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किसी भी बड़े संस्थान को संचालित करने वाली प्रशासनिक व्यवस्था विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
किसी बड़ी संस्था या सरकार के परिचालन के लिये निर्धारित की गयी संरचनाओं एवं नियमों को समग्र रूप से अफसरशाही, नौकरशाही या ब्यूरॉक्रेसी (bureaucracy) कहते हैं। तदर्थशाही (adhocracy) के विपरीत इस तंत्र में सभी प्रक्रियाओं के लिये मानक विधियाँ निर्धारित की गयी होती हैं और उसी के अनुसार कार्यों का निष्पादन अपेक्षित होता है। शक्ति का औपचारिक रूप से विभाजन एवं पदानुक्रम (hierarchy) इसके अन्य लक्षण है। यह समाजशास्त्र का प्रमुख परिकल्पना (कांसेप्ट) है।
अफरशाही की प्रमुख विशेषताएँ ये हैं-
सरकार, सशस्त्र सेना, निगम (कारपोरेशन), गैर-सरकारी संस्थाएँ, चिकित्सालय, न्यायालय, मंत्रिमण्डल, विद्यालय आदि
अफसरशाही, कार्मिकों का वह समूह है जिस पर प्रशासन का केंद्र आधारित है। प्रत्येक राष्ट्र का शासन व प्रशासन इन्हीं नौकरशाहों के इर्द–गिर्द घूर्णन करता दिखाई देता है। 'नौकरशाही' शब्द जहाँ एक ओर अपने नकारात्मक अर्थों में लालफीताशाही, भ्रष्टाचार, पक्षपात, अहंकार, अभिजात्य के लिए कुख्यात है तो दूसरी ओर प्रगति, कल्याण, सामाजिक परिवर्तन एवं कानून व्यवस्था व सुरक्षा के संदेश वाहक के रूप में भी जाना जाता है।
शासन की धूरी इस नौकरशाही पर व्यापक रूप से शोध–अनुसंधान व विमर्श हुए हैं। वैबर , मार्क्स , बीग, ग्लैडन, पिफनर आदि विद्वानों ने इसको परिभाषित करते हुए इसकी अवधारणा अर्थ को समझाते हुए विश्लेषण अध्ययेताओं के समक्ष प्रस्तुत किया है।
विश्व में नौकरशाही अलग–अलग शासनों में अलग–अलग रूपों में व्याप्त है। जैसे संरक्षक नौकरशाही, अभिभावक नौकरशाही, जाति नौकरशाही, गुणों पर आधारित आदि।
परिभाषित दृष्टि से नौकरशाही शब्द फ्रांसीसी भाषा के शब्द 'ब्यूरो' से बना है जिसका अभिप्राय 'मेज प्रशासन' अर्थात् ब्यूरो अथवा कार्यालयों द्वारा प्रबन्ध। नौकरशाही अपनी भूमिका के कारण इतनी बदनाम हो गई है कि आज इसका अभिप्राय नकारात्मक सन्दर्भों में प्रयुक्त किया जाने लगा है। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार यह शब्द, ब्यूरो अथवा विभागों में प्रशासकीय शक्ति के केन्द्रित होने तथा राज्य के क्षेत्राधिकार से बाहर के विषयों में भी अधिकारियों के अनुचित हस्तक्षेप को व्यक्त करता है। मैक्स वेबर ने नौकरशाही को प्रशासन की एक ऐसी व्यवस्था माना है जिसकी विशेषता है , विशेषज्ञता, निष्पक्षता और मानवता का अभाव।
उपर्युक्त परिभाषाओं में नौकरशाही शब्द अपने अर्थों में अनेकार्थ कता एवं विवादास्पदता लिए हुए है। माइकेल क्रोजियर ने ठीक ही लिखा है कि, 'नौकरशाही शब्द अस्पष्ट, अनेकार्थक और भ्रमोत्पादक है। मैक्स वेबर ने नौकरशाही के 'आदर्श रूप' की अवधारणा पेश की है जो कि प्रत्येक नौकरशाही में पायी जानी चाहिए। हालांकि यह आदर्श रूप अपनी यथार्थता में कभी भी उपलब्ध नहीं होता। मैक्स वेबर के नौकरशाही के आदर्श रूप में हमें निम्नलिखित विशेषताएँ देखने को मिलती