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खदिरवन ब्रज का प्रसिद्ध वन है।
खायरा गाँव-(सौभरेय ब्राह्मण समाज का सबसे बृहदगाँव)
गांव खायरा (khayra Gaon) छाता-बरसाना मार्ग पर स्थित है । यह स्वजाति सौभरि ब्राह्मण समाज व अपने इस क्षेत्र का सब से बड़ा तख्त गॉंव है । इस गांव ने “12 गांवों की राजधानी” के नाम से प्रसिद्धी पायी हुई है । लगभग 12000 की जनसंख्या वाले इस गांव में होली के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला मेला ब्रज की अंतिम होली के दिन चैत्र कृष्ण पंचमी को मनाया जाता है जिसे रंगपंचमी के नाम से भी जाना जाता है । यहां पर होली के मेले का आयोजन मुख्य रूप से ‘पड़ाव’ जगह पर होता है । इस दिन क्षेत्र के विधायक व प्रशासन अधिकारी मौजूद रहते हैं । इस दिन 12 गांवों के अलावा आसपास के गांवों से भी लोगों का तांता लगा रहता है । अच्छे से अच्छी मनोहर झांकियां निकाली जाती हैं साथ में पुरूस्कृत भी किया जाता है । रात्रि को स्वांग, रसियादंगल, डांस कॉम्पिटिशन इत्यादि तरह के मनोहारी खेल होते हैं ।
खायरा गांव के होली मेले का दृश्य
यह ब्रज के १२ वनों में से एक है। यहाँ श्री कृष्ण-बलराम सखाओं के साथ तर-तरह की लीलाएं करते थे। यहाँ पर खजूर के बहुत वृक्ष थे। यहाँ पर श्री कृष्ण गोचारण के समय सभी सखाओं के साथ पके हुए खजूर खाते थे।यहाँ खदीर के पेड़ होने के कारण भी इस गाँव का नाम ‘खदीरवन’ पड़ा है। खदीर (कत्था) पान का एक प्रकार का मसाला है। कृष्ण ने बकासुर को मारने के लिए खदेड़ा था। खदेड़ने के कारण भी इस गाँव का नाम ‘खदेड़वन’ या ‘खदीरवन’ है।
गांव का नाम भगवान कृष्ण के गौरवशाली इतिहास से भी जुड़ा हुआ है । यहाँ पर ब्रज के प्रसिद्ध वनों में एक खदिरवन भी यहीं स्थित है । इसी वन में कंस द्वारा भगवान कृष्ण को मारने के लिए भेजे गये बकासुर राक्षस का वध स्वयं बाल कृष्ण ठाकुर जी ने किया था । बकासुर एक बगुले का रूप धारण करके श्रीकृष्ण को मारने के लिए इसी वन में पहुंचा था जहाँ कान्हा और सभी ग्वालबाल खेल रहे थे। तब बकासुर ने बगुले का रूप धारण कर कृष्ण को निगल लिया और कुछ ही देर बाद कान्हा ने उस बगुले की चौंच को चीरकर उसका वध कर दिया।
एक वृतांत के अनुसार उस समय बकासुर की भयंकर आकृति को देखकर समस्त सखा लोग डरकर बड़े ज़ोर से चिल्लाये ‘खायो रे ! खायो रे ! किन्तु कृष्ण ने निर्भीकता से अपने एक पैर से उसकी निचली चोंच को और एक हाथ से ऊपरी चोंच को पकड़कर उसको घास फूस की भाँति चीर दिया। सखा लोग बड़े उल्लासित हुए।
‘खायो रे ! खायो रे !’ इस लीला के कारण इस गाँव का नाम ‘खायारे’ पड़ा जो कालान्तर में ‘खायरा’ हो गया।
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