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भारतीय लेखक विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
केदारनाथ अग्रवाल (१ अप्रैल १९११ - २२ जून २०००) प्रमुख हिन्दी कवि थे। १ अप्रैल १९११ को उत्तर प्रदेश के बांदा जनपद के कमासिन गाँव में हनुमान प्रसाद गुप्ता व घसीटो देवी के घर हुआ था।
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केदार जी के पिताजी स्वयं कवि थे और उनका एक काव्य संकलन ‘मधुरिम’ के नाम से प्रकाशित भी हुआ था। केदार जी का आरंभिक जीवन कमासिन के ग्रामीण माहौल में बीता और शिक्षा दीक्षा की शुरूआत भी वहीं हुई। तदनंतर अपने चाचा मुकुंदलाल अग्रवाल के संरक्षण में उन्होंने शिक्षा पाई। क्रमशः रायबरेली, कटनी, जबलपुर, इलाहाबाद में उनकी पढ़ाई हुई। इलाहाबाद में बी.ए. की उपाधि हासिल करने के पश्चात् क़ानूनी शिक्षा उन्होंने कानपुर में हासिल की। तत्पश्चात् बाँदा पहुँचकर वहीं वकालत करने लगे थे।[1]
केदारनाथ का इलाहाबाद से गहरा रिश्ता था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान ही उन्होंने कविताएँ लिखने की शुरुआत की। उनकी लेखनी में प्रयाग की प्रेरणा का बड़ा योगदान रहा है। प्रयाग के साहित्यिक परिवेश से उनके गहरे रिश्ते का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी सभी मुख्य कृतियाँ इलाहाबाद के परिमल प्रकाशन से ही प्रकाशित हुई। प्रकाशक शिवकुमार सहाय उन्हें पितातुल्य मानते थे और 'बाबूजी' कहते थे। लेखक और प्रकाशक में ऐसा गहरा संबंध ज़ल्दी देखने को नहीं मिलता। यहां तक कि परिमल प्रकाशन का लोगो भी उन्होंने केदारनाथ अग्रवाल के चित्र का ही बनाया। शायद आज तक कोई ही ऐसा प्रकाशक होगा जिसके संबंध लेखक से इस प्रकार मधुर होंगे। यही कारण रहा कि केदारनाथ ने दिल्ली के कई प्रकाशकों का प्रलोभन ठुकरा कर परिमल प्रकाशन से ही अपनी कृतियाँ प्रकाशित करवाईं। उनका पहला कविता संग्रह फूल नहीं रंग बोलते हैं परिमल से ही प्रकाशित हुआ था। जब तक शिवकुमार सहाय जीवित थे, वह प्रत्येक जयंती को उनके निवास स्थान बाँदा में गोष्ठी और सम्मान समारोह का आयोजन करते थे। शिव कुमार सहाय के निधन के बाद परिमल प्रकाशन का संचालन उनके पोते अंकुर शर्मा सहाय कर रहें है।
केदारनाथ अग्रवाल का पहला काव्य-संग्रह युग की गंगा आज़ादी के पहले मार्च, 1947 में प्रकाशित हुआ। केदारनाथ अग्रवाल ने मार्क्सवादी दर्शन को जीवन का आधार मानकर जनसाधारण के जीवन की गहरी व व्यापक संवेदना को अपने कवियों में मुखरित किया है। केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं का अनुवाद रूसी, जर्मन, चेक और अंग्रेज़ी में हुआ है।[2]
देश की कविताएँ
जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है, पहला पानी, हमारी जिन्दगी, जिन्दगी, मजदूर का जन्म, बच्चे के जन्म पर, वह चिड़िया जो, मात देना नहीं जानतीं, और का और मेरा दिन, बसंती हवा, कनबहरे, ईद मुबारक, वीरांगना, नागार्जुन के बाँदा आने पर, आज नदी बिलकुल उदास थी, ओस की बूंद कहती है, हम और सड़कें, जीवन से, मैना, कंकरीला मैदान, लंदन में बिक आया नेता
उनका कविता-संग्रह 'फूल नहीं, रंग बोलते हैं' सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित हो चुका है। कविता संग्रह 'अपूर्वा' के लिये 1986 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। इसके अलावा वे हिंदी संस्थान पुरस्कार, तुलसी पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार आदि पुरस्कारों से सम्मानित हुए।[4]
केदार शोधपीठ की ओर हर साल एक साहित्यकार को लेखनी के लिए 'केदार सम्मान' से सम्मानित किया जाता है।[5]
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