हैं , जैसे – संगठन के सभी कर्मचारियों के बीच कार्य का सुनिश्चित एवं सुस्पष्ट विभाजन कर दिया जाता है। कर्त्तव्यों को पूरा करने हे तु सत्ता हस्तान्तरित की जाती है तथा उनको दृढ़ता के साथ ऐसे नियमों की सीमाओं में बां ध दिया जाता है जो कि बलपूर्वक लागू किये जाने वाले उन भौतिक एवं अभौतिक साधनों से सम्बन्धित होते हैं जो कि अधिकारियों को सौंपे जा सकते हैं। कर्त्तव्यों की नियमित एवं निरन्तर पूर्ति के लिए अधिकारों के उपयोग की विधिपूर्वक व्यवस्था की जाती है तथा योग्यता के आधार पर व्यक्तियों का चयन किया जाता है।
नौकरशाही व्यवस्थाओं में पदसोपान (हाइरार्की) का सिद्धान्त लागू होता है तथा लिखित दस्तावेजों, फाइलों, अभिलेखों तथा आधुनिक दफ्तर प्रबन्ध के उपकरणों पर निर्भर रहा जाता है। अधिकारियों को प्रबन्धकीय नियमों में प्रशिक्षण के बाद कार्य करने की व्यवस्था होती है।
एम.एम. मार्क्स ने पदसोपान, क्षेत्राधिकार, विशेषीकरण, व्यावसायिक प्रशिक्षण, निश्चित वेतन एवं स्थायित्व को नौकरशाही संगठन की विशेषताएँ स्वीकार किया है। प्रोफेसर हेराल्ड लास्की ने नौकरशाही एक ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था को माना है जिसमें मेजवत कार्य के लिए उत्कण्ठा, नियमों के लिए लोचशीलता का बलिदान, निर्णय लेने में देरी और नवीन प्रयोगों का अवरोध, रूढीवादी दृष्टिकोण आदि बातें प्रभावशाली रहती है।
उपर्युक्त विवेचन से नौकरशाही का एक ऐसा स्वरूप हमारे सामने स्पष्ट होता है जिसमें लोकशाही के प्रति एक गलत तस्वीर समाज के समक्ष आती है जो कि वस्तुतः सत्य भी है। आज लोकशाही का उत्तरदायीपूर्ण एवं प्रतिनिधिपूर्ण स्वरूप शंकाओं से ग्रस्त है जिसे प्राप्त करने के लिए पुन: प्रयास करना चाहिए वरना समाज का विकास अवरूद्ध हो जायेगा।
अमेरिकन एनसाइक्लोपीडिया के अनुसार 'नौकरशाही' संगठन का वह रूप है जिसके द्वारा सरकार ब्यूरो के माध्यम से संचालित होती है। प्रत्येक ब्यूरो कार्य की एक विशेष शाखा का प्रबन्ध करता है। प्रत्येक ब्यूरो का संगठन, पद–सोपान से युक्त होता है। इसके शीर्ष पर अध्यक्ष होता है जिसके हाथ में सारी शक्तियाँ रहती है। नौकरशाही प्रायः प्रशिक्षित व अनुभवी प्रशासक होते हैं। वे बाहर वालों से बहुत कम प्रभावित होते हैं। उनमें एक जातिगत भावना होती है तथा वे लालफीताशाही एवं औपचारिकताओं पर अधिक जोर देते हैं।
नौकरशाही का स्वरूप प्रत्येक राष्ट्र में भिन्न होता है क्योंकि यह वहाँ के समाज की संस्थाओं तथा मूल्यों की अभिव्यक्ति करती है। नौकरशाही की एक सामान्य विशेषता यह है कि यह परिवर्तन का विरोध और शक्ति की कामना करती है। मैक्स वेबर ने बड़े आकार के संगठन का एक आदर्श रूप प्रस्तुत किया है। यह आदर्श (मॉडल) अनुसंधान का एक प्रभावशाली साधन है।
'नौकरशाही' (ब्यूरोक्रैसी) शब्द मुख्य रूप से चार अर्थों में प्रयुक्त होता है , ये निम्नवत् है –
