कालिदास (फ़िल्म)
१९३१ चलचित्र एच.एम.रेड्डी द्वारा निर्देशित विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
कालिदास एच॰ एम॰ रेड्डी द्वारा निर्देशित १९३१ की एक भारतीय तमिल तथा तेलुगु भाषा की जीवनी-आधारित फिल्म है, जिसका निर्माण अर्देशिर ईरानी ने किया है। यह तमिल और तेलुगु भाषाओं की पहली सवाक फ़िल्म होने के साथ-साथ किसी दक्षिण भारतीय भाषा की भी पहली सवाक फ़िल्म होने के लिए उल्लेखनीय है। संस्कृत के कवि कालिदास के जीवन पर आधारित इस फ़िल्म में पी॰ जी॰ वेंकटेशन ने शीर्षक भूमिका का, और टी॰ पी॰ राजलक्ष्मी ने प्रधान महिला भूमिका का निर्वहन किया है, जबकि एल॰ वी॰ प्रसाद, थेवरम राजमबल, टी॰ सुशीला देवी, जे॰ सुशीला और एम॰ एस॰ संतनलक्ष्मी ने अन्य सहायक भूमिकाओं को निभाया है।
कालिदास | |
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निर्देशक | एच॰ एम॰ रेड्डी |
निर्माता | अर्देशिर ईरानी |
अभिनेता |
टी॰ पी॰ राजलक्ष्मी पी॰ जी॰ वेंकटेशन |
निर्माण कंपनी |
इम्पीरियल मूवी-टोन |
प्रदर्शन तिथि |
३१ अक्टूबर १९३१ |
देश | भारत |
भाषायें |
तमिल तेलुगु |
मुख्य रूप से तमिल में बनी कालिदास में तेलुगु और हिंदी में भी अतिरिक्त संवाद हैं। राजलक्ष्मी ने अपने संवाद तमिल भाषा में बोले, जबकि वेंकटेशन ने तमिल भाषा में अपनी धाराप्रवाहिता की कमी के कारण केवल तेलुगु भाषा में संवाद बोले, और प्रसाद ने केवल हिंदी बोली है। पौराणिक विषय पर आधारित होने के बावजूद, फिल्म में बाद के समय की अवधि के गीतों का प्रयोग किया गया, जिनमें कर्नाटक संगीतज्ञ त्यागराज की रचनाएं, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रचार गीत और महात्मा गांधी और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित गीत भी शामिल थे। जर्मन निर्मित तकनीक का उपयोग करके फ़िल्म के लिए ध्वनि को रिकॉर्ड किया गया था। कालिदास को बॉम्बे में भारत की पहली साउंड फिल्म, आलम आरा (१९३१) के सेट पर शूट किया गया था, और इसका फ़िल्मांकन आठ दिनों में पूरा हुआ।
कालिदास को ३१ अक्टूबर १९३१ को दीपावाली के दिन उच्च अपेक्षाओं के साथ रिलीज किया गया था। यह उस वर्ष निर्मित और रिलीज़ हुई एकमात्र दक्षिण भारतीय फिल्म थी। कई तकनीकी खामियों के बावजूद, इसे राजलक्ष्मी के गायन प्रदर्शन के लिए प्रशंसा के साथ-साथ आलोचनात्मक प्रशंसा और एक बड़ी व्यावसायिक सफलता मिली। फ़िल्म की सफलता ने कवि कालिदास पर आधारित कई अन्य फिल्मों को जन्म दिया, जिनमें महाकवि कालिदास (१९५५), महाकवि कालिदासु (१९६०) और महाकवि कालिदास (१९६६) शामिल हैं।
अपनी व्यावसायिक सफलता के अतिरिक्त, कालिदास राजलक्ष्मी के करियर के लिए भी एक बड़ी सफलता साबित हुई, और इसने उन्हें एक बैंकेबल गायन स्टार बना दिया। चूंकि फिल्म के किसी भी प्रिंट, ग्रामोफोन रिकॉर्ड, या सोंगबुक का होना ज्ञात नहीं है, यह एक लॉस्ट फिल्म है।
संक्षेप
विद्याधारी तेरवटी के राजा विजयवर्मन की पुत्री है। राज्य का मंत्री चाहता है कि राजकुमारी उसके बेटे से विवाह कर ले, लेकिन वह मना कर देती है। इससे परेशान होकर मंत्री विद्याधारी के लिए एक वर ढूंढने की ठान लेता है। एक जंगल में, मंत्री एक पेड़ पर चढ़े एक अनपढ़ चरवाहे को देखता है, जो पेड़ की उसी शाखा को काट रहा होता है, जिस पर वह बैठा हुआ होता है। मंत्री उस चरवाहे को राजमहल में आने के लिए राजी करता है और विद्याधारी का विवाह उससे करवा देता है। जब विद्याधरी को पता चलता है कि उसे धोखा दिया गया है, और उसका विवाह एक चरवाहे से करवा दिया गया है, तो वह इस समस्या से निदान पाने के लिए देवी काली की पूजा करती है। काली उसके सामने प्रकट होती हैं, और उसके पति को अभूतपूर्व साहित्यिक प्रतिभाओं से संपन्न करते हुए उसे कालिदास नाम देती हैं।[1]
