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इंदिरा गाँधी हत्या कांड विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की हत्या 31 अक्टूबर, 1984 को नई दिल्ली के सफदरगंज रोड स्थित उनके आवास पर सुबह 9:30 बजे की गई थी।[1][2] ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद उनके अंगरक्षकों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने गोली मार कर उनकी हत्या की थी।[3] ऑपरेशन ब्लूस्टार एक भारतीय सैन्य अभियान था, जो 1 से 8 जून, 1984 के बीच किया गया था। यह आदेश पंजाब के अमृतसर में हरमंदिर साहिब परिसर की इमारतों से सिख उग्रवादी नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके सशस्त्र अनुयायियों को हटाने के लिए इंदिरा गाँधी ने दिया था।[4] संपार्श्विक क्षति में कई तीर्थयात्रियों की मृत्यु हुई थी, जिन्हें उग्रवादियों द्वारा मंदिर में मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था, साथ ही इस मुठभेड़ में सिख धर्म के प्रमुख तख़्त, अकाल तख़्त को भी नुक़सान पहुँचा था। पवित्र मंदिर पर सैन्य कार्यवाही की दुनिया भर के सिखों ने आलोचना की थी।[5]
इंदिरा गांधी की हत्या | |
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The spot where Gandhi was shot down is marked by a glass opening in the crystal pathway at the Indira Gandhi Memorial | |
स्थान | प्रधानमंत्री आवास, Safdarjung Road, नई दिल्ली |
तिथि |
31 October 1984 9:30 a.m. |
हमले का प्रकार | Gun violence |
हथियार | .38 (9.1 mm) revolver and Sterling submachine gun |
पीड़ित | इंदिरा गाँधी |
ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद प्रधानमंत्री गाँधी के जीवन पर खतरे की धारणा बढ़ गई थी। तद्नुसार, हत्या-प्रयास के डर से आसूचना ब्यूरो द्वारा सिखों को उसके निजी अंगरक्षक टुकड़ी से हटा दिया गया था। हालाँकि, गाँधी की राय थी कि इससे उनकी सिख विरोधी छवि जनता के बीच मज़बूत होगी और उनके राजनीतिक विरोधियों को मज़बूती मिलेगी। अतः उन्होंने विशेष सुरक्षा दल को अपने सिख अंगरक्षकों को फिर से बहाल करने का आदेश दिया, जिसमें बेअंत सिंह भी शामिल थे।[6]
भारतीय सेना द्वारा 03 से 06 जून, 1984 को अमृतसर (पंजाब, भारत) स्थित हरिमंदिर साहिब परिसर को ख़ालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों से मुक्त कराने के लिए चलाया गया अभियान था।[7] पंजाब में भिंडरावाले के नेतृत्व में अलगाववादी ताकतें सशक्त हो रही थीं, जिन्हें पाकिस्तान से समर्थन मिल रहा था। तीन जून को भारतीय सेना ने अमृतसर पहुँचकर स्वर्ण मंदिर परिसर को घेर लिया। शाम में शहर में कर्फ़्यू लगा दिया गया। चार जून को सेना ने गोलीबारी शुरु कर दी ताकि मंदिर में मौजूद मोर्चाबंद चरमपंथियों के हथियारों और असलहों का अंदाज़ा लगाया जा सके। चरमपंथियों की ओर से इसका इतना तीखा जवाब मिला कि पाँच जून को बख़तरबंद गाड़ियों और टैंकों को इस्तेमाल करने का निर्णय किया गया। पाँच जून की रात को सेना और सिख लड़ाकों के बीच असली भिड़ंत शुरु हुई।
इस सैन्य कार्रवाही में भीषण जान माल का नुक़सान हुआ। अकाल तख़्त के भवन को, जोकि धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था। गंभीर रूप से नुक़सान हुआ एवं कार्रवाही के पश्चात् भारत सरकार द्वारा पुनःनिर्मित किया गया। रिपोर्टों के अनुसार, स्वर्ण मंदिर पर भी गोलियाँ चलीं। ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सिख पुस्तकालय जल गया। भारत सरकार के श्वेतपत्र के अनुसार 83 सैनिक मारे गए और 249 घायल हुए। 493 चरमपंथी या आम नागरिक मारे गए, 86 घायल हुए और 1,592 को गिरफ़्तार किया गया। इस कार्यवाही की कई कारणों से निंदा भी की गयी थी, विशेषकर सिख धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए।