जर्मनी के प्रसिद्ध समाजशास्त्री मैक्स वेबर (1864 – 1920) ने नौकरशाही का विस्तृत विश्लेषण किया है। उन्होंने नौकरशाही को एक समाजशास्त्रीय परिघटना के रूप में समझाने का प्रयत्न किया जहां प्रभुत्व (authority) के सिद्धांत को समान्य संदर्भ में समझा जा सकता है। प्रभुत्व मुख्य रूप से एक ‘शक्ति संबंध’ है, जो शासक तथा शासित के बीच सत्ता की अधिनायकवादी शक्ति है। परन्तु इस शक्ति को तभी स्वीकार किया जा सकता है जब यह न्यायसंगत तथा वैध हो। शक्ति उस समय प्राधिकार में परिवर्तित हो जाती है जब यह वैधता प्राप्त कर लेती है, जहां व्यक्ति स्वेच्छा से आदेशों का पालन करता है। इस विश्वास के आधार पर वेबर ने तीन प्रकार के वैधताओं की पहचान की-
पारम्परिक प्राधिकार अनन्त काल से निरन्तर वैधता ग्रहण करता है। पारंपरिक प्राधिकार का आधार पम्पराएँ होती है। जो इस प्राधिकार का प्रयोग करते हैं उन्हें स्वामी के नाम से पुकारा जाता है और जो इन स्वामियों की आज्ञा का पालन करते हैं उन्हें अनुयायी/अनुचर कहा जाता है। स्वामी को यह प्राधिकार वंश परंपरा या सामाजिक परंपरा के कारण हासिल होता है। स्वामी की आज्ञा का पालन अनुयायी द्वारा किया जाता है, जो व्यक्तिगत निष्ठा के संबंधों पर आधारित होता है। इस पारंपरिक प्राधिकार में जो भी व्यक्ति आदेशों का पालन करते हैं वे घरेलू अधिकारी, पारिवारिक रिश्तेदार और स्वामी के चहेते होते हैं।
करिश्माई प्राधिकार किसी व्यक्ति के विशिष्ट और अतिमानवीय गुणों पर आधारित होता है। करिश्माई नेता कुछ विशिष्ट गुण रखते हैं जो उन्हें आम आदमी से अलग बनाते हैं। वह एक नायक, मसीहा या भविष्यवक्ता हो सकता है और चमत्कारिक शक्तियों के आधार पर ही उसे स्वीकार किया जाता है तथा इसको वैध प्रणाली का आधार माना जाता है। लोग उसकी आज्ञाओं का पालन बिना किसी पूछताछ के करते हैं। करिश्माई नेता की असाधारण क्षमताओं में शिष्यों की पूर्ण आस्था होती है। हलाँकि उसके पास कोई विशेष योग्यता तथा स्थिति नहीं होती है। इस प्रकार के प्राधिकार में प्रशासनिक तंत्र अस्थिर होता है और नेता की पसंद-नापसंद के अनुसार अनुयायी काम करते हैं।
कानूनी-तार्किक प्राधिकार के अंतर्गत नियमों को न्यायिक रूप से लागू किया जाता है और यह संगठन के सभी सदस्यों पर लागू होता है। आधुनिक समाज में यह प्राधिकार एक प्रमुख भूमिका निभाता है। यह कानूनी है क्योंकि यह व्यवस्थित नियमों तथा प्रक्रियाओं पर आधारित है और यह तर्कसंगत भी है। इसकी पूर्ण रूप से व्याख्या भी की गई है। इस प्राधिकार में नौकरशाही प्रशासन का उपकरण होती है। नौकरशाह के पद, शासन से उसके संबंध, शासितों तथा सहकर्मियों के साथ उसके व्यवहार का नियमन अव्यैक्तिक कानूनों द्वारा होता है।
वेबर के नौकरशाही मॉडल की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
कार्य का विभाजन और विशेषीकरण : कार्य का विभाजन और विशेषीकरण नौकरशाही की प्रमुख विशेषता है जिसमें कार्यों की प्रकृति के आधार पर संगठन में कार्यों को विभाजित किया जाता है। कार्य का उचित विभाजन कर दिए जाने से संगठन में स्पष्टता रहती है कि कौन से कार्य को किस अधिकारी द्वारा किया जाएगा, जिससे संगठन की उत्पादकता तथा दक्षता में वृद्धि होती है।
