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अर्दशीर प्रथम (शासनकाल २२६-२४१ ई. ; अंग्रेज़ी: Ardashir I) या अर्दशीर यकुम (फ़ारसी: اردشير یکم) ईरान के सासानी साम्राज्य का संस्थापक और प्रथम सम्राट था। यह पहले दक्षिणी फ़ारस प्रान्त के इस्तख़्र क्षेत्र का शासक हुआ करता था जिसने पार्थी साम्राज्य के पतन के साथ अपना साम्राज्य बनाया।[1] यह सासानी साम्राज्य ४०० सालों तक चला और इसका पतन तब हुआ जब अरब मुस्लिमों के राशिदुन ख़िलाफ़त ने ६५१ ईसवी में इसे हराकर ख़त्म कर दिया।
अर्दशीर प्रथम | |
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ईरान का शहंशाह | |
शासनावधि | २२४–२४१ ईसवी |
उत्तरवर्ती | शापूर प्रथम |
जन्म | १८० ईसवी |
निधन | २४१ ईसवी |
राजवंश | सासानी राजवंश |
पिता | बाबक / पापग |
अर्दशिर, अर्तशिर एवं अर्तक्ष्थ्रा आदि नामों से भी विहित है। अभिलेखों में वह अपने को अर्त्तज़रसीज के नाम से पुकारता है। वह पायक (बाबेक) का द्वितीय पुत्र था जो ससन का लड़का था। अर्दशिर ने अंतिम पार्थ सम्राट् अर्दवन् को हराया और नवागत पारसी अथवा ससानी साम्राज्य की स्थापना की। ईसा पूर्व छटी शताब्दी में मीड लोग अथवा पश्चिमी पारसी, जिनका उल्लेख ११०० ई. पू. तक के असीरियन अभिलेखों में हुआ है, अखमीनियनों के दक्षिणी पारसीक राजवंश द्वारा परास्त हुए। अखमीनियनों को सिकंदर तथा उसके यूनानी सैनिकों ने चौथी सदी ई.पू. में हराया। यूनानी सत्ता को विस्थापित करनेवाले पार्थियन थे जो तीसरी शती ई. में ससानियनों की बढ़ती हुई शक्ति के आगे नमस्तक हुए। अर्दशिर, जो अहुरमज्द का परम भक्त था, माजी सम्प्रदाय के सन्तों के प्रभाव में आया और उसने रोम एवं आर्मीनिया के साथ सफलतापूर्वक युद्ध कर पुरातन जरथुस्त्र मत की प्रतिष्ठा की और न केवल उसे राजधर्म घोषित किया बल्कि उसके अभ्युदय के लिए अथक चेष्टाएँ की। ईरान के विभिन्न राज्यों को एक सुगठित केंद्रीय राजसत्ता के अंतर्गत ले जाकर उसने शासन की व्यवस्था चलाई जिसका आधार जरथुस्त्र के सिद्धान्त थे। उसने अपने प्रधान पुरोहित को धार्मिक ग्रंथों के संकलन का आदेश दिया। इन ग्रंथों की खोज उसके अनुवर्ती शासक शापुर प्रथम के राज्यकाल में चलती ही रही, संकलन का कार्य शपुर द्वितीय (३०९-३७९ ई.) के राज्यकाल में जाकर समाप्त हुआ। धार्मिक संगठन और राज्य की एकता के सिंद्धांत में पूरा विश्वास रखनेवाला सम्राट् अपने पुत्र शापुर प्रथम को दी गई अपनी अनुज्ञा (टेस्टामेंट) में कहता है-धर्म और राज्य दोनों सगी बहनों के समान हैं जो एक दूसरी के बिना नहीं रह सकतीं। धर्म राज्य की शिला है और राज्य धर्म का रक्षक।"
'अर्दशीर' शब्द मध्य फ़ारसी के 'अर्दख़शेर' (Arđaxšēr), पार्थी भाषा के 'अर्तख़शथ़्र' (Artaxšaθra) और पहलवी भाषा के 'अर्थश्त्र' शब्दों से सम्बंधित है, जिनका अर्थ है 'वह जिसका राज्य दिव्य व्यवस्था हो'।[2] क्योंकि संस्कृत और फ़ारसी दोनों हिन्द-ईरानी भाषा-परिवार की बहने हैं, इस से मिलते-जुलते सजातीय शब्द संस्कृत में भी मिलते हैं: 'ऋत क्षेत्र' (ऋत संस्कृत में सनातन व्यवस्था के लिए प्राचीन शब्द है जिसका हिन्दु धर्म में महत्वपूर्ण अर्थ है)।
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