द्रोणी के दक्षिणी किनारे वाले नखलिस्तान में सबसे बड़ा है। ख़ोतन ज़िले को स्थानीय लोग 'इल्वी' कहते हैं तथा इस नखलिस्तान के दो अन्य नगर युरुंगकाश और काराकाश तीनों एक ६० किमी हरियाली लंबी पट्टी के रूप में कुनलुन पर्वत के उत्तरी पेटे में हैं। इसकी हरियाली के साधन काराकाश नदी और योरुंगकाश नदी नदियाँ हैं जो मिलकर ख़ोतन नदी का रूप ले लेती है। ख़ोतन नाम के संबंध में कहा जाता है कि वह कुस्तन (भूमि है स्तन जिसका) के नाम पर पड़ा है जिसे मातृभूमि से निर्वासित हो कर धरती माता के सहारे जीवनयापन करना पड़ा था।
खुतन पूर्वी हान राजवंश के काल में एक सामान्य सा राज्य था। किंतु प्रथम शती ई. के उत्तरार्ध में, जिस समय चीन तारिम उपत्यका पर अधिकार करने के लिए जोर लगा रहा था, अपनी भौगोलिक स्थिति-अर्थात् सबसे बड़ा नखलिस्तान होने तथा पश्चिम जाने वाले दो मार्गों में अधिक दक्षिणी मार्ग पर स्थित होने के कारण मध्य एशिया और भारत के बीच एक जोड़नेवाली कड़ी के रूप में इसे विशेष महत्व प्राप्त हुआ। भारत के साथ इसका अत्यंत घनिष्ठ संबंध बहुत दिनों तक बना रहा। ख़ोतन के मार्ग से ही बौद्ध धर्म चीन पहुँचा। एक समय ख़ोतन बौद्ध धर्म की शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र था। वहाँ भारतीय लिपि तथा प्राकृत भाषा प्रचलित थी। वहाँ गुप्तकालीन अनेक बौद्ध विहार मिले हैं जिनकी भित्ति पर अजंता शैली से मिलती जुलती शैली के चित्र पाए गए हैं। काशगर से चीन तथा चीन से भारत आनेवाले सार्थवाह, व्यापारी खुतन होकर ही आते जाते थे। फ़ाहियान, सुंगयुन, ह्वेन त्सांग और मार्को पोलो ने इसी मार्ग का अनुसरण किया था। यह सुप्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् बुद्धसेना का निवासस्थान था।
अपनी समृद्धि और अनेक व्यापार मार्गों का केंद्र होने के कारण इस नगर को अनेक प्रकार के उत्थान पतन का सामना करना पड़ा। ७० ई. में सेनापति पानचाउ ने इसे विजित किया। और उत्तरवर्ती हनवंश के अधीन रहा। उसके बाद पुन: सातवीं शती में टांग वंश का इसपर अधिकार था। आठवीं शती में पश्चिमी तुर्किस्तान से आनेवाले अरबों ने और दसवीं शती में काशगरवासियों ने इसपर अधिकार किया। १३वीं शती में चंगेज खाँ ने उसपर कब्जा किया। पश्चात् वह मध्य एशिया में मंगोलों के अधीन हुआ। इसी काल में मार्कोपोलो इस मार्ग से गुजरा था और उसने यहाँ की खेती, विशेष रूप से कपास की खेती तथा इसके व्यापारिक महत्व और निवासियों के वीर चरित्र की चर्चा की है।
हाल की शताब्दियों में यह चीनी मध्य एशिया में मुस्लिम सक्रियता का केंद्र रहा और १८६४-६५ में चीन के विरुद्ध हुए डंगन विद्रोह में इस नगर की प्रमुख भूमिका थी। १८७८ में काशगर और खुतन ने प्रख्यात कृषि सेना को आत्मसमर्पण किया। फलस्वरूप वह पुन: चीन के अधिकार में चला गया। आजकल सिंकियांग प्रांत के अंतर्गत हैं।
यह क्षेत्र आज भी कृषि की दृष्टि से अपना महत्व रखता है। गेहूँ, चावल, जौ, बाजरा और मक्का की यहाँ खेती होती है। कपास भी काफी मात्रा में उपजता है। फलों, में ज़ैतून, लूकाट, नाशपाती और सेब होते हैं। मेवे का भी काफी मात्रा में निर्यात होता है। रेशम के उद्योग के आनुषंगिक साधन के रूप में शहतूत की भी खेती की जाती है। इसके अतिरिक्त यहाँ कालीन और नमदे का भी उद्योग है। नदियों से लोग सोना छानते हैं। बहुत दिनों तक खुतन के यशद भी बहुत प्रसिद्ध थे।
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