लिखित नियम द्वारा परिभाषित कार्य : नौकरशाही संगठन में प्रत्येक कार्य लिखित नियमों के आधार पर सम्पन्न किये जाते हैं। इन लिखित नियमों पर वेबर ने काफी अधिक बल दिया क्योंकि ये नियम संगठन के सदस्यों के व्यवहार पर नियंत्रण रखते हैं तथा संगठन का संचालन परिभाषित तकनीकी नियमों तथा मानदंडों के आधार नियोजित और नियंत्रित करते हैं।
पदसोपनिक प्राधिकार : पदसोपान की अवधारणा तार्किक प्रकार की नौकरशाही में एक प्रमुख स्थान रखती है। वेबर पदसोपान की व्यवस्था को काफी महत्त्व देते हैं। पदों का संगठन पदसोपन के क्रम का पालन करता है, जिसके अंतर्गत हर अधीनस्थ अधिकारी अपने उच्चाधिकारी के नियंत्रण एवं पर्यवेक्षण के अधीन होता है। यह अवधारणा प्रशासनिक अधिकारियों के बीच अत्यंत महत्वपूर्ण संबंध स्थापित करती है।
योग्यता आधारित चयन : अधिकारीयों की नियुक्ति स्वतंत्र तथा निष्पक्ष आधार पर की जाती है तथा यह चयन संविदात्मक, प्रतियोगी परीक्षाओं एवं योग्यता आधारित होती है।इस व्यवस्था में मूल्यांकन पूरी तरह से उम्मीदवारों की क्षमताओं और प्रदर्शन पर आधारित है।
स्थिति के अनुसार औपचारिक सामाजिक सम्बन्ध : संगठन के नौकरशाही रूप में अव्यैक्तिकता की अवधारणा का पालन किया जाना चाहिए। यह संबंध तर्कहीन भावनाओं पर नहीं बल्कि, औपचारिक सामाजिक पहलुओं पर आधारित है, जिसमें व्यक्तिगत पसंद तथा नापसंद के लिए कोई स्थान नहीं है। इसमें उच्चाधिकारी से अधीनस्थ अधिकारी को दी गई आज्ञा अवैयक्तिक आदेश पर आधारित होते हैं।
नियमित पारिश्रमिक भुगतान : नौकरशाही में कर्मचारियों के नियमित पारिश्रमिक की व्यवस्था होती है, जो कार्य तथा जिम्मेदारियों की प्रकृति के अनुसार प्रदान किया जाता है। पारिश्रमिक संगठन की आंतरिक पदसोपन के अनुसार दिया जाता है। इसके अलावा वरिष्ठता तथा योग्यता के आधार पर पदोन्नति के माध्यम से करियर में उन्नति की संभावना होती है।
स्वामित्व तथा कर्मचारी ढाँचे का पृथक्करण : स्वामित्व तथा कर्मचारी ढांचे के बीच पूर्ण पृथक्करण होना चाहिए। व्यक्तिगत मांगों तथा हितों को अलग रखा जाना चाहिए। इनका हस्तक्षेप संगठन की गतिविधियों में नहीं होना चाहिए क्योंकि कोई भी कर्मचारी अपनी स्थिति में संगठन का मालिक नहीं हो सकता।
करियर विकास : कर्मचारियों की पदोन्नति वस्तुनिष्ठ मानदण्डों पर आधारित है, प्राधिकरण के विवेक पर नहीं। कर्मचारियों को पदोन्नति वरिष्ठता या उसकी उपलब्धियों के आधार पर प्रदान की जाती है।
वेबर का नौकरशाही सिद्धांत आदर्श, शुद्ध, तटस्थ, कुशल, पदानुक्रम और तर्कसंगत है, जो समकालीन समाज में अपरिहार्य है। वेबर नौकरशाही के ‘आदर्श प्रकार’ का उल्लेख करते हैं क्योंकि इस प्रकार की नौकरशाही एक परम दक्षता (efficiency) के लिए मशीनरी के जैसा है। वेबर के अनुसार, “अनुभव सार्वभौमिक रूप से दिखाता है कि नौकरशाही का यह प्रकार (रूप) प्रशासनिक संगठन में तकनीकी दृष्टिकोण के आधार पर दक्षता के उच्चतम स्तर को प्राप्त करने में सक्षम है तथा इस अर्थ में यह सर्वाधिक लोकप्रिय है।”
