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उदयशंकर भट्ट (1898 - 1966) हिंदी के विद्वान सुप्रसिद्ध लेखक व कवि थे।
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उदयशंकर भट्ट का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा नगर में अपने ननिहाल में ३ अगस्त सन् 1898 को हुआ था। आपके पूर्वज गुजरात के सिंहपुर से आकर इंदौर नरेश के न्यायाधीश नियुक्त होकर उत्तर प्रदेश के बुलन्द शहर के कर्णदास ग्राम में बस गए थे। घर का वातावरण सुसंस्कारित एवं संस्कृतभाषी था। आपके पिता पं. मेहता फतेहशंकर भट्ट अंग्रेजी पढ़े-लिखे थे, फिर भी वे संस्कृतनिष्ठ थे। उन्होंने ब्रजभाषा में कवित्त, सवैयों की रचना की थी और कभी-कभी काव्यगोष्ठियों में भी वे अपनी रचनाओं का पाठ करते थे। उदयशंकरजी को भी इन्हीं गोष्ठियों से साहित्य-लेखन की प्रेरणा मिली।
तेरह वर्ष की अवस्था में ही माता और पिता की मृत्यु के पश्चात् अपने पितामह पं. दुर्गाशंकर के संरक्षण में इटावा में रहने लगे। आपने संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेजी की शिक्षा इटावा में प्राप्त की और सन् १९२३ में जीविका की खोज में लाहौर चले गए। आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 'बी.ए.', पंजाब से 'शास्त्री' और कलकत्ता से 'काव्यतीर्थ' की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। आप लाहौर में सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लाला लाजपत राय के नेशनल कॉलेज में अध्यापक बने, वहाँ आपने क्रांतिकारी सरदार भगतसिंह, सुखदेव और भगवती चरण वोहरा के अतिरिक्त प्रसिद्ध हिन्दी उपन्यासकार यशपाल को भी पढ़ाया। इसके पश्चात् आप लाहौर के खालसा कॉलेज और सनातन धर्म कॉलेज आदि में अध्यापन करते रहे।
अध्यापनकाल में ही आपमें नाटक लिखने की रूचि विकसित हुई और सन् १९२१-२२ में आपने 'असहयोग और स्वराज' तथा 'चितरंजनदास' शीर्षक से नाट्य-रचनाएँ लिखीं और उन्हें मंच पर प्रस्तुत भी किया। इसके पूर्व आप ब्रजभाषा में कविताएँ लिखना प्रारम्भ कर चुके थे। तीसरे दशक में आप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा संचालित स्वतंत्रता आंदोलनों में भी सहभागी होते रहे और इस अवधि में सशस्त्र क्रांति की चेष्टा करने वालों से भी आपका संपर्क रहा। सन् १९४७ में भारत-विभाजन के उपरान्त आप लाहौर छोड़कर दिल्ली चले आए और देश को स्वतंत्रता मिलने के पश्चात् आप आकाशवाणी में सलाहकार के रूप में नियुक्त हुए। कुछ वर्षों के उपरान्त आप आकाशवाणी के नागपुर और जयपुर केन्द्रों में प्रोड्यूसर के पद पर कार्य करते रहे। सेवामुक्त होने पर अपने जीवन के अंतिम दिनों में आप स्वतंत्र रूप से अपने घर पर ही लेखन कार्य करते रहे।
२८ फरवरी सन् १९६६ में उनसत्तर वर्ष की आयु में आपका निधन हो गया।
तक्षशिला , राका , मानसी , विसर्जन, अमृत और विष, इत्यादि, युगदीप, यथार्थ और कल्पना, विजयपथ, अन्तर्दर्शन : तीन चित्र, मुझमें जो शेष है।
विक्रमादित्य , दाहर या सिंधपतन, सगर विजय, कमला , अंतहीन अंत, मुक्तिपथ, शक विजय, नया समाज, पार्वती, विद्रोहिणी अम्बा, विश्वामित्र, मत्स्यगंधा, राधा, अशोक-वन-बन्दिनी, विक्रमोर्वशीय, अश्वत्थामा, गुरु द्रोण का अन्तर्निरीक्षण, नहुष निपात, कालिदास, संत तुलसीदास, एकला चलो रे, क्रांतिकारी, अभिनव एकांकी नाटक, स्त्री का हृदय, आदिम युग, तीन नाटक, धूमशिखा, पर्दे के पीछे, अंधकार और प्रकाश, समस्या का अंत, आज का आदमी, दस हजार एकांकी।
वह जो मैंने देखा, नए मोड़, सागर, लहरें और मनुष्य , लोक-परलोक, शेष-अशेष,दो अध्याय
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