पात्र
- टी॰ पी॰ राजलक्ष्मी विद्याधारी के रूप में।
- पी॰ जी॰ वेंकटेशन कालिदास के रूप में।
- एल॰ वी॰ प्रसाद मन्दिर के पुजारी के रूप में।
थेवरम राजमबल, टी॰ सुशीला देवी, जे॰ सुशीला और एम॰ एस॰ संतनलक्ष्मी ने अन्य सहायक भूमिकाओं का निर्वहन किया है।[2]
निर्माण
सारांश
परिप्रेक्ष्य
भारत की प्रथम सवाक फ़िल्म आलम आरा (१९३१) की सफलता के बाद, इसके निर्देशक अर्देशिर ईरानी दक्षिण भारतीय सिनेमा में काम करना चाहते थे।[3] उसी वर्ष उन्होंने अपने पूर्व सहायक,[4] एच॰ एम॰ रेड्डी को पहली दक्षिण भारतीय ध्वनि फिल्म का निर्देशन करने के लिए चुना, जो बाद में संस्कृत कवि और नाटककार कालिदास[3][a] के जीवन पर आधारित पहली तमिल-तेलुगु फिल्म कालिदास बन जाएगी।[b] ईरानी ने इम्पीरियल मूवी-टोन के बैनर के तहत फिल्म का निर्माण किया।[10][11] पी॰ जी॰ वेंकटेशन को शीर्षक भूमिका निभाने के लिए चुना गया था।[12] एल॰ वी॰ प्रसाद - जिन्होंने बाद में प्रसाद स्टूडियो की स्थापना की - एक मंदिर के पुजारी के रूप में एक कॉमिक भूमिका में दिखाई दिए।[13][14] थिएटर कलाकार टी॰ पी॰ राजलक्ष्मी को मुख्य नायिका की भूमिका निभाने के लिए चुना गया था;[15] फिल्म इतिहासकार रैंडर गाय के अनुसार, वह "नायिका की भूमिका निभाने के लिए स्वचालित पसंद" थीं।[16] इससे पहले राजलक्ष्मी ने कई मूक फिल्मों में अभिनय किया था, और कालिदास उनकी पहली सवाक फिल्म थी।[17] सहायक भूमिकाएँ थेवरम राजमबल, टी॰ सुशीला देवी, जे॰ सुशीला और एम॰ एस॰ संतनलक्ष्मी द्वारा निभाई गईं।[2][18]
कालिदास को बॉम्बे (अब मुम्बई) में आलम आरा के सेट पर शूट किया गया था;[19][20] इसे आठ दिनों में पूरा किया गया था,[21] ६,००० फीट (१,००० मीटर) या १०,००० फीट (३००० मीटर) फिल्म का उपयोग कर, जैसा कि अलग-अलग स्रोत बताते हैं।[c] जर्मन तकनीशियनों द्वारा जर्मन-निर्मित उपकरणों का उपयोग करके ध्वनि को रिकॉर्ड किया गया था।[25][26] गाय के अनुसार, ईरानी शुरू में अनिश्चित थे कि जर्मन ध्वनि रिकॉर्डिंग उपकरण तमिल भाषा को रिकॉर्ड कर भी पायेगा या नहीं; अपनी शंकाओं को दूर करने के लिए, उन्होंने कुछ अभिनेताओं को वेंकटेशन के साथ तमिल में बोलने और गाने के लिए कहा। क्योंकि उपकरण का उपयोग पहले से ही हिंदी को रिकॉर्ड करने के लिए किया जा चुका था, वह अन्य अभिनेताओं को उस भाषा में बोलने को कहते थे; उपकरण ने प्रत्येक भाषा को स्पष्ट रूप से दर्ज किया।[25] फिल्म इतिहासकार फ़िल्म न्यूज़ आनंदन ने कहा कि कालिदास "जल्दबाज़ी में निर्मित हुई थी, और तकनीकी रूप से दोषपूर्ण थी।"[11]
यद्यपि कालिदास की प्राथमिक भाषा तमिल थी,[27] अभिनेताओं ने फ़िल्म में कई अन्य भाषाएं भी बोलीं, जिनमें तमिल (राजलक्ष्मी), तेलुगु (वेंकटेशन) और हिंदी (प्रसाद) शामिल हैं।[13] चूँकि वेंकटेशन की पहली भाषा तेलुगु थी, और वे तमिल शब्दों का सही उच्चारण नहीं कर पाते थे, उनके संवाद तेलुगु में ही थे।[13] कई भाषाओं के उपयोग के कारण फ़िल्म न्यूज़ आनंदन,[11] बर्जिट मेयर,[28] और गाय समेत कई लोगों ने कालिदास को पहली तमिल स्वाक फिल्म नहीं माना है; गाय ने इसके बजाय इसे भारत की पहली बहुभाषी फिल्म कहा है।[29] २०१० की पुस्तक सिनेमाज़ ऑफ साउथ इण्डिया: कल्चर, रेजिस्टेंस, आइडियोलॉजी में सौम्या देचम्मा ने कहा है कि तेलुगु संवादों को फिल्म में स्पष्ट रूप से "दक्षिण भारत के दो महत्वपूर्ण भाषा बाजारों में अपनी बाजार क्षमता बढ़ाने के लिए" शामिल किया गया था।[30]
संगीत
रिलीज
विरासत
यह भी देखें
- कीचक वधम्, पहली दक्षिण भारतीय मूक फिल्म।
- आलम आरा (१९३१), पहली भारतीय सवाक फ़िल्म।
टिप्पणियाँ
साँचा:Notes
सन्दर्भ
ग्रन्थ सूची
बाहरी कड़ियाँ
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