वेबर ने नौकरशाही के महत्त्व और आवश्यकता पर बल दिया तथा वे इस तथ्य से अवगत थे कि नौकरशाही में शक्ति संचयन की अंतर्निहित प्रवृत्ति पाई जाती है। एल्ब्रो ने भी यही विचार प्रस्तुत किए। वेबर ने सत्ता तंत्र के प्रभाव क्षेत्र को सीमित रखने के लिए तथा विशेषकर नौकरशाही के शक्ति संचय पर अंकुश लगाने के लिए अनेक प्रकार के उपायों व व्यवस्थाओं पर विचार किया है। एल्ब्रो नौकरशाही की पाँच तरह की सीमाओं का वर्णन करते हैं:-
वेबर की आदर्श प्रकार नौकरशाही को कई विद्वानों की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा, जो मुख्य रूप से नौकरशाही ढांचे, आधिकारिक मानदंडों तथा प्रशासनिक दक्षता के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसमें तर्कसंगतता, विश्वसनीयता तथा व्यक्तित्व की अवधारणा प्रमुख रही।
कार्ल जे. फ्रेडरिक के अनुसार, यह शब्द दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि नौकरशाही में कुछ भी आदर्श नहीं होता है। आलोचकों का मत है कि जिन कार्यों में नवाचार तथा रचनात्मकता की आवश्यकता हो उसमें वेबर का नौकरशाही सिद्धांत फिट नहीं बैठता। क्योंकि वास्तव में वेबर का नौकरशाही सिद्धांत कठोर नियमों तथा विनियमों के साथ संगठन के नियमित तथा दोहराव वाले कार्यों में फिट बैठता है।
रॉबर्ट के. मर्टन के विचार में, इसमें कोई संदेह नहीं कि कठोर नियम तथा कानून संगठन में अव्यैक्तिकता, कर्मचारी व्यवहार की जवाबदेही तथा विश्वसनीयता को बनाए रखने में मदद करते हैं। लेकिन इसके अंतर्गत संगठन में कठोर तथा औपचारिक संरचना पाई जाती है जिससे संगठनात्मक प्रभावशीलता में कमी आती है। वेबर ने विशेषज्ञता तथा विभेदीकरण पर अधिक बल दिया और विकेंद्रीकरण तथा प्रत्यायोजन पर अपना ध्यान केंद्रित किया। इसका परिणाम यह हुआ कि अब संगठन के कार्यों को कठोर नियमों तथा विशेषज्ञता के आधार पर किया जाने लगा।
वेबर के नौकरशाही की अवधारणा की अनेक आलोचनाओं के बावजूद नौकरशाही के अध्ययन में बेवर का अद्वितीय स्थान है। आज बड़े पैमाने पर यह सिद्धान्त संगठनों में प्रबंधन के लिए सर्वाधिक लाभकारी है। चाहे समाज पूंजीवादी हो या समाजवादी दोनों ही प्रकार के संगठनों में प्रबंधन के लिए वेबर का नौकरशाही सिद्धांत तर्कसंगत बैठता है। मुक्त अर्थव्यवस्था के अंतर्गत जहां राज्य की न्यूनतम भूमिका होती है, नौकरशाही का यह सिद्धांत राज्य के कुछ आवश्यक कार्य करता है और दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। वेबर पहले सिद्धांतकार हैं जिन्होंने नौकरशाही को एक सैद्धांतिक आधार प्रदान किया तथा एक कुशल तरीके से संगठन को बनाए रखने में सहायता की एवं संगठन में इसके महत्त्व को उजागर किया।
मार्क्स (Fritz Morstein Marx) ने नौकरशाही को चार भागों में विभाजित किया है –
नौकरशाही की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –
प्रो. फ्रेड्रिक ने नौकरशाही के 6 लक्षण बतलाए हैं , जो इस प्रकार है –
वर्तमान भारतीय अफसरशाही का जन्म ब्रिटिश राज में हुआ। भारत की वर्तमान नौकरशाही लालफीताशाही और भ्रष्टाचार के जाल में फंसी हुई अक्षम ब्यूरोक्रसी है। [1] इसमें आवश्यक प्रशासनिक सुधार नहीं हुए हैं।[2]
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