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ओकापी (ओकापिया जॉन्स्टोनी) अफ्री़का के इटुरी वर्षावन, जो कि मध्य अफ्री़का के कांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य में स्थित है, में पाया जाने वाला एक जीव है। यह जिराफ़ का सबसे करीबी रिश्तेदार है। आज यह वन में लगभग १०,०००-२०,००० की संख्या में हैं।
यह द्विखुरीयगण सम्बंधित लेख अपनी प्रारम्भिक अवस्था में है, यानि कि एक आधार है। आप इसे बढ़ाकर विकिपीडिया की मदद कर सकते है।
ओकापी | |
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ओकापी | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | जंतु |
संघ: | रज्जुकी |
वर्ग: | स्तनपायी |
गण: | द्विखुरीयगण |
कुल: | जिराफ़िडे |
वंश: | ओकापिया रे लॅन्कॅस्टर, १९०१ |
जाति: | ओ. जॉनस्टॉनी |
द्विपद नाम | |
ओकापिया जॉनस्टॉनी पी.एल. स्क्लेटर, १९०१ | |
पाये जाने वाले क्षेत्र |
ओकापी का पृष्ठ भाग गहरे कत्थई रंग का होता है और पैरों में अद्भुत सफे़द-काली धारियाँ होती हैं, जिससे दूर से देखने में यह ज़ीब्रा जैसा दीखता है। शायद यह धारियाँ घने वर्षावन में शावक को अपनी माँ पहचानने में या फिर शायद छद्मावरण में मदद करती हैं।[2][3] शरीर की बनावट जिराफ़ जैसी ही होती है सिवाय लंबी गर्दन के।
ओकापी और जिराफ़ दोनों की जीभ लंबी होती है[4] (क़रीब ३५ से.मी.), जो नीले रंग की होती है और जिसकी मदद से वह पेड़ों से कोमल पत्तियाँ और कोपलें खाने में सफल होते हैं।
ओकापी की जीभ इतनी लंबी होती है कि वह उससे अपनी आँख तथा कान भी साफ़ कर सकता है। तेंदुआ इनका परभक्षी होता है तथा इनके बडे़ कान उससे बचने में मदद करते हैं।
ओकापी की लंबाई लगभग १.९-२.५ मी. और ऊँचाई कन्धों तक लगभग १.५-२.० मी होती है। इनका वज़न २००-३०० कि. होता है। शरीर के हिसाब से इनकी पूँछ छोटी होती है और केवल ३०-४२ से.मी. लम्बी होती है।[5] हाल तक यह मान्यता थी कि ओकापी आह्निक (दिन में चरने वाले) प्राणी होते हैं, लेकिन अब शोध यह बताते हैं कि वह निशाचर भी हैं। ओकापी समागम के समय के अलावा प्राय: एकाकी जीवन व्यतीत करते हैं। सिर्फ़ माँ और शावक ही साथ रहते हैं। समागम के समय के बर्ताव में सूंघना, चक्कर काटना और चाटना शामिल है। ओकापी वन में जाने पहचाने रास्ते में भोजन की तलाश करते हैं। इनके इलाके अतिव्यापित होते हैं और औसतन एक वर्ग कि. में ०.६ जीव पाये जाते हैं। ओकापी सामाजिक प्राणी नहीं है और बड़े तथा एकांत इलाके में रहना पसन्द करता है। इसी आदत के कारण इनकी संख्या घट रही है क्योंकि इनके इलाके में मनुष्य भूमि अतिक्रमण कर रहा है। ओकापी अपने क्षेत्र जताने के लिए विभिन्न तरीके इस्तेमाल करता है, जैसे मूत्र गंध द्वारा। इसके पैरों में गंध ग्रंथियाँ होती हैं जो एक प्रकार का द्रव्य उत्पन्न करती हैं जिसे यह अपने क्षेत्र की सरहद में लगाता है। नर अपने क्षेत्र की रक्षा काफ़ी ज़ोर-शोर से करता है लेकिन मादा को अपने क्षेत्र के बीच में से निकलने देता है।
ओकापी ५०० से १००० मी. की ऊँचाई पर रहना पसन्द करता है लेकिन अपने आवासीय हद के पूर्वी इलाके में पहाड़ी वर्षावन में १००० मी. से ऊपर भी रह सकता है। इस इलाके में भरपूर वर्षा होने के कारण ओकापी की खाल तेलयुक्त और मखमली होती है जो पानी को उसके बदन में टिकने नहीं देती। उसने इस प्रकार की खाल छद्मावरण के लिए विकसित की है।[6]
ओकापी के क्षेत्र की सीमाएँ इस प्रकार हैं: पूर्व में ऊँचे पहाड़ी वर्षावन, दक्षिण-पूर्व में दलदली क्षेत्र, पश्चिम में ५०० मी. से नीचे दलदली जंगल, उत्तर में सूडान का साहेल इलाका तथा दक्षिण में खुले जंगली मैदान।
वाम्बा और ऍपुलु इलाकों में यह सबसे अधिक पाया जाता है।
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