ऑपरेशन ब्लूस्टार में अपनी भूमिका के कारण इंदिरा गाँधी, जिसने अकाल तख्त के कुछ हिस्सों को नुकसान पहुंचाया था और हताहतों की संख्या हुई थी। सिखों के बीच अत्यंत अलोकप्रिय हो गईं। स्वर्ण मंदिर परिसर में जूतों के साथ सेना के जवानों के कथित प्रवेश और मंदिर के पुस्तकालय में सिख धर्मग्रंथों और पांडुलिपियों के कथित रूप से नष्ट होने के कारण सिख संवेदनाएँ आहत हुई थीं। इस तरह की कार्रवाइयों से सरकार के प्रति अविश्वास का माहौल पैदा होने लगा। स्वर्ण मंदिर पर हमला करने को बहुत से सिक्खों ने अपने धर्म पर हमला करने के समान माना एवं कई प्रमुख सिखों ने या तो अपने पदों से इस्तीफ़ा दे दिया या फिर विरोध में सरकार द्वारा दिए गए सम्मान लौटा दिए।[8]
इस कार्रवाही की अनुमति देने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की भी काफी निंदा की गयी। यह अविश्वास का माहौल गाँधी की हत्या की साजिश में समाप्त हुआ गया, जोकि ऑपरेशन के समापन के पाँच महीने के भीतर हुआ। ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद प्रधानमंत्री गाँधी के जीवन पर खतरे की धारणा बढ़ गई थी। तद्नुसार, हत्या-प्रयास के डर से आसूचना ब्यूरो द्वारा सिखों को उसके निजी अंगरक्षक टुकड़ी से हटा दिया गया था। हालाँकि, गाँधी की राय थी कि इससे उनकी सिख विरोधी छवि जनता के बीच मजबूत होगी और उनके राजनीतिक विरोधियों को मजबूती मिलेगी। अतः उन्होंने विशेष सुरक्षा दल को अपने सिख अंगरक्षकों को फिर से बहाल करने का आदेश दिया, जिसमें बेअंत सिंह भी शामिल थे।[6]
उनके दो सिख अंगरक्षक, सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने 31 अक्टूबर 1984 को नई दिल्ली के सफदरजंग रोड स्थित उनके आवास पर सुबह 9:30 बजे गोली मार कर उनकी हत्या की थी,[1] उसमें से एक, बेअंत सिंह के वहीं पर सुरक्षा कर्मियों द्वारा मार गिराया गया था, जबकि सतवंत सिंह, जोकि उस समय 22 वर्ष के थे, को गिरफ़्तार कर लिया गया।[9] वो ब्रिटिश अभिनेता पीटर उस्तीनोव को आयरिश टेलीविजन के लिए एक वृत्तचित्र फिल्माने के दौरान साक्षात्कार देने के लिए सतवंत और बेअन्त द्वारा प्रहरारत एक छोटा गेट पार करते हुए आगे बढ़ी थीं। इस घटना के तत्काल बाद, उपलब्ध सूचना के अनुसार, बेअंत सिंह ने अपने बगलवाले शस्त्र का उपयोग कर उनपर तीन बार गोली चलाई और सतवंत सिंह एक स्टेन कारबाईन का उपयोग कर उनपर बाईस चक्कर गोली दागे।
गाँधी को उनके सरकारी कार में अस्पताल पहुँचाते–पहुँचाते रास्ते में ही दम तोड़ दीं थी, लेकिन घंटों तक उनकी मृत्यु घोषित नहीं की गई। उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में लाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उनका ऑपरेशन किया। उस वक्त के सरकारी हिसाब 29 प्रवेश और निकास घावों को दर्शाती है तथा कुछ बयाने 31 बुलेटों के उनके शरीर से निकाला जाना बताती है, उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली ले जाया गया। जहाँ डॉक्टरों ने उनका ऑपरेशन किया। उन्हें 2:20 बजे मृत घोषित कर दिया गया। उनके शव को 01 नवंबर की सुबह दिल्ली के रास्तों से होते हुए तीन मूर्ति भवन ले जाया गया जहां उनके शव को सम्मान और जनता के दर्शन के लिए रखा गया। 03 नवंबर को राज घाट के पास उनका अंतिम संस्कार किया गया और इस स्थान का नाम शक्तिस्थल रखा गया। उनके बड़े बेटे और उत्तराधिकारी राजीव गाँधी ने चिता को अग्नि दी थी।[1]
इंदिरा गाँधी के हत्या के बाद भारत के कई इलाकों में सिखों के विरुद्ध दंगे हुए थे, जिनमें करीब 3,000 से ज़्यादा मौतें हुई थीं।[10][11][12]
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